SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 33
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ * चाह है संसार और अचाह है परम सिद्धि * तो कृष्ण दूसरे दरवाजे पर हट जाते हैं; दूसरे मोर्चे से संघर्ष शुरू | | लेकिन पश्चिम की खोज कहती है कि बुद्ध के इतने वचन हो जाता है। ये प्रत्येक अध्याय अलग-अलग मोर्चे हैं। और इन उपलब्ध हैं कि अगर बुद्ध पैदा होने के दिन से पूरे सौ वर्ष अहर्निश अलग-अलग अध्यायों में वे सब द्वार आ गए हैं, जिनसे कभी भी | बोले हों, सुबह से दूसरी सुबह तक; न सोए हों, न उठे, न बैठे हों, किसी गुरु ने शिष्य को मिटाने की कोशिश की है। अर्जुन मिटे तो | तो भी शास्त्र ज्यादा मालूम पड़ते हैं। एक व्यक्ति सौ वर्ष निरंतर ही हल हो सकता है। बिना मिटे कोई हल नहीं है। बोलता रहे, बिना रुके, अविच्छिन्न, जन्म के दिन से मरने के क्षण शिष्य की मृत्यु में ही समाधान है। क्योंकि वहीं उसकी बीमारियां तक, न सोए, न कुछ और करे, तो इतना बोल पाएगा जितना बुद्ध गिरेंगी। वहीं उसकी समस्याएं गिरेंगी। वहीं उसके प्रश्न गिरेंगे। वहीं के वचन उपलब्ध हैं। से उसके भीतर उसका उदय होगा. जिसके लिए कोई समस्याएं नहीं स्वभावतः, खोज करने वाले कहते हैं कि ये प्रक्षिप्त हैं। दूसरे हैं। वह चेतना भीतर छिपी है और उसे मुक्त करना है। और जब लोगों के वचन इसमें मिल गए हैं। एक आदमी इतना बोल नहीं तक यह साधारण मन न मर जाए, तब तक कारागृह नहीं टूटता, सकता। दस साल में इतना नहीं बोला जा सकता, जितना कि सौ जंजीरें नहीं गिरती, भीतर छिपा हुआ प्रकाश मुक्त नहीं होता। । साल निरंतर कोई बोले! इसका मतलब यह हुआ कि अगर बुद्ध प्रकाश बंद है आप में, उसे मुक्त करना है। और आपके | | दस गुना जीते, तो इतना बोल सकते थे। या दस बुद्ध होते, तो इतना अतिरिक्त कोई बाधा नहीं डाल रहा है। आप सब तरह से कोशिश | बोल सकते थे। करेंगे, क्योंकि आप समझ रहे हैं जिसे अपना स्वरूप, जिस | मैं इसका कुछ और ही अर्थ लेता हूं। मैं इसका इतना ही अर्थ अहंकार को, आप उसको बचाने की कोशिश करेंगे। आप सोचते | | लेता हूं कि जो बात इतनी लंबी मालूम पड़ती है, उसके लंबे होने हैं, आत्म-रक्षा कर रहे हैं। अर्जुन भी आत्म-रक्षा में संलग्न है। | | का कारण शिष्यों के साथ...अर्जुन के साथ तो कृष्ण का अकेला लेकिन गुरु अंततः जीतता है। उसके हारने का कोई उपाय नहीं | संघर्ष है, एक शिष्य है। बुद्ध के पास दस हजार शिष्य थे। यह है। बहुत बार हारता है। उसकी सब हार झूठी है। शिष्य बहुत बार | | संघर्ष बड़ा है, विराट है। इतने वचन इसीलिए हैं, जैसे बुद्ध दस जीतता है। उसकी सब जीत झूठी है। अंततः उसे हार जाना होगा। । | मुंह से एक साथ बोले हों। ऐसी कोई जगह नहीं छोड़ी है, जहां से अब हम इस सूत्र में प्रवेश करें। | शिष्य के ऊपर हमला न किया हो, आक्रमण न किया हो। कृष्ण बोले, हे अर्जुन, ज्ञानों में भी अति उत्तम परम ज्ञान को मैं गुरु थकता नहीं। फिर भी तेरे लिए कहूंगा कि जिसको जानकर सब मुनिजन इस फिर से तेरे लिए कहूंगा! ज्ञानों में भी अति उत्तम ज्ञान को, परम संसार से मुक्त होकर परम सिद्धि को प्राप्त हो गए हैं। ज्ञान को मैं फिर से तेरे लिए कहूंगा कि जिसको जानकर सब ज्ञानों में भी अति उत्तम परम ज्ञान मैं फिर तेरे लिए कहूंगा। बहुत | | मुनिजन इस संसार से मुक्त होकर परम सिद्धि को प्राप्त हो गए हैं। . बार पहले भी उन्होंने कहा है। कहते हैं, फिर तेरे लिए कहूंगा। गुरु __ अज्ञान गैर-जानकारी का नाम नहीं है। अज्ञान गलत जानकारी थकता ही नहीं। जब तक तुम सुन ही न लोगे, तब तक वह कहे ही | का नाम है। गैर-जानकारी भोलापन भी हो सकती है। अज्ञान चला जाएगा। जटिल है, भोलापन नहीं है। अज्ञानी कुशल होते हैं, चालाक होते पश्चिम में बुद्ध के वचनों पर बड़ी खोज हुई है। वे बड़े हैरान | | हैं, कुटिल होते हैं। अज्ञानी नहीं जानता, ऐसा नहीं है; गलत जानता हुए। हैरानी की बात है। क्योंकि बुद्ध अस्सी साल जीए। कोई | | है। इसे थोड़ा ठीक से समझ लें। चालीस साल की उम्र में ज्ञान हुआ। वे चालीस साल तुम अलग । न जानने से हम उलझन में नहीं पड़े हैं। हमारी उलझन गलत कर दो। फिर चालीस साल बचते हैं। इन चालीस साल में एक | जानने की उलझन है। न जानने से कोई कैसे उलझेगा? गलत जानने तिहाई हिस्सा तो नींद में चला गया होगा। कुछ घंटे भोजन-भिक्षा | से कोई उलझ सकता है। उलझने के लिए भी कुछ जानना जरूरी है। में चले गए होंगे रोज। कछ घंटे रोज यात्रा में चले गए होंगे। अगर | | थोड़ी देर को समझें, अर्जुन की जगह अगर कोई सच में ही आठ घंटे नींद के गिन लें, चार घंटे रोज यात्रा के गिन लें, दो घंटे | | भोला-भाला आदमी होता, जो कुछ नहीं जानता, तो वह युद्ध में स्नान-भोजन-भिक्षा के गिन लें, तो चालीस साल में से करीब तीस | | उतर जाता। क्या अड़चन थी? अर्जुन के सिवाय किसी ने सवाल साल ऐसे व्यय हो जाते हैं। दस साल बचते हैं। नहीं उठाया।
SR No.002410
Book TitleGita Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy