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________________ * शोषण या साधना * लेंगे। खो जाओ, ताकि बच सको। वे कहते हैं, बूंद सागर में गिर जाए, एक गरीब आदमी के पैर में कांटा उतना नहीं चुभता; पैर उसके खो जाएगी। अगर आप बंद की तरफ से देखें, तो खो जाएगी। आदी हैं। अमीर आदमी के पैर में कांटा और बुरी तरह चुभता है; लेकिन खोएगी कहां? खोना हो कैसे सकता है? जो भी है, वह | पैर उसके आदी नहीं हैं। जैसे-जैसे आदमी अमीर होता है, खोएगा कैसे? अगर होने की तरफ से देखें, तो बूंद खोएगी नहीं, | | वैसे-वैसे दुख एक घाव, एक नासूर भीतर हृदय में बनता चला सागर हो जाएगी। एक तरफ से बूंद का क्षुद्रपन चला जाएगा, दूसरी जाता है। तरफ से सागर की विराटता उसमें उतर आएगी। प्रज्ञावान पुरुष बुलाते हैं आपको कि मिट जाओ; कहते हैं कि __ कबीर ने कहा है कि पहले तो मैं सोचता था जब मिलन हुआ स्वयं को जान लो। क्योंकि स्वयं को जानते ही आप मिट जाओगे। कि बूंद सागर में गिर गई और खो गई। प्रथम तो ऐसा ही अनुभव यह जरा उलटा लगेगा, विरोधाभासी। क्योंकि जब हम कहते हैं, हुआ कि बूंद सागर में गिरकर खो गई। बाद में समझ में आया कि | स्वयं को जान लो, तो हमें ऐसा लगता है कि अपने को हम बचा यह तो उलटा कुछ हुआ है, सागर बूंद में गिरकर खो गया। ये दोनों बातें एक ही अर्थ रखती हैं। चाहे हम एक बूंद को सागर स्वयं को जानने की शर्त ही यह है कि जब तक आप हो, तब में गिराएं, चाहे एक सागर को बूंद में गिराएं; दोनों हालतों में घटना | तक आप स्वयं को जान न सकोगे। आप बाधा हो। वह जो अहंकार एक ही घटती है। तो चाहे आप कहें कि आप खो गए और चाहे | है कि मैं हूं, वही रुकावट है। वह मिटेगा, तो स्वयं का जानना हो आप कहें कि परमात्मा आप में खो गया, एक ही बात है। सिर्फ दो | जाएगा। स्वयं का मिटना ही स्वयं का ज्ञान है। और उसके साथ ही कोने से कहने की बात है। कांटा खो जाता है। बुद्ध ने पहली बात पसंद की। उन्होंने कहा, तुम खो जाओगे, बुद्ध को ज्ञान हुआ, तो उन्होंने पहला उदघोष किया कि अब मुझे निर्वाण हो जाएगा, सब शून्य हो जाएगा। शंकर ने दूसरी बात पसंद दुख में कोई भी डाल न सकेगा। अब मुझे दुख में डालने का कोई की. ब्रह्म हो जाओगे, कुछ खोएगा नहीं, सब कुछ पा लिया। 1. कछ खोएगा नहीं. सब कछपा लिया जाएगा। उपाय न रहा। तो कथा है कि ब्रह्मा ने उनको पछा कि आप ऐसा चाहे कहो शून्य, चाहे कहो पूर्ण। शून्य का अर्थ है, बूंद खो गई। क्यों कहते हैं? तो बुद्ध ने कहा, चूंकि अब मैं हूं ही नहीं। मुझे दुख पूर्ण का अर्थ है, सागर बूंद में उतर आया। पर दोनों एक ही बात | में डालने का कोई उपाय नहीं, क्योंकि अब मैं हूं ही नहीं। जब तक को कहने के दो ढंग हैं। एक विधेय का ढंग है, एक निषेध का ढंग | मैं था, तब तक मुझे दुख में डाला जा सकता था। है; जो भी प्रीतिकर हो। बुद्ध शून्य की भाषा पसंद करते हैं। अगर आपको पूर्ण की भाषा प्रज्ञावान पुरुष बुलाते हैं कि मिटो, क्योंकि उन्होंने अपनी तरफ | पसंद हो, तो समझें पूर्ण की तरफ से। शून्य की भाषा पसंद हो, तो से अनुभव किया है कि जब तक वे मिटे नहीं, तभी तक दुख में | शून्य की तरफ से। लेकिन सिर्फ भाषा में मत खोए रहें; कुछ करें। रहे। जब वे मिटे, तब आनंद हो गया। या तो बूंद को मिटाएं सागर में या सागर को बुलाएं बूंद में। जब आपका होना ही कष्ट है। आप ही कांटा हो, जो चुभता है। और | तक यह महामिलन न हो, तब तक दुख बना ही रहता है। जब तक आप हो, कांटा चुभता ही रहेगा। आप लाख उपाय करो अब हम सूत्र को लें। सुख की व्यवस्था के, वे असफल होंगे, क्योंकि कांटा आप हो। | और वे मनष्य दंभ मान और मद से यक्त हए किसी प्रकार भी आप कितना ही सुखद बिस्तर तैयार कर लो और सुंदर भवन बना न पूर्ण होने वाली कामनाओं का आसरा लेकर तथा मोह से मिथ्या लो, लेकिन वह कांटा चुभता ही रहेगा। | सिद्धांतों को ग्रहण करके भ्रष्ट आचरणों से युक्त हुए संसार में ___महल बड़े होते जाते हैं, दुख नष्ट नहीं होता। संपत्ति के ढेर लगते बर्तते हैं। जाते हैं, दुख नष्ट नहीं होता। संपदा, यश, कीर्ति मिलती जाती है, | तथा वे मरणपर्यंत रहने वाली अनंत चिंताओं को आश्रय किए दुख नष्ट नहीं होता, बल्कि कांटा चुभता ही चला जाता है। शायद हुए और विषय-भोगों के भोगने में तत्पर हुए इतना मात्र ही आनंद और जोर से चुभता है। जितना सुख का आप इंतजाम करते हैं, | है, ऐसा मानने वाले हैं। कांटा उतने जोर से चुभता है। क्योंकि सुख में पृष्ठभूमि बन जाती । इसलिए आशारूप सैकड़ों फांसियों से बंधे हुए और काम-क्रोध है, और कांटा और भी ज्यादा पीड़ादायी मालूम होता है। के परायण हुए विषय-भोगों की पूर्ति के लिए अन्यायपूर्वक 359
SR No.002410
Book TitleGita Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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