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* गीता दर्शन भाग-7 *
है। अंडे को खाने में कोई पाप नहीं है। दूध पीने में पाप है, क्योंकि बनिये ने कहा, एक दो मिनट रुक जा। क्योंकि मैं घर लौटकर वह खून है।
| जाकर अपने बच्चे और पत्नी को समाप्त कर आऊं हो सकता ___ और जीवन की सारी व्यवस्था हम इस ढंग की कर ले सकते हैं है, मैं मर जाऊं; मेरे कारण मेरे बच्चे और पत्नी भूखे मरें, यह मुझे कि ऊपर से लगे कि सब अहिंसा है और भीतर सारी हिंसा जारी रहे। बरदाश्त के बाहर है। और मैं तुझे भी सलाह देता हूं, तू भी घर __ जैनों ने अहिंसा का बड़ा प्रयोग किया, लेकिन उनकी सारी हिंसा जा; बच्चे और पत्नी को खतम कर आ। क्योंकि हो सकता है, तू धन को इकट्ठा करने में जुट गई। तो उन्होंने खेती-बाड़ी छोड़ दी, मर जाए। क्योंकि उसमें हिंसा है। पौधा काटेंगे, तो हिंसा होगी; इसलिए जैनों | क्षत्रिय ने कहा, बात बिलकुल ठीक है। वह घर गया। वह साफ ने खेती-बाड़ी छोड़ दी। क्षत्रिय होने का उपाय न रहा उनका, | करके आ गया। बनिया घर गया, कापस लौटकर उसने कहा, मैंने क्योंकि वहां युद्ध में हिंसा होगी।
इरादा बदल दिया; मैंने मूंछ नीची कर ली। तो उनके व्यक्तित्व की सारी हिंसा, जो युद्ध में निकल सकती यह जो बनिया है, हिंसक तो नहीं है, लेकिन इसकी हिंसा थी, खेती-बाड़ी में निकल सकती थी...।
चालाकी बन जाएगी। __ आप जानकर हैरान होंगे कि किसान, माली भले लोग होते हैं, तो जैनों की सारी हिंसा धन को इकट्ठा करने में लगी; सब उपाय क्योंकि उनकी हिंसा निकल जाती है। एक किसान दिनपर काट रहा | | बंद हो गए। और धन सबसे सुविधापूर्ण साधन है दूसरे को दुख है जंगल में, लकड़ी काट रहा है, पौधे उखाड़ रहा है, तो उसकी | | देने का। इससे ज्यादा आसान कोई तरकीब नहीं है। किसी की छाती जितनी क्रोध की वृत्ति है, वह सब इस उखाड़ने, तोड़ने में, मिटाने | में छुरा मारो, वह भी उपद्रव है, क्योंकि उसमें खुद को भी छुरा में निकल जाती है। वह भला आदमी ह्येता है। किसान सरल | भोंका जाए, इसका डर सदा है। लेकिन धन चूस लो, दूसरा वैसे आदमी होता है।
| ही मर जाता है बिना छुरा मारे। और दूसरे को इससे ज्यादा दुखी क्षत्रिय भी सरल आदमी होता है, क्योंकि युद्ध के मैदान पर लड़ करने की कोई सुविधापूर्ण व्यवस्था नहीं है कि तुम धन इकट्ठा कर लेता है। कुछ भी बचता नहीं, सब निकल आता है। इसलिए क्षत्रिय | लो। तुम धन इकट्ठा करते जाओ, दूसरा निर्धन होता जाए। वह भोले होते हैं। क्षत्रिय को आप जितनी आसानी से धोखा दे सकते मरता जाता है अपने आप। वह उसे इकट्ठा जहर देने की जरूरत हैं, दुकानदार को नहीं दे सकते, बनिया को नहीं दे सकते। होना नहीं है। एक-एक बूंद उसमें जहर उतरता जाता है। चारों तरफ सब चाहिए था उलटा; क्योंकि वह हिंसक है, दुष्ट है, उसको धोखा | | सूख जाता है। सारा जीवन तुम शोषित कर लेते हो। देना मुश्किल होना चाहिए। लेकिन ऐसी बात नहीं है। उसको धोखा ___ तो जैन बड़ी अहिंसा साधा। लेकिन वह अहिंसा चूंकि देना बिलकुल आसान है।
ऊपर-ऊपर थी, नैतिक थी; वह अहिंसा मौलिक आधार से नहीं मैंने सुना है, राजस्थान की एक कथा है, कि एक गांव का एक जन्मी। वह महावीर की अहिंसा नहीं थी। इस जैन की, पीछे चलने क्षत्रिय राजपूत बड़ा अकड़ीला आदमी था। वह अपने गांव में किसी वाले की अपने मन की, गणित की, अपनी बुद्धि की खोज थी। तो को मुंछ सीधी नहीं करने देता था; सिर्फ अकेली अपनी मूंछ सीधी | जटिल हो गया। और शोषण के रूप में अहिंसा दब गई और हिंसा रखता था। दूसरा अगर उसके घर के सामने दूसरे गांव का भी | व्यापक हो गई।
आदमी निकले, तो कहता था, मूंछ नीची कर। इससे झगड़े, | | अहिंसा लक्षण है इस अर्थ में कि आप अपने मन से दूसरे को दंद-फंद हो जाते थे, तलवारें खिंच जाती थीं।
| दुख देने का भाव विसर्जित कर दें। शुरू करना होगा दूसरे के सुख एक नया बनिया गांव में आया, जवान था। और वह भी मूंछ | | में सुख लेना। क्योंकि सुख लेना आसान है, दुख लेना कठिन है। सीधी रखने का शौकीन था। क्षत्रिय के घर के सामने से निकला। अपना ही दुख झेलना मुश्किल होता है, दूसरे का दुख झेलना उस क्षत्रिय ने कहा, मूंछ सीधी नहीं चल सकती। इस गांव में एक तो और मुश्किल हो जाएगा। आप अपने ही दुख से काफी परेशान ही मूंछ सीधी रह सकती है; दो तलवारें एक म्यान में नहीं चलेंगी; हैं, अगर हर एक का दुख लेने लगें और हर एक का दुख झेलने तू मूंछ नीची कर ले। बनिये ने कहा, क्यों? मूंछ नीची नहीं होगी! लगें; हर घर में आदमी मरेगा, अगर आप हर घर में बैठकर रोने तलवारें खिंच गईं।
आपका कोई मर गया हो-यह कठिन होगा। इससे
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