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दैवीय लक्षण
व्यवस्था बदली और सारी दुनिया में वह व्यवस्था आज नहीं कल हो ही जानी चाहिए।
हर डाक्टर के हिस्से में मरीज हैं। मरीज का मतलब वे बीमार नहीं हैं; लेकिन उनको बीमार नहीं होने देना है। तो उनको चेक करते रहना है, उनकी फिक्र करते रहना है, बीमारी के पहले इलाज कर देना है। क्योंकि बीमारी के बाद इलाज करना अत्यंत जटिल हो जाता है। बीमारी अलग परेशान करती है, इलाज अलग परेशान करता है।
कुछ लोग बीमारी से मरते हैं, ज्यादा लोग डाक्टरी से मरते हैं। किसी तरह बीमारी से बच गए, तो फिर डाक्टर से बचना बहुत मुश्किल है। औषधियां ! फिर जहर को काटना हो, तो और जहर डालना पड़ता है। सारी औषधियां जहर हैं। फिर दो जहरों की लड़ाई आपके भीतर होती है, और आप केवल कुरुक्षेत्र हो जाते हैं। आप कुछ नहीं रह जाते फिर, दो जहर लड़ते हैं। फिर आपकी जो मट्टी पलीद उन दो जहरों के लड़ने में होती है, आप स्वस्थ भी हो जाएंगे, तो भी कभी स्वस्थ नहीं हो पाएंगे। बीमारी भी चली जाएगी, तो आपको मुर्दा छोड़ जाएगी। आप मरे हुए जीएंगे।
जब आप अशांत हो जाते हैं, तब शांत होना कठिन है। लेकिन इतनी देर रुकने की जरूरत क्या है? शांति तो साधी जा सकती है। शांति को तो जीवन का उठते-बैठते, रोजमर्रा का भोजन बनाया जा सकता है।
इसको ध्यान रखें कि आपको शांत रहना है। घर लौटे हैं, तो दरवाजे पर दो क्षण रुक जाएं, क्योंकि पत्नी कुछ कहेगी। वह दिनभर से अशांत है, वह अशांति आप पर फेंकेगी। दो क्षण रुक जाएं, तैयार हो जाएं। तैयारी का मतलब यह कि मैं शांत रहूंगा, चाहे पत्नी कुछ भी कहे; मैं इसको नाटक से ज्यादा नहीं समझंगा । दया करूंगा, क्योंकि बेचारी परेशान है।
मुल्ला नसरुद्दीन की लड़की का विवाह हुआ। तो लड़की दहाड़ मार-मारकर, छाती पीट-पीटकर रो रही थी। सब समझा रहे थे, वह सुन नहीं रही थी। फिर मुल्ला उसके पास गया। उसने कहा, बेटी, तू मत रो; तुझे ले जाने वाले रोएंगे। तू मेरी बेटी है; तू बिलकुल मत घबड़ा; थोड़ी देर की बात है। थोड़ा धैर्य रख!
जीवन में चारों तरफ विक्षिप्त लोग हैं, दुखी लोग हैं। वे अपने दुख और विक्षिप्तता को फेंक रहे हैं। फेंकने के सिवाय उनके पास
का कोई ढंग नहीं है, उपाय नहीं है। फेंकते हैं, तो थोड़ा जी लेते हैं। यह उनकी कैथार्सिस है। अगर आप उसके शिकार हो जाते
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हैं, अगर आप उससे उद्विग्न होते हैं, अशांत होते हैं, तो फिर आपके जीवन में शांति का स्वर कभी भी नहीं बज पाएगा।
क्योंकि चारों तरफ अशांत लोग हैं, तो आपको शांति साधनी होगी, और आपको सजग रहना होगा। चारों तरफ बीमार लोग हैं, आपको अपने चारों तरफ एक कवच निर्मित करना होगा, एक मिल्यू, एक वातावरण आपके चारों तरफ, कि चाहे कोई कुछ भी फेंके, आप अपनी शांति में थिर रहेंगे। थोड़े से होश की जरूरत है। यह हो जाता है।
इसे थोड़ा प्रयोग करके देखें। जब पत्नी नाराज हो रही हो, तब आप खड़े होकर देखें कि आप नाटक देख रहे हैं। इससे वह और भी नाराज होगी, यह भी ध्यान रखना। मगर तब आप और प्रसन्न होकर उसको देखना ।
अगर दो व्यक्तियों में एक व्यक्ति क्रोधित हो रहा हो और दूसरा नाटक की तरह देखता रहे, तो यह नाटक ज्यादा देर चल नहीं सकता। यह बढ़ेगा, उबलेगा, लेकिन फूट जाएगा, बिखर जाएगा, क्योंकि इसे बढ़ाने के लिए दोनों तरफ से सहारा चाहिए। समझदार पति-पत्नी निर्णय कर लेते हैं कि जब एक उपद्रव करेगा, तो दूसरा शांत रहेगा।
मुल्ला नसरुद्दीन किसी को कह रहा था कि मेरे घर में कभी झगड़ा नहीं होता। दूसरे ने कहा कि यह मानने योग्य नहीं है। यह | असंभव है कि घर हो और झगड़ा न हो ! घर यानी झगड़ा । तुम झूठ बोल रहे हो । नसरुद्दीन ने कहा कि नहीं, हमने पहले ही दिन एक बात तय कर ली, और वह बात यह तय कर ली कि सब छोटे-छोटे मसले पत्नी तय करेगी, बड़े-बड़े मसले मैं तय करूंगा। बड़े-बड़े मसले आज तक आए नहीं और कभी आएंगे भी नहीं, क्योंकि पहले ही पत्नी तय कर देती है कि सब छोटे मसले हैं। तो वही तय कर रही है।
इंग्लैंड में एक आदमी एक सौ बीस वर्ष तक जीया । तो उसकी एक सौ बीसवीं वर्षगांठ पर लोगों ने उससे पूछा कि कैसे तुम इतने स्वस्थ हो ?
उसने कहा कि हमने एक निर्णय कर लिया शादी के वक्त कि जब भी पत्नी नाराज होगी, मैं घर के बाहर चला जाऊंगा। तो यह अस्सी साल की घर के बाहर की जिंदगी, यह मेरे स्वास्थ्य का कारण है ! क्योंकि मैं अक्सर बाहर ही घूमता रहा हूं। घर तो कभी-कभी भीतर जाता हूं, फिर ज्यादातर मुझे बाहर ही, आउट डोर!
चारों तरफ विक्षिप्तता है सभी संबंधों में। और अगर आप अपने