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* गीता दर्शन भाग-7*
जगह नहीं बचती। क्योंकि जिस दिन आप परमात्मा को भी जान लें अगर दिदरो की बात सच है, उसका तो अर्थ यह हुआ कि अगर प्रयोगशाला में और पदार्थों की भांति, जैसा आक्सीजन और | हम कुछ ईंटों को फेंकते जाएं, तो कभी रहने योग्य मकान दुर्घटना हाइडोजन को जानते हैं, ऐसा परमात्मा को जान लें: जैसे से बन सकता है। सिर्फ फेंकते जाएं। या एक प्रेस को हम बिजली आक्सीजन और हाइड्रोजन को मिलाकर पानी बनाते हैं, ऐसा से चला दें और उसके सारे यंत्र चलने लगे, तो केवल संयोग से परमात्मा का विश्लेषण कर लें, मेल-जोल करके टयूब में उसको गीता जैसी किताब छप सकती है। तैयार कर दें; जिस दिन आप परमात्मा को जान लेंगे पदार्थ की ___ दैवी संपदा वाला व्यक्ति देखता है कि जगत में एक तरह-विज्ञान की यही धारणा है कि सभी कुछ हम जान | | रचना-प्रक्रिया है। जगत के पीछे चेतना छिपी है। और जगत के लेंगे—उस दिन जानने को कुछ भी शेष नहीं बचेगा। प्रत्येक कृत्य के पीछे कुछ राज है। और राज कुछ ऐसा है कि हम
कृष्ण कहते हैं, आसुरी संपदा वाला व्यक्ति जगत में कोई रहस्य उसकी तलहटी तक कभी न पहुंच पाएंगे, क्योंकि हम भी उस राज नहीं मानता। और दैवी संपदा वाला व्यक्ति मानता है कि जगत एक के हिस्से हैं; हम उसके स्रोत तक कभी न पहुंच पाएंगे, क्योंकि हम अनंत रहस्य है, एक पहेली, जिसे हम हल करने की कितनी ही उसकी एक लहर हैं। कोशिश करें, हम हल न कर पाएंगे।
मनुष्य कुछ अलग नहीं है इस रहस्य से। वह इस विराट चेतना और वह जो सदा हल के बाहर छूट जाता है, वही परमात्मा है। में जो लहरें उठ रही हैं, उसका ही एक हिस्सा है। इसलिए न तो वह वह जो हमारी सब कोशिश के बाद भी अज्ञेय, अननोएबल रह | इसके प्रथम को देख पाएगा, न इसके अंतिम को देख पाएगा। दूर जाता है, जिसके पास जाकर हम अवाक हो जाते हैं, जिसके पास खड़े होकर देखने की कोई सुविधा नहीं है। हम इसमें डूबे हुए हैं। जाकर हमारा हृदय ठक से रुक जाता है, जिसके पास जाकर हमारे जैसे मछली को कोई पता नहीं चलता कि सागर है। और मछली विचार की परंपरा एकदम टूट जाती है, जिसके पास हम अपना | सागर में रहती है, फिर भी सागर का क्या रहस्य जानती है! वैसी सध-बध खो देते हैं. जिसके पास हम मस्ती से तो भर जाते हैं. | ही अवस्था मनुष्य की है। लेकिन जानकारी बिलकुल खो जाती है, उस तत्व का नाम ही | जितना ही ज्यादा दैवी संपदा की तरफ झुका हुआ व्यक्ति होगा, परमात्मा है। वही है मिस्टीरियम, रहस्यमय।
उतना ही तर्क पर उसका भरोसा कम होने लगेगा, उतना ही काव्य तो कृष्ण कहते हैं, आसुरी संपदा वाला व्यक्ति मानता है, कोई पर उसकी निष्ठा बढ़ने लगेगी, उतना ही वह जगत में सब तरफ रहस्य नहीं है। जगत तथ्यों का एक जोड़ है; सब जाना जा सकता उसे रहस्य की पगध्वनि सुनाई पड़ने लगेगी। फूल खिलेगा, तो उसे
परमात्मा का इंगित दिखाई पड़ेगा। इसलिए आसुरी संपदा वाले व्यक्ति को न तो जीवन में कोई | वैज्ञानिक के सामने भी फूल खिलता है, तो वैज्ञानिक उसमें कुछ काव्य दिखाई पड़ता, न कोई सौंदर्य दिखाई पड़ता, न कोई प्रेम तथ्यों की खोज करता है। वह देखता है कि फूल में जरूर कोई दिखाई पड़ता: क्योंकि ये सभी तत्व रहस्यपर्ण हैं। आसरी संपदा कारण है! क्यों खिला है? तो फूल की केमिकल परीक्षा करता है, वाला व्यक्ति जीवन को गणित से नापता है, सभी चीजों को | जांच-पड़ताल करता है, उसके रसों की जांच-पड़ताल करता है, नापता-तौलता है। और सभी चीजों को पदार्थ की तरह व्यवहार | और एक नियम तय करता है कि इसलिए खिला है। करता है। इस जगत में उसे कोई व्यक्तित्व नहीं दिखाई पड़ता। यह धार्मिक व्यक्ति, दैवी संपदा का व्यक्ति फूल का विश्लेषण नहीं जगत जैसे एक मिट्टी का जोड़ है, पदार्थ का जोड़ है। और यहां जो करता, लेकिन फूल का जो संकेत है, जो सौंदर्य है, फूल का जो भी घट रहा है, यह सांयोगिक है, एक्सिडेंटल है।
खिलना है, वह जो जीवन का प्रकट होना है, उस इशारे को पश्चिम के एक बड़े नास्तिक दिदरो ने लिखा है कि जगत का न | पकड़ता है। और तब एक फूल उसके लिए परमात्मा का प्रतीक तो कोई बनाने वाला है, न जगत के भीतर कोई रचना की प्रक्रिया हो जाता है। तब एक छोटी-सी हिलती हवा में पत्ती भी उसके लिए है, न इस जगत का कोई सृजनक्रम है। जगत एक संयोग, एक परमात्मा का कंपन हो जाती है। तब यह सारा जगत परमात्मा का एक्सिडेंट है। घटते-घटते, अनंत घटनाएं घटते-घटते यह सब हो |
नृत्य हो जाता है। गया है। लेकिन इसके होने के पीछे कोई राज नहीं है।
परमात्मा से अर्थ है, रहस्य। परमात्मा से आप यह मत सोचना
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