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* शोषण या साधना *
वासना की आदत बनती है। और जितनी आदत बनती है, उतनी | | बिलकुल गलत है। यह साधु द्वैतवादी था। सोहम् अद्वैतवादी का मांग बढ़ती है।
मंत्र है। इसने कहा, यह बिलकुल गलत है; यह पाठ ठीक नहीं है। बड़ी कठिनाई है, बड़ी दुविधा है। अगर वासना को दबाएं, तो | | इससे तुम भटक जाओगे। पीछा करती है; अगर पूरा करें, तो आदत बनती है। दोनों स्थितियों ___ उस गरीब सीधे आदमी ने कहा, आप सुधार कर दें। उस साधु में वासना उलझा देती है। और तीसरे का हम कभी प्रयोग नहीं | | ने कहा, दासोहम्, मैं तेरा दास हूं, यह पाठ करो। सोहम् नहीं, करते, कि हम वासना को सिर्फ देखें; न तो दबाएं, न पूरा करें; न | दासोहम्। उसमें दा और जोड़ दो। उस गरीब आदमी ने दा जोड़ तो उससे लड़ें, और न उसके गुलाम बनकर उसके पीछे चलें। ।
दिया। दो पंथ हैं जगत में। एक पंथ है वासना पूरे करने वालों का; | दो-चार महीने बाद फिर एक अद्वैतवादी साधु का गांव में उनको ही आसुरी संपदा वाले लोग कहा है। एक पंथ है वासनाओं | आगमन हुआ। लोगों ने खबर दी। उसने कहा कि बिलकुल गलत से लड़ने वालों का; उनको दैवी संपदा वाले लोग नहीं कहा है, वे | है। द्वैत तो आना ही नहीं चाहिए मंत्र में। यह दासोहम् ठीक नहीं भी आसुरी संपदा वाले लोग हैं। फर्क इतना ही है कि कुछ आसुरी | है। तुम इसमें एक स और जोड़ दो, सदा सोहम्, सदा मैं वही हूं। संपदा वाले लोग सीधे पैर के बल खड़े हैं; कुछ आसुरी संपदा वाले | गरीब आदमी ने कहा, अब जैसी आपकी मरजी! लोग सिर के बल खड़े हैं, शीर्षासन कर रहे हैं।
थोड़ी-बहुत शांति पहले मिली थी, दूसरे में उससे भी कम हो एक तीसरा वर्ग है दैवी संपदा वाले व्यक्ति का। वह लड़ता ही गई। अब तीसरे में वह बहुत उलझ गया। वह भी कम हो गई। नहीं, वह वासना का सिर्फ साक्षी होता है। और जितना गहरा | | लेकिन अब साधु ने कहा, तो वह सदा सोहम् करने लगा। साक्षी-भाव होता है, वासना उसी तरह जड़-मूल से जलकर नष्ट | कुछ ही दिन बाद फिर एक द्वैतवादी साधु का गांव में आगमन हो जाती है। न तो उसे दबाना पड़ता है, न उसे पूरा करना पड़ता है। हुआ। उसने कहा कि यह बिलकुल गलत है। अद्वैत की बात ही
दोनों हालतों में कठिनाई है। और ये दोनों पंथ खड़े हैं और आप गलत है। तुम इसमें एक दा और जोड़ दो, दास दासोहम्। तो उस सब भी इन दोनों पंथों में डांवाडोल होते रहते हैं। सुबह सोचते हैं गरीब ने कहा कि मैं बिलकुल पागल हो जाऊंगा। थोड़ी-बहुत कि गलत; सांझ सोचते हैं सही। आज सोचते हैं, वासना पूरी कर | शांति मिलना शुरू हुई थी, सब नष्ट हो गई। और अब कब अंत लें; कल वासना से लड़कर दमन करते हैं। और ऐसा डोलते रहते | | होगा इसका! हैं और जीवन नष्ट होता चला जाता है।
मनुष्य की अवस्था करीब-करीब ऐसी है। वहां दो वर्ग हैं हमारे हमारी अवस्था ऐसी है। मैंने सुना है, एक गांव में एक साधु का | | जीवन में। चारों तरफ दोनों वर्गों में बंटे हुए लोग हैं। कुछ हैं, जो आगमन हुआ। वह अद्वैतवादी साधु था। गांव में एक गरीब सीधा भोग की तरफ धक्का दे रहे हैं। कुछ हैं, जो दमन की तरफ धक्का आदमी था। इस साधु ने उसे पकड़ लिया; रास्ते से जा रहा था। वह दे रहे हैं। कुछ हैं, जो जीवन के विषाद से भरे हैं और कह रहे हैं, सीधा आदमी अपने खेत जा रहा था, सो उसे पकड़ लिया और कहा | | सब तोड़ डालो। और कुछ हैं, जो जीवन के उत्साह से भरे हैं और कि रुको, क्या जिंदगी खेत में ही गंवा दोगे? कुछ स्मरण करो! यह कह रहे हैं, सब भोग डालो। और उन दोनों के बीच में मनुष्य जगत माया है। उस सीधे आदमी ने कहा, अब आपने शिक्षा ही दी, विक्षिप्त हुआ जाता है। तो कुछ रास्ता बता दें। तो साधु ने उसे एक मंत्र दिया। मंत्र था और इन दोनों को अगर आप रोज बदलते रहे, तो एक सोहम्, कि सदा सोहम्-सोहम् का जाप करते रहो; मैं वही हूं, आई | कनफ्यूजन, चित्त का खंड-खंड हो जाना, एक स्कीजोफ्रेनिक, एम दैट, सोहम्। कुछ दिनों बाद वह गरीब सीधा आदमी सोहम् का | | खंडित चित्त की दशा पैदा होती है। जहां फिर कुछ भी नहीं सूझता, जाप करता रहा।
जहां कुछ ठीक नहीं मालूम पड़ता, कुछ गलत नहीं मालूम पड़ता। गांव में दूसरे साधु का आगमन हुआ। लोगों ने उस दूसरे साधु | | और कहां जाएं, और कहां न जाएं! एक पैर बाएं चलता है, दूसरा को बताया कि हमारे गांव में एक सीधा-सादा किसान है, लेकिन | दाएं चलता है। एक आगे जाता है, दूसरा पीछे जाता है। जीवन सोहम् का जाप करता है, और बड़ा प्रसन्न रहता है। साधु ने कहा, | । अस्तव्यस्त हो जाता है। बिलकुल गलत। उसे बुलाकर ले आओ। उससे कहा कि यह | लेकिन हमारी भी अड़चन है। और वह अड़चन यह है कि इन
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