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________________ * गीता दर्शन भाग-7 * की प्रतीक्षा करनी पड़ती है, तो आपकी गुठली तो जन्मों-जन्मों से वैज्ञानिक कहते हैं कि सौ घटनाएं घट रही हैं, उनमें से हम केवल सख्त है। वह पथरीली हो गई है। उसे पिघलाने में वक्त लगेगा, | | दो को पकड़ते हैं, अट्ठानबे छूट जाती हैं। उनसे हमारा कुछ श्रम लगेगा, सतत चोट करनी पड़ेगी। और तभी आपको पता लेना-देना नहीं है। हमारा कोई प्रयोजन नहीं है। चलेगा कि कृष्ण और बुद्ध कल्पना की बात नहीं कर रहे हैं, वह __आप एक रास्ते से गुजरें; सैकड़ों वृक्ष लगे हैं। एक चित्रकार उनका अनुभव है। उनकी गुठली टूटी और उन्होंने वृक्ष को बढ़ता | गुजरे उसी रास्ते से, तो उसे हर वृक्ष की हरियाली अलग दिखाई हुआ देखा। उस वृक्ष की सुगंध उन्होंने अनुभव की, उस वृक्ष के | | पड़ती है। क्योंकि हर वृक्ष अलग ढंग से हरा है। हरा कोई एक रंग फूल उन्होंने पाए। उनका जीवन कृतकृत्य हआ है। | नहीं है, हरे में हजार रंग हैं। पर वह सिर्फ चित्रकार को दिखाई पड़त लेकिन चूंकि बहुत थोड़े लोग इतनी दूर तक जाने को राजी होते है, जिसको रंगों की सूझ है, जिसको रंगों में झुकाव है, जिसे रंगों हैं, इसलिए धर्म विरले लोगों के लिए रह जाता है। आमंत्रण सभी | || में रस है। आपको सब वृक्ष एक जैसे हरे हैं। के लिए है। आपको वही दिखाई पड़ता है, जो आप देखने चले हैं। जो आप तिब्बत में एक बहुत प्राचीन कथा है। एक दूर पहाड़ों में छिपा खोजने निकले हैं, उसकी पुकार आपको सुनाई पड़ जाती है। हुआ नया आश्रम निर्मित हुआ। तो जिस प्रधान आश्रम से उस | एक रास्ते से दो फकीर गुजर रहे थे। चर्च में घंटियां बजने लगीं। आश्रम का संबंध था, उस लामासरी का संबंध था, उस लामासरी | तो एक फकीर ने कहा...। बाजार था, बड़ा शोरगुल था। चीजें ली ने सौ लोगों का चुनाव किया जो जाकर उस आश्रम को सम्हालेंगे। | जा रही हैं, खरीदी जा रही हैं, बेची जा रही हैं, गाड़ियों से उतारी जा तो एक युवक शिष्य ने पूछा, लेकिन सौ की वहां जरूरत नहीं है। | रही हैं, चढ़ाई जा रही हैं। बड़ा शोरगुल था वहां; चर्च की घंटी का वहां तो पांच से काम चल जाएगा। तो गुरु ने कहा, सौ को | सुनाई पड़ना मुश्किल था। एक फकीर ने चर्च की घंटी सुनते ही बुलाओ, तो दस तो आते हैं। दस को भेजो, तो पांच पहुंच पाते हैं। | कहा, हम जल्दी चलें, प्रार्थना का समय हो गया, घंटी बज रही है। और इतने भी पहुंच जाएं, तो भी काफी है। उस दूसरे फकीर ने कहा, तुम भी अदभुत हो; इस शोरगुल में, इस धर्म तो सभी को बुलाता है। लेकिन सौ को बुलाओ, तो नब्बे | उपद्रव में तुम्हें चर्च की घंटी सुनाई पड़ गई! यहां किसी को सुनाई को तो सुनाई ही नहीं पड़ता निमंत्रण। क्योंकि हमें वही सुनाई पड़ता | नहीं पड़ रही है। उसने कहा, यहां भी कुछ चीजें सुनाई पड़ती हैं। है, जिसे सुनने को हम आतुर हैं। हमें सभी चीजें सुनाई नहीं पड़तीं। उसने एक रुपया खीसे से निकाला और सड़क पर गिरा दिया। खन्न अभी मैं यहां बोल रहा हूं। यदि आप मुझमें आतुर हैं, तो मैं जो | की आवाज हुई, पूरा बाजार देखने लगा। कह रहा हूं, वह सुनाई पड़ता है। लेकिन और बहुत-सी आवाजें चारों वे सब रुपए को सुनने को आतुर लोग हैं। चर्च की घंटी बज रही तरफ चल रही हैं. वे आपको सनाई नहीं पड़तीं। टेप रिकार्डर उनको थी. किसी के कान पर चोट न पड़ी। सब चौंक गए: सब ने भी पकड़ लेगा, क्योंकि टेप रिकार्डर का कोई चुनाव नहीं है। जब आस-पास देखा। वे सब रुपए की तलाश में निकले हुए लोग हैं। आप टेप सुनेंगे, तब आप हैरान होंगे कि ये इतनी आवाजें कोई रुपए की आवाज सुनाई पड़ जाएगी, चर्च की घंटी खो जाएगी। पक्षी बोला, कुत्ता भौंका, हवाई जहाज गया, ट्रेन आई-यह सब | चाहे चर्च की घंटी जोर से बज रही हो, तो भी खो जाएगी। पकड़ रहा है। उसका कोई चुनाव नहीं है। और अगर आप भी सब एक मां सो रही हो, रात तूफान हो, बादल गरज रहे हों, उसे पकड़ रहे हैं, तो उसका मतलब यह है कि आप भी चुन नहीं रहे हैं। सुनाई नहीं पड़ेगा। उसका छोटा-सा बेटा रात जरा-सा कुनमुना दे, जो हम चुनते हैं, वह हमें सुनाई पड़ता है; जो हम चुनते हैं, वह | जरा-सा रो दे, वह जग जाएगी। हमें दिखाई पड़ता है। अगर आप चोर हैं, तो रास्ते से गुजरते वक्त सौ को बुलाओ, नब्बे को सुनाई नहीं पड़ता। जिन दस को सुनाई आपको कुछ और दिखाई पड़ेगा, जो साहूकार को दिखाई नहीं पड़ पड़ता है, उनमें से भी शायद पांच समझ न पाएंगे। सुन भी लेंगे, सकता। अगर आप चमार हैं, तो रास्ते से गुजरते वक्त आपको लोगों | तो भी पकड़ न पाएंगे। सुन भी लेंगे, तो भी उनकी आत्मा के भीतर के जूते दिखाई पड़ेंगे, उनकी टोपियां दिखाई नहीं पड़ सकतीं। अगर | कोई झंकार पैदा न होगी, कोई प्रतिध्वनि न होगी। सुनेंगे कान से, आप दर्जी हैं, तो उनके कपड़े दिखाई पड़ेंगे, उनके चेहरे दिखाई नहीं | | बात खो जाएगी; कोई चोट न पड़ेगी कि जो सुना है, वह उन्हें पड़ सकते। आपकी जो रुझान है, वही दिखाई पड़ता है। | रूपांतरित कर दे। पांच सुनेंगे, समझेंगे। शायद उनमें से एक, जो 3381
SR No.002410
Book TitleGita Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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