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गीता दर्शन भाग-7
धनादिक बहुत-से पदार्थों को संग्रह करने की चेष्टा करते हैं। आसुरी संपदा वाले व्यक्तियों के लक्षणों में कृष्ण और भी प्रवेश करते हैं।
दंभ, मान और मद से युक्त...।
आसुरी संपदा वाला व्यक्ति सदा ही अपने को ठीक मानता है, सदा ही दूसरे को गलत मानता है। दूसरे का दूसरा होना ही उसकी गलती है। यह सवाल नहीं है कि सही क्या है, गलत क्या है। आसुरी संपदा वाले व्यक्ति को उसका स्वयं का वक्तव्य सही है, दूसरे का वक्तव्य गलत है।
कभी-कभी आपको भी खयाल आता होगा कि अगर दूसरा व्यक्ति वही बात कह रहा हो, जो कल आप कह रहे थे, तो भी आप विवाद करते हैं। क्योंकि सवाल यह है नहीं कि क्या सही है। सवाल तो यह है कि आप सही हैं और दूसरा गलत है। हमेशा आप इस कोशिश में होते हैं कि मैं सही हूं।
दुनिया में जो इतने विवाद चलते हैं, उन विवादों में सत्य की कोई तलाश नहीं है। उन विवादों में सिर्फ अहंकार की घोषणा है। चाहे कोई कुछ भी कहे, सही मैं ही हूं। और इस मैं के सही होने को हम हजार तरह से सिद्ध करने की कोशिश करते हैं। आसुरी संपदा वाले व्यक्ति का यह आंतरिक लक्षण है।
दैवी संपदा वाला व्यक्ति, इसके पहले कि दूसरे को गलत कहे, अपने को गलत सोचने की चेष्टा करता है। और इसीलिए दैवी संपदा वाला व्यक्ति सीख पाता है, आसुरी संपदा वाला व्यक्ति सीख नहीं पाता। क्योंकि सीखना तो तभी संभव है, जब हम गलत हों, दूसरा सही हो। जब हम सदा ही सही होते हैं और दूसरा गलत होता है, तो सीखने की कोई गुंजाइश नहीं है। शिष्यत्व, डिसाइपलशिप पैदा ही नहीं हो सकती।
इसलिए आसुरी संपदा का व्यक्ति कभी भी शिष्य नहीं बनता । हालांकि कहेगा वह यही कि कोई गुरु है ही नहीं। मिले कोई गुरु, तो हम शिष्यत्व ग्रहण करें। लेकिन वह शिष्यत्व ग्रहण नहीं कर सकता। वह बुद्ध के पास से भी कुछ भूल-चूक निकालकर आगे बढ़ जाएगा।
शिष्यत्व के लिए झुकना जरूरी है। और मैं गलत हूं, दूसरा सही होगा, इसकी प्रतीति जरूरी है। मैं अज्ञानी हूं और दूसरा जानता होगा, इसकी प्रतीति जरूरी है। और जो व्यक्ति को ऐसा भाव हो कि मैं अज्ञानी हूं, वह एक छोटे से बच्चे से भी सीख लेता है। वह पौधों, पक्षियों से भी सीख लेता है। उसके लिए सारा
| जगत गुरु हो जाता है।
और जो व्यक्ति सोचता है, मैं सही हूं, उसके लिए इस जगत में सीखने का कोई उपाय नहीं। वह अटका रह जाता है, ठहरा रह | जाता है। उसका हृदय पत्थर की तरह हो जाता है; फूल की तरह वह कभी भी खिल नहीं पाता है।
आप भी सोचें कि जब आप विवाद करते हैं कि यह ठीक है, | तब सच में ही आपको सत्य की तलाश होती है? या आपका वक्तव्य है, तो उसके साथ आपका अहंकार जुड़ गया। वक्तव्य टूटेगा, तो अहंकार टूटेगा। तो आप लड़-मर सकते हैं, विवाद कर सकते हैं, तर्क कर सकते हैं, हजार तर्क खोज ले सकते हैं। लेकिन उन तर्कों से आप कभी बदलेंगे नहीं। क्योंकि वे तर्क सत्य के लिए दिए ही नहीं गए।
सत्य का तलाशी हमेशा तैयार है कि वह गलत हो सकता है। और जो व्यक्ति जितना तैयार है अपनी गलती स्वीकार करने को, उसके जीवन में विकास की उतनी ही ज्यादा संभावना है। वह जीवन के अंतिम क्षण तक सीखता रहेगा, मरते क्षण तक सीखता रहेगा। उसके सीखने का कोई अंत नहीं है; उसके ज्ञान का कोई पारावार नहीं होगा।
आसुरी संपदा वाला अज्ञानी रह जाता है, क्योंकि सीख नहीं सकता। दैवी संपदा वाला सीखता चला जाता है, उसके पास सागर जैसा ज्ञान हो जाता है।
किसी भी प्रकार न पूर्ण होने वाली कामनाओं का आसरा लेकर... ।
और आसुरी संपदा वाला व्यक्ति अपने जीवन की गति को उन वासनाओं के सहारे चलाता है, जिनका कभी कोई अंत नहीं है; जो | कभी पूरी नहीं हो सकतीं, जो कभी पूरी हुई नहीं हैं, जिनका स्वभाव पूरा होना नहीं है।
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बुद्ध ने कहा है, कामनाएं दुष्पूर हैं, उनको भरा ही नहीं जा सकता। इसलिए नहीं कि आपकी ताकत कम है, इसलिए भी नहीं कि जीवन का समय कम है, इसलिए भी नहीं कि दूसरे लोग बाधा डाल रहे हैं, बल्कि इसलिए कि उनका स्वभाव ही दुष्पूर है। वासना का स्वभाव दुष्पूर है; उसे पूरा नहीं किया जा सकता।
क्या कारण होगा कि वासना का स्वभाव दुष्पूर है ? अगर आप वासना को पूरा न करें, दमन करें, दबाएं, तो वासना धक्के मारती है कि मुझे पूरा करो और सदा धक्के मारती रहेगी जन्मों-जन्मों तक। अगर आप वासना को पूरा करें, तो हर बार पूरा करें, तो