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________________ * गीता दर्शन भाग-7 * भीतर छिपी है सिद्धि। वह स्वभाव, वह परम निर्वाण या मोक्ष भीतर | है, फिर आ जाता है, फिर आ जाता है। रिकरेंस, पुनरावृत्ति भीतर छिपा है। होती रहती है। जैसे ही मन नहीं, कि हमें अपने होने का पता चल जाता है कि ___ एक बहुत बड़ा वैज्ञानिक इस संबंध में अध्ययन कर रहा था, तो हम कौन हैं। इस मन के कारण न तो हमें अस्तित्व की वास्तविकता बहुत हैरान हुआ। क्योंकि अगर हम सोच लें कि एक विचार एक दिखाई पड़ती है और न अपनी। यह प्रिज्म दोहरा है। यह संसार को | | सेकेंड लेता हो, क्योंकि विचार ज्यादा वक्त नहीं लेता, एक सेकेंड तोड़ता है, बाहर अस्तित्व को तोड़ता है और भीतर स्वयं को तोड़ता | | में झलक आ जाती है, तो आप एक मिनट में कम से कम साठ है। तो भीतर हमें सिवाय विचारों के, वासनाओं के और कुछ भी | विचार करते हैं। फिर इस साठ में आप और साठ का गुणा करें, तो दिखाई नहीं पड़ता। | एक घंटे में इतने विचार। फिर इसमें आप चौबीस का गुणा करें, तो ह्यूम ने कहा है कि जब भी मैं अपने भीतर जाता हूं, तो मुझे | एक दिन में इतने विचार। कई लाख विचार! बड़े से बड़ा विचारक सिवाय वासनाओं के, विचारों के, कामनाओं के, कल्पनाओं के, | भी कई लाख विचार एक दिन में दावा नहीं कर सकता। स्वप्नों के और कुछ भी नहीं मिलता। और लोग कहते हैं, भीतर तो आप भीतर बड़ी दरिद्रता पाएंगे। वे ही विचार! फिर तो आपको जाओ तो आत्मा मिलेगी। ह्यूम ने कहा है कि अनुभव से मैं कहता | खुद भी हंसी आएगी कि मैं कर क्या रहा हूं! जिस बात को मैं हजार हूं कि भीतर बहुत बार जाकर देखा, आत्मा कभी नहीं मिलती। और दफा सोच चुका हूं, उसको फिर सोच रहा हूं। वे ही शब्द हैं, वे ही हजार चीजें मिलती हैं। | भीतर भाव हैं, वे ही मुद्राएं हैं। फिर वही दोहर रहा है यंत्रवत। आप भी प्रयोग करेंगे, तो ह्यूम से राजी होंगे। प्रयोग नहीं करते, बाहर संसार भी दौड़ रहा है। वर्षा आएगी, सर्दी आएगी, गरमी इसलिए आप सोचते हैं, भीतर आत्मा छिपी है। भीतर जाते ही नहीं, | | आएगी, मौसम घूम रहे हैं। सूरज निकलेगा, डूबेगा; चांद बड़ा इसलिए कभी मौका ही नहीं आता कि आप समझ सकें कि भीतर | होगा, छोटा होगा। वर्तुल है। सारी चीजें वर्तुल में घूम रही हैं, बाहर आपको क्या मिलेगा। आप भी भीतर जाएंगे तो घुम से राजी होंगे। | भी और भीतर भी। व्हील्स विदिन व्हील्स, चाकों के भीतर छोटे क्योंकि जब तक मन से छुटकारा न हो, तब तक भीतर भी इंद्रधनुष चाक घूम रहे हैं। उनके भीतर और छोटे चाक घूम रहे हैं। मिलेगा, सात रंग मिलेंगे; वास्तविक किरण नहीं मिलेगी, मौलिक अपनी घड़ी खोलकर भीतर देखें, उसमें जैसी हालत है, वैसी किरण नहीं मिलेगी। आपके मन की है। चाक हैं। बहुत-से चाक हैं। और एक चाक यह प्रिज्म दोहरा है। बाहर तोड़ता है, अस्तित्व संसार हो जाता | दूसरे को घुमा रहा है, दूसरा तीसरे को घुमा रहा है, सब घूम रहे है। भीतर तोड़ता है, अस्तित्व विचारों में बंट जाता है। भीतर | हैं। लेकिन कुछ बंधे हुए विचार हैं, वे ही दौड़ रहे हैं बार-बार। प्रतिपल विचार चल रहे हैं। इसलिए भारत कहता रहा है कि बाहर भी संसार है, भीतर भी यह संसार शब्द और भी सोचने जैसा है। संसार शब्द का | | संसार है। क्योंकि वर्तुलाकार गति है। और जब तक इन चाकों से मतलब होता है, चाक, दि व्हील। संसार का मतलब होता है, जो | आप मुक्त न हो जाएं, तब तक सिद्ध न होंगे। घूमता रहता है गाड़ी के चाक की तरह। सिद्ध का अर्थ है, जो घूमने के बाहर हो गया। कभी आपने अपने मन के संबंध में सोचा कि मन बिलकुल प्रदर्शनियां लगती हैं, मेले भरते हैं, तो बच्चों के लिए घूमने के गाड़ी के चाक की तरह घूमता है। वही-वही विचार बार-बार घूमते | झूले होते हैं। घोड़े हैं, हाथी हैं, शेर हैं-झूलों में। बच्चे उन पर बैठे रहते हैं। आप एक दिन की डायरी बनाकर देखें। सुबह से उठकर | हैं और झूले चक्कर काट रहे हैं। और बच्चे बड़ा आनंद लेते हैं, लिखना शुरू करें शाम तक। आप बड़े चकित हो जाएंगे कि आपके | | जितने जोर से चक्कर चलता है। और बच्चों को ऐसा लगता है, कहीं पास बड़ी दरिद्रता है, विचार की भी दरिद्रता है। वही विचार फिर | | पहुंच रहे हैं। यात्रा बहुत होती है, पहुंचते कहीं भी नहीं हैं। वह अपनी घड़ी, आधा घड़ी बाद आ जाता है। जगह पर घूम रहा है। शेर, हाथी, घोड़े, उन पर बैठने का मजा; फिर और अगर आप एक दो-चार महीने की डायरी ईमानदारी से इतनी तेज गति; कहीं पहुंचने का खयाल बड़ा रस देता है। रखें, तो आप पाएंगे कि इन विचारों के बीच वैसी ही श्रृंखला है, | | करीब-करीब हम सब वैसी ही बच्चों की हालत में हैं। थोड़ा जैसी गाड़ी में लगे हुए आरों की होती है। वही स्पोक फिर आ जाता | हमारा झूला बड़ा है और वहां भी हाथी, घोड़े हैं। | 10
SR No.002410
Book TitleGita Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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