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* दैवी संपदा का अर्जन *
निर्भय का अर्थ है, जिसके भीतर भय तो है, लेकिन उस भय से | | हैं। बीमारी आए, मौत आए, तो कुछ उपाय किया जा सकता है। जो भयभीत नहीं होता और टिका रहता है। कायर वह है, उसके | पास कुछ भी न हो, तो कोई उपाय नहीं है, हम असुरक्षित मौत के भीतर भी भय है, लेकिन वह भय से प्रभावित होकर भाग खड़ा हाथ में पड़ जाते हैं। होता है। कायर में और बहादुर में फर्क भय का नहीं है, भय दोनों भय तो मृत्यु का है, सभी भय मृत्यु से उदभूत होता है। इसलिए में है। बहादुर भय के बावजूद भी खड़ा रहता है। कायर भय के उसको हम बहादुर कहते हैं, जो मौत के सामने भी अकड़कर खड़ा पकड़ते ही भाग खड़ा होता है। भय दोनों के भीतर है, लेकिन कायर | रहता है। कोई बंदूक लेकर आपकी छाती पर खड़ा हो, भाग खड़े भय को स्वीकार कर लेता है और जिसको हम बहादुर कहते हैं, वह हुए, तो लोग कायर कहते हैं; पीठ दिखा दी! अस्वीकार करता है। लेकिन भय भीतर मौजूद है।
पश्चिम में युवकों का आंदोलन है, हिप्पी। हिप्पी शब्द बहुत निर्भयता का अर्थ है, भय तो भीतर है, लेकिन हम उसे स्वीकार | | महत्वपूर्ण है। हिप्पी शब्द का वही मतलब होता है, जो रणछोड़दास नहीं करते; हम उसके विपरीत खड़े हैं। अभय का अर्थ है, जिसके का होता है, जिसने हिप दिखा दिया, जिसने पीठ दिखा दी, जो भाग भीतर भय नहीं। इसलिए अभय को उपलब्ध व्यक्ति न तो कायर | खड़ा हुआ। जो युवक हिप्पी कहे जा रहे हैं पश्चिम में, लेकिन होता है और न बहादुर होता है; वह दोनों नहीं हो सकता। दोनों के | उनका फलसफा है, उनका एक दर्शन है। वे कहते हैं, लड़ना लिए भय का होना एकदम जरूरी है। भय हो, तो आप कायर हो | | फिजूल है। और लड़ना किसलिए? और लड़ने से मिलता क्या है? सकते हैं या बहादुर हो सकते हैं। भय न हो, तो आप अभय को इसलिए पीठ दिखाई है जान-बूझकर। उपलब्ध होते हैं।
ये जो बहादुर और कायर हैं, इन दोनों की समस्या एक है। कायर अभय को कृष्ण कहते हैं पहला लक्षण दैवी संपदा का। क्यों? पीठ दिखाकर भाग जाता है। बहादुर पीठ नहीं दिखाता, खड़ा रहता अगर अभय दैवी संपदा का पहला लक्षण है, तो भय आसुरी संपदा है, चाहे मिट जाए। लेकिन दोनों के भीतर भय है। का पहला लक्षण हो गया।
___ अभय उस व्यक्ति को हम कहेंगे, जिसके भीतर भय नहीं है। भय किस बात का है? और जब आप निर्भयता भी दिखाते हैं, लेकिन यह तभी हो सकता है, जब मृत्यु के संबंध में हमारी समस्या तो किस बात की दिखाते हैं? थोड़ा-सा ही सोचेंगे तो पता चल हल हो गई हो। जब हमें किसी भांति यह प्रतीति हो गई हो कि मृत्यु जाएगा कि मत्य का भय है। बहाना कोई भी हो. ऊपर से कछ भी है ही नहीं: जब हमने किसी अनभव से यह रस पहचान लिया हो हो, लेकिन भीतर मृत्यु का भय है। मैं मिट न जाऊं, मैं समाप्त न | | कि भीतर अमृत छिपा है, कि मैं मरणधर्मा नहीं हूं। हो जाऊं। दूसरी चीजों में भी, जिनमें मृत्यु प्रत्यक्ष नहीं है, वहां भी | ___ आत्मभाव जगा हो, तो अभय पैदा होगा। इसलिए अभय आत्मा गहरे में मृत्यु ही होती है।
का नाम है। जिसने आत्मा को जरा-सा भी पहचाना, उसके जीवन - आपका धन कोई छीन ले, तो भय पकड़ता है। मकान जल | | में अभय हो जाएगा। जाए, तो भय पकड़ता है। पद छिन जाए, तो भय पकड़ता है। इसे कृष्ण पहला आधार बना देते हैं। क्यों? सत्य की यात्रा पर, लेकिन वह भय भी मृत्यु के कारण है; क्योंकि पद के कारण जीवित ब्रह्म की यात्रा पर, दिव्यता के आरोहण में अभय पहला आधार होने में सुविधा थी; पद सहारा था। धन पास में था, तो सुरक्षा थी। क्यों? धन पास में नहीं, तो असुरक्षा हो गई। मकान था, तो साया था; | | अभय की संभावना बनती है, अमृत की थोड़ी-सी प्रतीति हो मकान जल गया, तो खुले आकाश के नीचे खड़े हो गए। तो। और अमृत की प्रतीति हो, तो आदमी छलांग ले सकता है ब्रह्म
जिन-जिन चीजों के छिनने से भय होता है, उन-उन चीजों के | में; नहीं तो छलांग नहीं ले सकता। अगर भीतर डर समाया हो कि छिनने से मौत करीब मालूम पड़ती है। और जिन-जिन चीजों को | मैं मिट तो न जाऊंगा, तो ब्रह्म तो मृत्यु से भी ज्यादा भयानक है। हम पकड़ रखना चाहते हैं, वे वे ही चीजें हैं, जिनके कारण मौत | | क्योंकि मृत्यु में तो शायद शरीर ही मिटता होगा, आत्मा बच जाती और हमारे बीच में परदा हो जाता है। धन का ढेर लगा हो. तो हमारी | होगी। ब्रह्म में आत्मा भी नहीं बचेगी। महामृत्यु है। उस विराट में आंखों में धन दिखाई पड़ता है, मौत उस पार छूट जाती है। | तो मैं ऐसे खो जाऊंगा, जैसे बूंद सागर में खो जाती है, कोई प्रतिष्ठा हो, पद हो, तो शक्ति होती है पास में, हम लड़ सकते नाम-रूप नहीं बचेगा।
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