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* गीता दर्शन भाग-7 *
होगी कि सभी बच्चे प्यारे लगते हैं; कुरूप बच्चा वस्तुतः होता ही | बहुत-से लोग इसीलिए अपराधी नहीं हैं, क्योंकि उनमें निर्भयता नहीं। जो भी बच्चा है, प्यारा लगता है।
की कमी है; और कोई कारण नहीं है। अपराध तो वे भी करना लेकिन सारे प्यारे बच्चे फिर कहां खो जाते हैं! मुश्किल से कोई चाहते हैं; भयभीत हैं। चोरी आप भी करना चाहते हैं, लेकिन भय सुंदर आदमी बाद में बचता है। सभी बच्चे सुंदर पैदा होते हैं; बच्चों | पकड़ता है। चोरी के लोभ से ज्यादा चोरी का जो परिणाम हो सकता को देखकर सभी को सौंदर्य का भाव होता है। लेकिन फिर यही सारे है-कारागह हो सकता है. बदनामी होगी, प्रतिष्ठा खो जाएगी, बच्चे बड़े होते हैं, फिर बड़ी कुरूपता प्रकट होती है। शायद ही | | पकड़े जाएंगे—वह भय ज्यादा मजबूत है। लोभ से भय बड़ा है; कभी कोई बच पाता है, जो बाद में भी सुंदर होता है। कहां खो जाती | | वही आप पर अंकुश है। हत्या आप भी करना चाहते हैं। कई बार हैं सारी बातें?
मन में सोचते हैं, सपने देखते हैं। कई बार तो हत्या मन में कर ही बच्चे का सौंदर्य भी उसी संतुलन के कारण था। जैसे ही चुनाव देते हैं। ऐसा आदमी खोजना मुश्किल है, जिसने जीवन में दो-चार हुआ, सौंदर्य खोना शुरू हो जाता है।
बार मन में किसी की हत्या न कर दी हो। फिर परम संत को एक सौंदर्य उपलब्ध होता है, जिसके खोने ___ मनसविद कहते हैं कि हर आदमी अपने लंबे जीवन में, अगर का कोई उपाय नहीं। क्योंकि वह उपलब्धि है, वह स्वयं पाई गई वह सौ साल जीए तो कम से कम दस बार खुद की आत्महत्या करने बात है। वह प्रकृति का दान नहीं, अपनी अर्जित क्षमता है। और जो का विचार करता है, औसत। करते नहीं हैं आप, उसका कारण यह आपने कमाया है, वही केवल आपका है जो आपको मिला है, नहीं है कि आप करना नहीं चाहते हैं। उसका कारण सिर्फ इतना है वह आपका नहीं है।
| कि उतना निर्भय भाव नहीं जुटा पाते हैं। भय पकड़े रहता है। ये दोनों संपदाएं बराबर प्रत्येक व्यक्ति के भीतर हैं। ___ मैंने सुना है कि मुल्ला नसरुद्दीन बड़ा नाराज था पत्नी से, और उसके उपरांत कृष्ण बोले कि हे अर्जुन, दैवी संपदा जिन पुरुषों | | कलह कुछ ज्यादा ही बढ़ गई, तो आधी रात उठा और उसने कहा, को प्राप्त है तथा जिनको आसुरी संपदा प्राप्त है, उनके लक्षण | | बहुत हो चुका; जितना सह सकता था, सह लिया। हर चीज की पृथक-पृथक कहता हूं।
| सीमा आती है; और सीमा आ गई। मैं मरने जा रहा हूं इसी समय, लक्षण इसीलिए ताकि आप पहचान सकें, ताकि अर्जुन पहचान | | झील में डूबकर। दरवाजा खोलकर बाहर निकलता था, पत्नी ने सके। और यह पहचान अत्यंत बुनियादी है।
कहा, लेकिन नसरुद्दीन, तैरना तो तुम जानते ही नहीं! तो वह वापस दैवी संपदा को प्राप्त हुए पुरुष के लक्षणः अभय, फियरलेसनेस। लौट आया; उदास बैठ गया। उसने कहा, तो फिर मुझे कोई और
अभय शब्द सुनते ही हमें जो खयाल उठता है, वह उठता है | | उपाय सोचना पड़ेगा। निर्भयता का। लेकिन अभय निर्भयता नहीं है, क्योंकि निर्भय तो । वे मरने जा रहे थे झील में, लेकिन तैरना नहीं आता तो कोई और आसुरी संपदा वाले लोग भी होते हैं; अक्सर ज्यादा निर्भय होते हैं। उपाय सोचना पड़ेगा! अपराधी हैं, निर्भय हैं, नहीं तो अपराध करना मुश्किल था। और । करना आप भी वही चाहते हैं, जो अपराधी करता है, लेकिन एक दफा जेल से लौटते हैं, तो भी भयभीत नहीं होते; दुबारा और फर्क शायद निर्भयता का है। तैयारी करके अपराध में उतरते हैं।
कृष्ण अभय को दैवी संपदा का पहला लक्षण गिनाते हैं। और मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि कारागृह से तो किसी अपराधी सिर्फ कृष्ण नहीं, महावीर भी अभय को बुनियादी आधार बनाते हैं; को कभी ठीक किया ही नहीं जा सकता, क्योंकि उसकी निर्भयता | बुद्ध भी। महावीर ने कहा है कि अहिंसक तो कोई हो ही नहीं
और बढ़ती है। उसने यह भी देख लिया; वह इससे भी गुजर गया | | सकता, जब तक अभय न हो, क्योंकि भय से हिंसा पैदा होती है। यह तकलीफ भी बहुत ज्यादा नहीं है। यह भी सही जा सकती है। लेकिन ध्यान रहे, हिंसक निर्भय हो सकता है, होता है। आखिर
इसलिए जो आदमी एक बार कारागृह जाता है, वह फिर | | युद्ध के मैदान में जाता हुआ सिपाही निर्भय तो होता ही है, लेकिन बार-बार जाता है। दुनिया में जितने कारागृह बढ़ते हैं, उतने | | हिंसक होता है। और महावीर कहते हैं, अभय का अंतिम परिणाम अपराधी बढ़ते चले जाते हैं। जितनी ज्यादा हम सजा देते हैं, उतना | | अहिंसा है। तो हमें निर्भयता और अभय में थोड़ा फर्क समझ लेना अपराधी निर्भय होता है। यह थोड़ा समझ लेने जैसा है।
चाहिए।
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