________________
*गीता दर्शन भाग-7 *
चल पड़ती हैं।
हैं। गीता है वासना के आखिरी क्षण में साधना। महावीर की साधना महावीर का एक बहुत प्रसिद्ध वचन है कि जो आधा चल पड़ा, | | के सारे सूत्र पहले क्षण में हैं। इसलिए महावीर कहते हैं, अपने वह मंजिल पर पहुंच ही गया। क्योंकि बीच से लौटना मुश्किल है। । | मालिक बनो। क्योंकि अगर पहले क्षण में कोई निमित्त बन गया, तो
इसका कारण यही है कि हमारे भीतर दोहरे यंत्र हैं। आप अपनी व्यर्थ बह जाएगा वासना में। पहले क्षण में मालिक बन सकता है। किसी भी वृत्ति में इसका निरीक्षण करें, तो आपको पता चल जाएगा | जब तक इच्छा के अंतर्गत है सब, तब तक हम उसका त्याग कर कि एक सीमा तक आप चाहें, तो वापस लौट सकते हैं; हाथ के सकते हैं। पहले क्षण में निमित्त बनने की कोई भी जरूरत नहीं है। भीतर है। आप खुद ही वह सीमा-रेखा पहचान लेंगे। और अगर | और जो पहले क्षण में मालिक बन जाता है, उसे निमित्त बनने की अपने भीतर आपने उस सीमा को पकड़ लिया, जहां से इच्छाएं हाथ | | कभी भी जरूरत नहीं पड़ेगी। अंतिम क्षण आएगा नहीं। ' के बाहर हो जाती हैं, तो आप अपने मालिक हो सकते हैं। इसलिए महावीर की और कृष्ण की साधनाएं बिलकुल विपरीत
अर्जुन आखिरी घड़ी में, जब कि सब हो चुका, बस आखिरी | मालूम पड़ेंगी। और जो नहीं समझ सकते हैं, सिर्फ शास्त्र पढ़ते हैं, परिणाम होने को है, वहां आकर डांवाडोल हो गया है। उनको लगेगा कि वे विरोधी हैं। वे विरोधी नहीं हैं। __ और ध्यान रहे, सभी लोग वहीं आकर डांवाडोल होते हैं। | जैसे कि कोई आदमी पानी गरम कर रहा है, और अभी उसने क्योंकि जब पूरी चीजें प्रकट होती हैं, तभी हमें होश आता है। पहले | आग जलाई ही है। हम कहते हैं, अंगार बाहर खींच लो। अभी रुक तो चीजें छिपी-छिपी चलती हैं। बहुत धाराओं में चलती हैं। सकती है बात। अभी पानी गरम भी नहीं हुआ था। अभी कुनकुना छोटे-छोटे झरने बहते हैं। फिर सब झरने मिलकर जब बड़ा विराट भी नहीं हुआ थाअभी भाप बनना बहुत दूर था। अभी आंच पकड़ी नद बन जाता है, तब हमें दिखाई पड़ता है। फिर हमें लगता है, यह | ही नहीं थी पानी को। अभी पानी अपनी जगह था, आपने चूल्हा हमने क्या कर लिया। फिर हम भागना चाहते हैं। लेकिन अब घटना | जलाया ही था। अभी अंगारे, ईंधन वापस खींचा जा सकता है। हम से बड़ी हो गई। और अब भागने का कोई उपाय नहीं है। अब | महावीर कहते हैं, पहले क्षण में रुक जाओ; आधे के बाद रुकना पीछे हटने का कोई उपाय नहीं है।
| मुश्किल हो जाएगा, चीजें तुम्हारी सामर्थ्य के बाहर हो जाएंगी। अर्जुन उस घड़ी में बात कर रहा है, जहां कि चीजें स्वचालित हो और निश्चित ही, जो पहले क्षण में नहीं रुक सकता, वह आधे गई हैं, जहां कि युद्ध अस्तित्व की घटना बन गई है। इसे थोड़ा में कैसे रुकेगा? क्योंकि पहले में चीजें बहुत कमजोर थीं, तब तुम समझ लेना चाहिए। जहां यद्ध से अब लौटने का कोई उपाय नहीं. न रुक सके। आधी में तो बहत मजबत हो गईं, तब तम कैसे जहां युद्ध होगा। पानी सौ डिग्री तक गरम हो चुका। अगर हम नीचे | रुकोगे? और जब अंतिम, निन्यानबे डिग्री पर पानी पहुंच गया, तब से अंगारे भी निकाल लें, तो भी भाप बनेगी। यह भाप का बनना तो तुम कैसे रुकोगे! अब एक नैसर्गिक कृत्य हो गया है। और इसी घड़ी में आदमी अगर महावीर से अर्जुन पूछता, तो वे कहते, जिस दिन तू द्रौपदी घबड़ाता है। लेकिन उसकी घबड़ाहट व्यर्थ है। रुकना था, पहले को स्वयंवर करने चला गया था, उसी दिन लौट आना था। वह रुक जाना था।
पहला क्षण था। लेकिन कोई सोच भी नहीं सकता कि महाभारत का यह जो अर्जुन आखिरी क्षण में डांवाडोल हो रहा है। सभी का यह महायुद्ध द्रौपदी के स्वयंवर से शुरू होगा! मन होता है। नियम यह है कि या तो पहले क्षण में सजग हो जाएं बीज में वृक्ष नहीं देखे जा सकते। जो देख ले, वह धन्यभागी है।
और वासना की यात्रा पर न निकलें। और अगर कोई वासना अंतिम | | वह वहीं रुक जाएगा। वह बीज को बोएगा नहीं। वृक्ष के फलों का क्षण में पहुंच गई हो, तो घबड़ाएं मत। अब निमित्त होकर उसे पूरा कोई सवाल नहीं उठेगा। हो जाने दें। निमित्त होकर पूरा हो जाने दें!
लेकिन कृष्ण के सामने सवाल बिलकुल अन्यथा है। अंतिम पहले क्षण में आप मालिक हो सकते हैं, निमित्त होने की जरूरत | क्षण है। घटना घटकर रहेगी। चीजें उस जगह पहुंच गई हैं, जहां से न थी। यहीं कृष्ण, महावीर की साधनाओं का भेद है। और इसलिए लौटाई नहीं जा सकतीं। चीजों ने अपनी गति ले ली है। स्वचालित लोगों को लगता है कि ये तो बड़ी विपरीत बातें हैं।
हो गई हैं। अब युद्ध अवश्यंभावी है; भाग्य है; अब वह नियति है। जैन गीता को कोई आदर नहीं दे सकते, क्योंकि पूरे पहलू अलग इस क्षण में क्या करना?