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________________ * गीता दर्शन भाग-7* एक आदमी को फांसी लग रही है, आप झूठ बोल दें, बच | सकता है, जब आप दूसरे को दोष देना बंद कर दें। सकता है वह आदमी। झूठ बोलने से, आपके देखने में तो जहां | | क्रोध का तर्क क्या है? क्रोध का तर्क एक ही है कि दूसरा तक मनुष्य की बुद्धि जाती है, यह परिणाम हो रहा है कि एक | भूल-चूक कर रहा है, दूसरा गलत कर रहा है। दूसरा ऐसा कर रहा आदमी का जीवन बच रहा है। अगर परिणाम की आप चिंता करेंगे, | है, जैसा उसको नहीं करना चाहिए। इससे आप भभकते हैं। तो सौ में निन्यानबे मौकों पर लगेगा कि झूठ से अच्छे परिणाम आ | अक्रोध की भाव-दशा तब निर्मित होगी. जब आप समझेंगे कि सकते हैं, सत्य से बुरे परिणाम आ सकते हैं। दूसरा जो कर रहा है, वह वही कर सकता है। दूसरा उसको इससे सत्य का अर्थ है कि परिणाम की चिंता ही मत करना। जैसा हो, अन्यथा करने का उपाय नहीं है। अगर एक आदमी आपको गाली दे उसे बेशर्त, बिना आगे-पीछे देखे, वैसा ही रख देना। भविष्य को | रहा है, तो आप सोचते हैं, इसे गाली नहीं देनी चाहिए। यह आदमी सोचना ही मत, फल को सोचना ही मत। | गलती कर रहा है, बुरा कर रहा है। इसलिए क्रोध भभकता है। कृष्ण का बहुत जोर है इस बात पर कि जो फल को सोचेगा, वह | अगर आप इस आदमी का पूरा अनंत जीवन जानते हों अतीत भटक जाएगा। जैसा हो, वैसा उसे प्रकट कर देना; अपने को | का, तो आप कहेंगे, यह गाली इसमें ऐसे ही लग रही है, जैसे किसी बाहर-भीतर एक-सा कर देना, अपने को उघाड़ देना, सत्य है। | पौधे में फूल लगते हैं। वे बीज में ही छिपे थे। बढ़ते-बढ़ते-बढ़ते और वह दैवी संपदा का अनिवार्य हिस्सा है। वृक्ष बड़ा होता है, फिर फूल आते हैं। वे फूल कड़वे होते हैं, कि अक्रोध...। | सुगंधित होते हैं, कि सुंदर होते हैं, कि कुरूप होते हैं, यह बीज में साधारणतः आप सोचते हैं कि कभी-कभी आप क्रोध करते हैं। ही छिपे थे। यह बात झूठ है, यह बात बिलकुल ही झूठ है। आप चौबीस घंटे | ये गालियां इस आदमी में लग रही हैं, इसका मुझसे कुछ क्रोध में रहते हैं। कभी-कभी क्रोध उबलता है और कभी-कभी लेना-देना नहीं है। यह इस आदमी का स्वभाव है. यह इस आदमी कुनकुना रहता है, बस। कुनकुने की वजह से पता नहीं चलता। | | के जीवन का ढंग है, यह इसकी उपलब्धि है कि गालियां बक रहा क्योंकि उसकी आपको आदत है। उतने में तो आप जी ही रहे हैं | | है। मैं सिर्फ बहाना हूं। अगर मैं यहां न होता, तो कोई दूसरा इसकी सदा से। | गाली खाता; वह भी नहीं होता, तो कोई तीसरा गाली खाता; कोई आप अपने को पहचानें, निरीक्षण करें, तो आपको समझ में | भी नहीं होता, तो यह शून्य में गाली देता; लेकिन गाली देता। यह आएगा कि चौबीस घंटे आप में हल्का-सा क्रोध बना रहता है। गाली इसके कर्मों की अभिव्यक्ति है। कभी इस चीज के प्रति, कभी उस चीज के प्रति। कभी कोई भी अक्रोध तब पैदा होगा, जब आप समझेंगे कि प्रत्येक व्यक्ति कारण न हो, तो अकारण। अगर आपको चौबीस घंटे कमरे में बंद | अपनी नियति में चल रहा है। आपसे कुछ लेना-देना नहीं है। आपसे कर दिया जाए, जहां कोई कारण न दे आपको क्रोधित होने का, तो | रास्ते पर मिलना हो जाता है, इससे आप अकारण परेशान न हों। भी आप क्रोधित होंगे। तो आप इस पर ही क्रोधित होने लगेंगे कि ___ एक झेन फकीर हुआ, रिंझाई। वह अपने शिष्यों को नाव में ले कुछ भी नहीं हो रहा है; कोई भी नहीं है! कि मैं यहां बैठा क्या कर | जाता था। और जब वह नाव को ले जाता, तो एक किनारे पर उसने रहा है! कि मझे यहां क्यों बिठाया गया है! अकेले में क्यों छोड़ा | एक मल्लाह रख छोड़ा था। एक झाड़ी की आड़ में वह मल्लाह एक गया है! नाव को छिपाए रखता। जब इसकी नाव निकलती, तो खाली नाव क्रोध आपकी दशा है। हम सब सोचते हैं कि क्रोध घटना है। को वह झाड़ी के भीतर से धक्का देता। वह खाली नाव आकर इसलिए हम सोचते हैं, क्रोध कभी-कभी आता है, यह कोई ऐसी | | रिझाई की नाव को टकरा जाती। कोई भी कुछ नहीं बोलता, क्योंकि बात नहीं है कि सदा है। लेकिन क्रोध सदा है। कभी-कभी कोई | | खाली नाव से क्या गाली बकनी, क्या झगड़ा करना। शिष्य भी चिनगारी डाल देता है, तो आपकी बारूद भभक उठती है। लेकिन | हिल-डुलकर बैठकर रह जाते। फिर दुबारा कभी वह मल्लाह नाव बारूद सदा है। बारूद न हो, तो चिनगारी डालने से भी भभकेगी | | में बैठकर और टक्कर देता; तब वे सारे शिष्य उबल पड़ते। नहीं। | तो रिझाई कहता कि एक दफे पहले भी यह हुआ था, जब नाव अक्रोध का अर्थ है, चौबीस घंटे एक शांत स्थिति। यह तभी हो हमसे टकरा गई थी, तुम सब चुप रहे थे। वे कहते, तब यह आदमी 3081
SR No.002410
Book TitleGita Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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