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* गीता दर्शन भाग-7 *
तो जिसको हम मृत्यु कहते हैं, यह तो अधूरी मृत्यु है। आत्मा | आपको शाकाहारी का अंतःकरण दिया। अगर मांस आपके सामने बच जाएगी, नए शरीर ग्रहण करेगी, नई यात्राओं पर निकलेगी। | आ जाए, तो आप सिर्फ ग्लानि से भरेंगे। आपकी जीभ से पानी लेकिन जो व्यक्ति ब्रह्म-ज्ञान को उपलब्ध हुआ, फिर उसकी कोई | | और रस नहीं बहेगा, सिर्फ ग्लानि; वमन हो सकता है, उल्टी आ यात्रा नहीं है, फिर वह महाशून्य में खो गया। इसलिए हम कहते सकती है। हैं, परम ज्ञानी वापस नहीं आता।
यही मांस किसी दूसरे के सामने, जो मांसाहारी घर में पैदा हुआ बुद्ध से लोग बार-बार पूछते हैं, कि मृत्यु के बाद बुद्धत्व को | है, बड़े स्वाद को जगा सकता है। इसी मांस को देखकर उसकी सोई प्राप्त व्यक्ति का क्या होता है? तो बद्ध कहते हैं. जैसे दीए की हई भख जग सकती है भख न भी हो. तो भी भख लग सकती है। ज्योति को कोई फूंककर बुझा दे, तो फिर तुम पूछते हो या नहीं कि | एक दूसरे शाकाहारी घर में पैदा व्यक्ति को इसी मांस को देखकर दीए की ज्योति का क्या हुआ, कहां गई? ऐसा ही बुद्ध पुरुष खो बड़ी जुगुप्सा, बड़ी घृणा पैदा होती है। जाता है; जैसे दीए को कोई फूंककर बुझा दे, ऐसे ही बुद्ध पुरुष खो | निश्चित ही, यह अंतःकरण असली अंतःकरण नहीं है। यह जाता है।
अंतःकरण सिखाया हुआ, शिक्षित अंतःकरण है। यह समाज ने तो बुद्धत्व तो महामृत्यु हुई। हमारी ज्योति तो थोड़ी-बहुत उपयोग किया हुआ है। गलत और सही का सवाल नहीं है। समाज बचेगी, नए दीए में जलेगी; और नए दीए खोजेगी; नए घर, नए। को एक बात समझ में आ गई है कि अगर व्यक्तियों को नियंत्रण शरीर ग्रहण करेगी। लेकिन बुद्ध की ज्योति? दीया भी मिट गया, में रखना हो, व्यवस्था में रखना हो, तो इसके पहले कि उनका ज्योति भी खो गई।
वास्तविक अंतःकरण बोलना शुरू हो, हमें जो-जो धारणाएं डालनी कृष्ण अभय को पहला आधार बनाते हैं दैवी संपदा का। क्योंकि हों, उनमें डाल देनी चाहिए। दिव्यता में जिसे भी प्रवेश करना हो, उसे अपने को पूरी तरह मिटाने ___ मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि सात वर्ष की उम्र तक आपका आधा
का साहस चाहिए। कौन अपने को पूरा मिटा सकता है? वही मस्तिष्क निर्मित हो जाता है। आधा, पचास प्रतिशत, सात वर्ष में! जिसको पूरा भरोसा है कि मिटने का कोई उपाय नहीं। यह बात | फिर पूरी जिंदगी में शेष पचास प्रतिशत निर्मित होता है। और यह विपरीत मालूम पड़ेगी, विरोधाभासी लगेगी।
जो पचास प्रतिशत सात वर्ष में निर्मित होता है, यह आधार है। वही व्यक्ति अपने को मिटा सकता है, जिसे भरोसा है कि मिटने इसके विपरीत जाना कठिन है। फिर पूरी जिंदगी इसके अनुकूल ही का कोई उपाय नहीं है; वह सहजता से छलांग ले सकता है। वह ले जाना आसान है। और अगर इसके विपरीत आप ले गए, तो अग्नि में उतर सकता है, क्योंकि वह जानता है कि अग्नि जलाएगी | बड़ी दुविधा और बड़ी कलह में जिंदगी बीतेगी। नहीं। वह शस्त्रों से छिद सकता है, क्योंकि वह जानता है कि शस्त्र __इसलिए सभी तथाकथित धार्मिक संप्रदाय बच्चों का शीघ्रता से छेदेंगे नहीं। इस आस्था पर ही अभय विकसित होगा।
शोषण करने को उत्सुक होते हैं। जो धर्म भी अपने बच्चों को अभय, अंतःकरण की अच्छी प्रकार से शुद्धि...।
धार्मिक शिक्षा नहीं देता, फिर बाद में आशा नहीं रख सकता। सात अंतःकरण के साथ बड़ी भ्रांतियां जुड़ी हैं। समाज ने अंतःकरण वर्ष के पहले ही धारणाएं प्रविष्ट हो जानी चाहिए। धारणाएं मजबूत का बड़ा उपयोग किया है। समाज की पूरी धारणा ही अंतःकरण के भीतर बैठ जाएं, तो वास्तविक अंतःकरण की आवाज सुनाई ही नहीं शोषण पर निर्भर है। समाज सिखा देता है बचपन से ही हर बच्चे | पड़ती; समाज के द्वारा दिया गया अंतःकरण ही बीच में बोलता को, क्या करने योग्य है, क्या करने योग्य नहीं है। और इस बात रहता है। को इतने जोर से स्थापित करता है, हृदय में इस बात को इतनी बार कृष्ण जब कहते हैं, अंतःकरण की अच्छे प्रकार से शुद्धि, तो वे पुनरुक्त किया जाता है कि कंडीशनिंग, संस्कारबद्ध धारणा बैठ | यही कह रहे हैं कि समाज ने जो धारणाएं दी हैं, उनसे जब तक जाती है। फिर जब भी आप उसके विपरीत जाने लगते हैं, कि छुटकारा न हो अंतःकरण का, तब तक वास्तविक आपकी आत्मा समाज का सिखाया हुआ अंतःकरण फौरन विरोध खड़ा करता है। बोल न पाएगी। हिंदू बोल सकता है भीतर से, मुसलमान बोलेगा,
इसलिए हर समाज के पास अलग-अलग तरह के अंतःकरण | जैन बोलेगा, ईसाई बोलेगा, आस्तिक-नास्तिक बोलेगा। लेकिन हैं। अगर आप एक शाकाहारी घर में पैदा हए हैं, तो उस घर ने | | आप जो लेकर पैदा हुए हैं, वह जो दैवी स्वर आपके भीतर है, वह
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