SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 319
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ * दैवी संपदा का अर्जन * आचरण हो, जो भी परिणमन हो, वह मेरे पूरे होश में हो। मेरे ज्ञान | स्तुति में पड़ना ठीक नहीं। लेकिन बस, कोई स्तुति करता है, तो का दीया जलता रहे। क्यों कर रहा हूं, इसकी मुझे पूरी प्रतीति हो। | फिर स्मरण नहीं रहता; फिर भीतर कुछ बल्ब जल जाते हैं। फिर बिना गहरे प्रत्यक्ष होश के कुछ भी मुझसे न निकले।। | भीतर कुछ काम शुरू हो जाता है, जो दसरे ने चालित किया। जिसको कृष्णमूर्ति अवेयरनेस कहते हैं, महावीर ने जिसको जो व्यक्ति अपने निर्णय से प्रतिपल नहीं जी रहा है, जिससे दूसरे सम्यक ज्ञान कहा है, बुद्ध ने जिसको सम्यक स्मृति कहा है, कबीर, | लोग निर्णय करवा रहे हैं, जिसे दूसरे लोग धक्के दे रहे हैं, नानक, दादू जिसको सुरति-योग कहते हैं, ज्ञान-योग में दृढ़ स्थिति मैनिपुलेट कर रहे हैं, जो दूसरों से परिचालित है, ऐसा व्यक्ति का वही अर्थ है। मूर्छित न हो व्यवहार; अचेतन शक्तियां मुझसे मूर्छा में दृढ़ ठहरा हुआ है। कुछ न करवा लें; मेरा कृत्य चेतन हो, कांशस हो। होश में ठहरे हुए व्यक्ति का लक्षण है कि वह स्वयं चल रहा है, किसी आदमी ने आपको धक्का दिया। इधर धक्का नहीं दिया | | स्वयं उठ रहा है; और जो भी कर रहा है, वह उसका अपना निर्णय कि उधर से क्रोध की लपट भभक उठती है। यह क्रोध का भभकना | | है, वह उसने सचेतन रूप से लिया है! कोई अचेतन शक्तियों ने वैसे ही है, जैसे किसी ने बटन दबाई और बिजली जली। बटन उससे निर्णय नहीं करवाया है। दबाने के बाद बिजली का बल्ब सोचता नहीं कि जलं या न जलं।। ___ चौबीस घंटे आपके भीतर बड़ा हिस्सा अचेतन है, जिसको यह भी नहीं सोचता कि इस आदमी ने जलाया, तो मैं कोई परवश | फ्रायड ने बड़ी कोशिश की विश्लेषण करने की। फ्रायड के हिसाब तो नहीं हूं; चाहूं तो जलूं, चाहूं तो न जलूं! न, कोई उपाय नहीं है। | से, जैसे हम बरफ के टुकड़े को पानी में डाल दें, तो नौ हिस्सा पानी यंत्रवत, यंत्र ही है। तो बिजली का बल्ब जल जाता है। में डूब जाता है और एक हिस्सा ऊपर होता है, ऐसा आपका एक ___ जब कोई आपको धक्का देता है, तो क्रोध भी आप में अगर | | हिस्सा केवल होशपूर्ण है, नौ हिस्से नीचे डूबे हुए हैं पानी में और ऐसा ही पैदा होता हो, जैसे बटन दबाने से बल्ब जलता है, तो | उनका आपको कुछ भी पता नहीं है। और वे नौ हिस्से आपसे आप भी यंत्रवत हो गए। तो जिस आदमी ने आपको धक्का दिया, | | चौबीस घंटे काम करवा रहे हैं। वे काम आपको करने ही पड़ते हैं। उसने आपको परिचालित कर लिया, वह आपका मालिक हो | और आप निर्णय भी ले लें कि नहीं करूंगा, तो भी कोई फर्क नहीं गया, स्वामित्व उसके हाथ में चला गया; उसने आप में क्रोध पैदा | पड़ता। क्योंकि निर्णय एक हिस्सा लेता है, उससे नौ गुनी ताकत करवा लिया। के मन के विचार भीतर दबे पड़े हैं, वे उसकी सुनते भी नहीं। और शायद आप कई दफा कसमें खा चुके हैं कि अब क्रोध न ___ आप तय कर लेते हैं, सुनते हैं ब्रह्मचर्य पर एक व्याख्यान, पढ़ते करूंगा; कई दफा निर्णय लिया है कि क्रोध दुख देता है। शास्त्र के | हैं कोई किताब, जंचती है बात बुद्धि को, वह जो एक हिस्सा पानी शब्द स्मरण हैं कि क्रोध अग्नि है, जहर है। वह सब है। लेकिन के ऊपर तैर रहा है, आप तय कर लेते हैं। लेकिन वे नौ हिस्से, जो किसी ने धक्का दिया, तो वह सब एकदम हट जाता है। भीतर से | | पानी के नीचे दबे हैं, उनको आपकी किताब का कोई पता नहीं, क्रोध उठ आता है। यह क्रोध मूर्छित है। | ब्रह्मचर्य का कोई पता नहीं; उन्होंने कोई यह बात सुनी नहीं कभी, बुद्ध को कोई धक्का दे, तो क्रोध ऐसे ही नहीं उठता; क्रोध उठता | | वे अपनी धारणा से चल रहे हैं। वे मिले हैं नौ हिस्से आपको ही नहीं। बुद्ध धक्के को देखते हैं कि धक्का दिया गया और अपने | जन्मों-जन्मों की लंबी यात्रा में। अनंत संस्कारों, पशुओं, पौधों, भीतर देखते हैं कि धक्के से क्या हो रहा है; और निर्णय करते हैं। | वृक्षों से गुजरकर उनको आपने इकट्ठा किया है। वे अब भी वही कि मुझे क्या करना है। आपका धक्का निर्णायक नहीं है। आपके | | हैं। उनको कुछ पता भी नहीं है। वे अपने ही ढंग से चलते हैं; उनकी धक्के के बाद भी बुद्ध ही निर्णायक हैं; वे निर्णय करते हैं कि मुझे ताकत नौ गुनी ज्यादा है। क्या करना है। ___जब भी कामना मन को पकड़ेगी, तो वह जो एक हिस्सा है, आप जब क्रोध करते हैं, तो निर्णय आपका नहीं है। दूसरा नपंसक सिद्ध होगा। वे जो नौ गने ताकतवर हैं. वे शक्तिशाली आपसे निर्णय करवा लेता है। एक खुशामदी आ जाता है और | | सिद्ध होंगे और वे आपको मजबूर कर लेंगे। और उनकी मजबूरी आपकी प्रशंसा करता है और आपसे काम करवा लेता है। आप भी | इतनी शक्तिशाली है कि वे आपके इस एक हिस्से को भी तर्क देंगे जानते हैं कि यह खुशामदी है और आप भी जानते हैं कि किसी की | और यह एक हिस्सा भी रेशनलाइज करेगा। यह भी कहेगा कि 291
SR No.002410
Book TitleGita Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy