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* दैवीय लक्षण
शुरुआत नहीं हो सकती।
पहुंचाने का मौका हो, तो हम कहते हैं, हम झूठ कैसे बोल सकते इसलिए शुरुआत का सूत्र है, दूसरे के सुख से शुरू करें। जब हैं! सच बोलना ही पड़ेया। खुद पर चोट पहुंचती हो, तो हमारे तर्क दसरे के जीवन में फल खिले. तो आपके जीवन में नाच आए। यह | बदल जाते हैं। आसान होगा। हालांकि बहुत कठिन लगेगा, क्योंकि अभी हमें | मैंने सुना है, एक सुबह मुल्ला नसरुद्दीन अपनी छपरी में बैठा सुख देखकर तो बड़ी पीड़ा होती है; दुरूहतम मालूम होगा। लेकिन | | हुआ है। अचानक वर्षा का झोंका आया। गांव का जो मौलवी है, साधना दुरूह है। वह ऊंचे पहाड़ चढ़ने जैसा प्रयोग है। और यह | | वह पानी की बूंदें पड़ी तो तेजी से भागा। नसरुद्दीन ने कहा, रुको, ऊंचे से ऊंचा पहाड़ है, दूसरे के सुख में सुख अनुभव करना। तो | | यह परमात्मा का अपमान है। मौलवी भी घबड़ा गया; क्योंकि आपका जीवन एक तरफ उत्सव से भर जाएगा।
नसरुद्दीन वजनी आदमी था। और गांव में खबर हो जाए। और और तब दूसरा प्रयोग है, दूसरे के दुख में दुख अनुभव करना, | | उससे कह रहा था, तो उसका कुछ मतलब होगा। उसने कहा, क्या तब आपके जीवन में अंधकार भी भर जाएगा, प्रकाश और | | मतलब? तो उसने कहा, जब परमात्मा वर्षा कर रहा है, तो तुम अंधकार दोनों। लेकिन चूंकि दूसरे के दुख में आप दुखी हो रहे हैं | उसका अपमान कर रहे हो भागकर। धीमे-धीमे जाओ। मौलवी को
और दूसरे के सुख में आप सुखी हो रहे हैं, आपका साक्षी-भाव | भी बात समझ में आई। बेचारा धीरे-धीरे घर तक गया; भीग गया दोनों में निर्मित हो सकेगा। आप दोनों अनुभव में डूबकर भी बाहर | वर्षा में। बूढ़ा आदमी था, बुखार आ गया। रह सकेंगे।
वह तीसरे दिन अपने बिस्तर में बुखार में बैठा हुआ था, तब जब आपका खुद का दुख आता है, तो आप एकदम भीतर हो | | उसने खिड़की से देखा कि वर्षा का फिर झोंका आया और नसरुद्दीन जाते हैं, आप उस दुख में लीन हो जाते हैं। जब आप दूसरे के दुख बाजार से भागा जा रहा है। तो उसने कहा, रुक, नसरुद्दीन! भूल में डूबेंगे, तो आप कितने ही लीन हो जाएं, आपका आंतरिक | | गया? तो नसरुद्दीन रुका नहीं, भीतर भागता हुआ घर में आया और आत्यंतिक हिस्सा बाहर खड़ा देखता रहेगा। जब आप पर सख उसने कहा कि नहीं, भला नहीं। इसीलिए भाग रहा है कि परमात्मा आता है, तो आप उसमें उत्तेजित हो जाते हैं। दूसरे के सुख में आप | पानी गिरा रहा है, उसके पानी पर कहीं मेरे नापाक पैर न पड़ जाएं। कितने ही डूबें, उत्तेजित न हो पाएंगे। वह एक धीमा, सौम्य उत्सव | | गंदा आदमी हं, नहाया भी नहीं। ये गंदे पैर उसके पानी पर न पड़ होगा, और आपके भीतर का साक्षी जगा रहेगा।
जाएं, इसीलिए तो भाग रहा हूं। भूला नहीं हूं। और ध्यान रहे, जो व्यक्ति दूसरे के सुख-दुख में साक्षी हो गया, बस, यही हमारे सबके तर्क हैं। जब खुद पर चोट पड़ती हो, तो वह धीरे-धीरे अपने सुख-दुख में भी साक्षी हो सकेगा। क्योंकि | | हम झूठ को सच बना लेते हैं। जब दूसरे पर चोट पड़ती हो, तो हम थोड़े ही समय में उसे पता चलेगा, सुख-दुख न तो मेरे हैं, न दूसरे सच का भी झूठ की तरह उपयोग करते हैं, हिंसक उपयोग करते हैं। के हैं। सुख-दुख घटनाएं हैं, जिनका मेरे और तेरे से कुछ कुछ लोग सच बोलने में बड़ा रस लेते हैं, क्योंकि सच से काफी लेना-देना नहीं है। सुख-दुख बाहर परिधि पर घटते हुए धूप-छाया | |चोट पहुंचाई जा सकती है। तब मजे की बात यह है कि झूठ के खेल हैं, जो मेरे आंतरिक केंद्र को छूते भी नहीं, जिनसे मैं | | बोलकर भी हम दूसरे को नुकसान पहुंचाते हैं और सच बोलकर अस्पर्शित रह जाता हूं।
भी नुकसान पहुंचाते हैं। हमारा लक्ष्य सदा एक है; हिंसा हमारा सत्य...।
लक्ष्य है। सत्य से इतना ही अर्थ नहीं है कि सच बोलना। सत्य से अर्थ है,। | इसलिए सत्य का अर्थ केवल सच बोलना नहीं है। सत्य का प्रामाणिक होना, आथेंटिक होना। सत्य से अर्थ है, जैसे आप भीतर अर्थ है, प्रामाणिक होना। सत्य का अर्थ है कि जैसा मैं भीतर हूं, हैं, वैसे ही बाहर होना। लेकिन लोग सत्य का यह अर्थ नहीं लेते। | वैसा ही बाहर होना, परिस्थिति की बिना फिक्र किए कि क्या होगा लोग सत्य का अर्थ लेते हैं, सच बोलना। वह सिर्फ गौण हिस्सा है।। परिणाम। इसे थोड़ा समझ लें।
और सच बोलना...हमारा मन जैसा चालाक है, उसमें हम सच | ___ जो व्यक्ति परिणाम की चिंता करता है, वह सत्य नहीं हो बोलने का भी दुरुपयोग कर लेते हैं। हम तब सच बोलते हैं, जब सकता। क्योंकि कई बार अच्छे परिणाम झूठ से आ सकते हैं। कम सच से दूसरे को चोट पहुंचती हो। और अगर दूसरे को चोट से कम जहां तक हमें दिखाई पड़ता है, वहां तक आ सकते हैं।
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