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* चाह है संसार और अचाह है परम सिद्धि *
कामवासना फेंकी गई। उस दिन इसका बीज बो दिया गया। | खड़े हो गए हैं!
दुर्योधन भी चाहता था। अर्जुन के खुद दूसरे भाई भी चाहते थे। ___ ध्यान रहे, जब भी आप किसी भ्रांति में कदम उठाते हैं, तो पहले और चाह सभी की एक-सी है। गलत और सही चाह में कुछ भी कदम पर किसी को पता नहीं चलता। पहले कदम पर पता चल नहीं होता। अर्जन द्रौपदी को पा सका है. क्योंकि धनर्विद्या में
बस. अंतिम कदम पर कुशल है। तो द्रौपदी को पाना किसी कशलता पर निर्भर है, तो फिर | पता चलता है, जब पीछे लौटना मुश्किल होता है। दुर्योधन ने जुए में कुशलता दिखाने की कोशिश किया है और जब आप में पहली दफा क्रोध उठता है, पहली लहर, तब द्रौपदी को छीन लेना चाहा है। वह भी एक कुशलता है। कुशलता आपको पता नहीं चलता। जब आप छुरा लेकर किसी की छाती में का संघर्ष है।
भोंकने को ही हो जाते हैं, जब कि अपने ही हाथ को रोकना असंभव और महाभारत के एक-एक पात्र में उतरने जैसा है, क्योंकि वे | | हो जाता है, जब कि हाथ इतना आगे जा चुका कि अब लौटाया जीवन के प्रतीक हैं।
नहीं जा सकता, कि आप लौटाना भी चाहें, तो अब मोमेंटम हाथ द्रौपदी की शादी के बाद पांडवों ने एक महल बनाया, वह उत्सव का ऐसा है कि अब लौट नहीं सकता। हाथ को जो गति मिल गई के लिए था। और दुर्योधन और उसके भाइयों को निमंत्रित किया। | है, वह छुरा छाती में घुसकर रहेगा। अब एक ही उपाय है, इतना महल ऐसा बनाया था, उस दिन की श्रेष्ठतम इंजीनियरिंग की | आप कर सकते हैं कि चाहें तो छुरे की धार अपनी छाती की तरफ व्यवस्था की थी, कि जहां दरवाजे नहीं थे, वहां दरवाजे दिखाई | कर लें या दूसरे की तरफ कर दें। लेकिन हाथ चल पड़ा। या तो पड़ते थे, इस भांति कांचों का, दर्पणों का जमाव किया। जहां | | हत्या होगी या आत्महत्या होगी। दीवार थी, वहां दरवाजा दिखाई पड़ता था; भ्रामक था। जहां | ___जीवन में पहले कदम पर ही कुछ किया जा सकता है। इस संबंध दरवाजा था, वहां दीवार मालूम होती थी। दर्पणों के आयोजन से | | में भी मनुष्य के अंतस्तल की एक यांत्रिक व्यवस्था को समझ लेना ऐसा किया जा सकता है।
जरूरी है। और जब दुर्योधन उन झूठे दरवाजों में टकरा गया जहां दीवार थी, मनुष्य के व्यक्तित्व में दो तरह के यंत्र हैं। एक, जो स्वेच्छा से तो द्रौपदी हंसी और उसने कहा कि अंधे के लड़के हैं। यह व्यंग्य | चालित है। हम इच्छा करते हैं, तो चलते हैं। दूसरे यंत्र हैं, जो भारी पड़ गया। पांडव हंसे। उन्होंने मजा लिया। अंधे के बेटे तो स्वेच्छाचालित नहीं हैं, जो स्वचालित हैं। जिनमें हमारी इच्छा कुछ जरूर कौरव थे। लेकिन कोई भी अपने बाप को अंधा नहीं सुनना नहीं कर सकती। और जब पहले यंत्र से हम काम लेते हैं, तो एक चाहता, अंधा हो तो भी। कोई भी अपने को बुरा नहीं देखना चाहता। सीमा आती है, जहां से काम पहले यंत्र के हाथ से दूसरे यंत्र के
और ध्यान रहे, गाली एक बार क्षमा कर दी जाए, व्यंग्य क्षमा हाथ में चला जाता है। नहीं किया जा सकता। गाली उतनी चोट नहीं करती, व्यंग्य __ समझें कि आप कामवासना से भर गए हैं। एक सीमा है, जब सूक्ष्मतम गाली है। किसी पर हंसना गहन से गहन चोट है। इसलिए | तक आप चाहें, तो रुक सकते हैं। लेकिन एक सीमा आएगी, जहां ध्यान रखना, आप गाली देकर दूसरों को इतनी चोट नहीं पहुंचाते; | | कि शरीर का स्वचालित यंत्र कामवासना को पकड़ लेगा। फिर जब कभी आप मजाक करते हैं, तब जैसी आप चोट पहुंचाते हैं, | | आप रुकना भी चाहें, तो नहीं रुक सकते। फिर रुकना असंभव है। वैसी कोई गाली नहीं पहुंचा सकती।
सभी वासनाएं दोहरे ढंग से काम करती हैं। पहले हम उन्हें इच्छा महावीर ने अपने वचनों में कहा है कि साधु किसी का व्यंग्य न से चलाते हैं। फिर इच्छा उन्हें आग की तरह उत्तप्त करती है, सौ करे। इसको हिंसा कहा है, बड़ी से बड़ी हिंसा।
डिग्री पर लाती है, फिर वे भाप बन जाती हैं। फिर इच्छा के हाथ के लेकिन अर्जुन ने उस दिन सवाल नहीं उठाया कि हम एक बड़ी | | बाहर हो जाती हैं। फिर आपके भीतर यंत्रवत घटना घटती है। हिंसा कर रहे हैं। न, यह सब वासना का खेल चलता रहा। अब ___ इसलिए बुद्ध ने कहा है, क्रोध पैदा हो, उसके पहले तुम जग यह उसकी अंतिम परिणति है। यह युद्ध उस सब का जाल है। यहां | | जाना। वासना उठे, उसके पहले तुम उठ जाना और होश से भर आकर उसे पता चला। यहां उसकी बुद्धि ने जब देखा चारों तरफ | | जाना। क्योंकि पहला कदम अगर उठ गया, तो तुम्हें अंतिम कदम नजर डालकर कि क्या हमने कर डाला है! और हम कहां आकर | | उठाने की भी मजबूरी हो जाएगी। मध्य में रुकना असंभव है। चीजें