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________________ * गीता दर्शन भाग-7 * अब तुम्हारा त्याग चलाओ! अब तुम्हारे पास जो त्याग की संपदा । इस फर्क को आप ठीक से समझ लेना। धन से कोई दुखी नहीं है, उसका उपयोग करो; हमें उस तरफ जाना है। पैसे मेरे पास हैं, | होता। और थोड़ी अकल हो, तो धन से आदमी सुखी हो सकता अगर तुमसे कुछ न बन पड़े, तो मैं पैसे देता हूं, हम उस तरफ हो है। और बेअकल आदमी हो, तो निर्धन होकर भी दुखी होता है, जाते हैं। धनी होकर भी दुखी होता है। फकीर मुस्कुराता रहा, वह जो त्याग का पक्षपाती था। फिर | निर्धन का दुख समझ में आता है। मगर मजे की बात यह है कि जिसके पास पैसे थे, उसने पैसे दिए, वे नदी पार किए। नदी पार | | निर्धन का भी दुख निर्धनता का दुख नहीं है। उसका भी दुख यही करके जिसके पास पैसे थे, उसने कहा, अब बोलो! है कि पकड़ने को कुछ भी नहीं है। हाथ खाली है। धनी का दुख उस पहले फकीर ने कहा, लेकिन त्याग से ही हम पार हुए। तुम | | यह है कि हाथ भर गए हैं, छोड़ने की हिम्मत नहीं है। पैसे छोड़ सके, तुम पैसे दे सके, इसीलिए हम पार हुए हैं। पैसे होने | | जो भी छोड़ने की कला सीख लेता है-त्याग उस कला का नाम से हम पार नहीं हुए हैं; पैसा छोड़ने से ही पार हुए हैं। और अगर | है-जीवन के आनंद के द्वार उसके लिए निरंतर खुलते जाते हैं। मैं पार नहीं हो रहा था, तो उसका कारण यह नहीं था कि मेरा त्याग | जितना ज्यादा छोड़ सकता है, उतना ही ज्यादा हलका होता जाता बाधा था; मेरे पास और त्याग की सुविधा न थी, और छोड़ने को | है। जितना छोड़ सकता है, उतनी ही आत्मा विकसित होती है। नहीं था; बस। तकलीफ मेरे त्याग की नहीं थी, त्याग मेरा कम पड़ | क्योंकि जितना हम पकड़ते हैं, उतने पदार्थ हम पर इकट्ठे होते जाते रहा था, और मेरे पास छोड़ने को नहीं था; थोड़ा और त्याग करने | हैं, उसमें हम दब जाते हैं। धीरे-धीरे, धीरे-धीरे ढेर लग जाता है की जरूरत थी। तुम कर सके। लेकिन सही मैं ही हूं। हम छोड़ने से | वस्तुओं का; हमारा कुछ पता ही नहीं रहता कि हम कहां हैं! इस पार आए। त्याग देवी संपदा का हिस्सा है। लेकिन हमें एक ही अनुभव है, इकट्ठा करने का। जैसा मैं देखता | शांति और किसी की भी निंदादि न करना...। हं। देखता है. जैसे-जैसे लोगों का धन बढता है. वे दखी होते जाते शांत होना हम भी चाहते हैं। लेकिन हम तभी शांत होना चाहते हैं। तब वे सोचते हैं कि शायद धन में दुख है। और तब शास्त्रों में | हैं, जब हम अशांत होते हैं। उनको सहारा भी मिल जाता है कि धन से कोई सुख नहीं मिलता। मेरे पास लोग आते हैं, वे कहते हैं, बड़े अशांत हैं; शांति का मेरी धारणा बिलकुल भिन्न है। धन से सुख मिल सकता है, | कुछ रास्ता बताइए। ये लोग वे हैं, जिनके घर में जब आग लग अगर धन त्यागने की क्षमता हो। धन से दुख मिलता है, अगर | जाए, तब वे कुआं खोदना शुरू करते हैं। इनका घर बचेगा नहीं। पकड़े बैठे रहो। धन से कोई दुख नहीं पाता, कंजूसी से लोग दुख | कुआं पहले खोदना पड़ता है। पाते हैं। धन क्यों दुख देगा? लेकिन धन छोड़ नहीं पाते। __ जब आप पूरी तरह अशांत हैं, तब शांत होना बहुत मुश्किल है। और मजबूरी यह है कि जितना ज्यादा हो, उतना ही छोड़ना लेकिन जब आप अशांत नहीं हैं, तब शांत होना बहुत आसान है। मुश्किल हो जाता है। जिसके पास एक पैसा है, वह एक पैसा दान | और जब आप अशांत नहीं हैं, तब अगर आप शांत होना सीख लें, दे सकता है; लेकिन जिसके पास एक करोड़ रुपया हो, वह एक तो अशांत होने की कोई जरूरत ही न होगी। घर में कुआं हो, तो करोड़ दान नहीं दे सकता। हालांकि दोनों के दान बराबर हैं। क्योंकि | शायद आग लगेगी ही नहीं। लग भी जाए, तो बुझाई जा सकती है। एक पैसा उसकी कुल संपदा है। औसत बराबर है। एक करोड़ दूसरे तो आप जब अशांत हो जाएं, तब शांति की तलाश मत करें। की कुल संपदा है। लेकिन जिसके पास एक पैसा है, वह पूरा दान | यह तलाश ऐसी नहीं होनी चाहिए कि जब बुखार आ जाए, तब दे सकता है; जिसके पास एक करोड़ रुपया है, वह पूरा दान नहीं | | आप चिकित्सक की खोज पर चले जाते हैं। अब तो दे सकता। चिकित्साशास्त्री भी कहते हैं कि यह ढंग गलत है, आदमी जब जितना ज्यादा धन हो, उतनी ही पकड़ने की वृत्ति बढ़ती है। | बीमार हो जाए, तब उसका इलाज करना; बड़ी देर कर दी। जितना हम पकड़ लेते हैं, उतना ही और पकड़ना चाहते हैं। फिर तो रूस में उन्होंने एक नई व्यवस्था ईजाद की है, वह यह कि दुखी होते हैं। अगर आज अमेरिका दुखी है, तो धन के कारण नहीं, डाक्टरों को तनख्वाह मिलती है बीमारों का इलाज करने के लिए धन की पकड़ के कारण। | नहीं, अपने मरीजों को बीमार न पड़ने देने के लिए। रूस में उन्होंने 3101
SR No.002410
Book TitleGita Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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