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* गीता दर्शन भाग-7 *
को सम्हालकर नहीं चल रहे हैं, तो इतनी विक्षिप्त दुनिया में आप । मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि अगर आपके मित्र जो आपके संबंध शांत नहीं रह सकते। और दूसरे को जिम्मेवार मत समझें। दूसरा में पीठ पीछे कहते हैं, उस सबका आपको पता चल जाए, तो जिम्मेवार है नहीं; वह अपने से परेशान है। कोई आपको परेशान दुनिया में एक भी मित्र खोजना मुश्किल है। आपके मित्र आपकी करना नहीं चाह रहा है; वह अपने से परेशान है। परेशानी कोई कहां | | पीठ पीछे जो कहते हैं, अगर आपके सामने कह दें, आपको पता फेंके! जो निकट हैं, उन्हीं पर फेंकी जाती है।
चल जाए, तो दुनिया में मित्रता असंभव है! तो जो व्यक्ति बिना अशांत हुए, सारी उपद्रवों की स्थिति में एक | लेकिन पता तो चल ही जाता है। और मित्रता सच में ही असंभव सूत्र ध्यान रखता है कि मुझे शांत रहना है चाहे कुछ भी हो, वह | | हो गई है। मित्र होना मुश्किल है। जो आदमी भी निंदा में रस लेता थोड़े ही दिनों में इस कला में पारंगत हो जाता है।
है, उसका इस जगत में कोई भी मित्र नहीं हो सकता। जो दूसरे को किसी की भी निंदादि न करना...।
ओछा करने में, नीचा करने में, बुरा करने में शक्ति लगाता है, वह बड़ा रस आता है किसी की निंदा करने में, क्योंकि किसी की | भला अपने मन में सोच रहा हो कि अपने को अच्छा सिद्ध कर रहा निंदा परोक्ष में अपनी प्रशंसा है। जब भी आप कहते हैं, फलां | है, वह इस कोशिश में ही बुरा होता जा रहा है। आदमी बुरा है, तो आप भीतर से यह कह रहे हैं कि मैं अच्छा हूं। भले आदमी का लक्षण दूसरे में भलाई को खोजना है। और हम जब आप सिद्ध कर देते हैं कि फलां आदमी चोर है, आपने सिद्ध | जितनी भलाई दूसरे में खोज लेते हैं, उतना ही हमारे भले होने के कर लिया कि मैं अचोर हूं।
आधार निर्मित होते हैं। और अक्सर चोर दूसरों को चोर सिद्ध करने की कोशिश करते सब भूत प्राणियों में दया, अलोलुपता, कोमलता तथा लोक रहते हैं, क्योंकि यही उपाय है उनके पास। अगर यहां कोई किसी और शास्त्र के विरुद्ध आचरण में लज्जा और व्यर्थ चेष्टाओं का की जेब काट ले, तो जेबकतरे को बचने का सबसे अच्छा उपाय | अभाव...। यह है कि वह सबसे ज्यादा शोरगुल मचाए कि बहुत बुरा हुआ; जो भी शास्त्र में कहा गया है, जो भी समाज की प्रचलित चोरी नहीं होनी चाहिए; पकड़ो, किसने चोरी की! यह सबसे अच्छा | व्यवस्था है, उस व्यवस्था में जहां तक दखल न बने। जब तक कि उपाय है। उसको तो आप भल ही जाएंगे कि यह आदमी चोरी कर आत्मा का ही कोई सवाल न हो. जब तक सकता है।
पर ही कोई आघात न पड़ता हो, तब तक समाज और शास्त्र की जितने बुरे लोग हैं, वे दूसरे की निंदा में संलग्न हैं। वे इतना जो व्यवस्था है, उसको खेल का नियम मानकर चलना उचित है। शोरगुल मचा रहे हैं दूसरे की बुराई का कि कोई सोच भी नहीं __ खेल के नियम का कोई बड़ा मूल्य नहीं है। वह ऐसे ही है, जैसे सकता कि ये बुरे हो सकते हैं। इसलिए साधु भी जब दूसरे की निंदा | | रास्ते पर बाएं चलो; कोई दाएं चलने में पाप नहीं है। क्योंकि कुछ कर रहा हो, तब समझना कि साधुता खोटी है।
मुल्कों में लोग दाएं चलते हैं, तो वहां बाएं चलना कठिन है। तो निंदा का एक ही प्रयोजन है, वह अपनी बुराई को छिपाना है। बाएं चलो या दाएं चलो, यह कोई मूल्य की बात नहीं है। लेकिन दूसरे की बुराई को हम जितना बड़ा करके बताते हैं, उतनी अपनी | एक नियम, खेल का नियम है। बाएं चलने में सुविधा है, आपको बुराई छोटी मालूम पड़ती है। अगर आपको पता चल जाए कि सब भी, दूसरों को भी। अगर सभी लोग अपना नियम बना लें, तो रास्ते बेईमान हैं, तो आपको लगता है, फिर अपनी बेईमानी भी स्वीकार | | पर चलना मुश्किल हो जाएगा। हालांकि कोई नियम शाश्वत नहीं, योग्य है। इसमें हम कुछ नया नहीं कर रहे हैं; हम कुछ ज्यादा बुरे सब सापेक्ष हैं, सबकी उपयोगिता है। नहीं हैं; दूसरों से हम बेहतर हैं।
इस बड़े जगत में, जहां बहुत लोग हैं, मैं अकेला नहीं हूं, किसी दूसरे की निंदा का इसीलिए इतना रस है। जहां भी चार आदमी | व्यवस्था को चुपचाप मानकर चलना उचित है। इसका यह अर्थ मिलते हैं. बस. चर्चा का एक ही आधार है। उन चार में से भी एक नहीं है कि वह व्यवस्था कोई शाश्वत सत्य है; इसका केवल इतना चला जाएगा, तो वे तीन, जो चला गया उसकी निंदा शुरू कर देंगे। | अर्थ है कि हमने एक खेल का नियम तय किया है, उस नियम को और वे तीन फिर भी नहीं सोचते कि हममें से कोई गया यहां से, | हम पालन करके चलेंगे। कि बाकी दो हटते ही से यही काम करने वाले हैं।
और ध्यान रहे, खेल नियम पर निर्भर होता है; नियम हटा कि
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