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________________ चाह है संसार और अचाह है परम सिद्धि कभी भी संभव नहीं होगा। क्योंकि भविष्य का अर्थ ही यह है, जो न देखा जा सके; जो अभी नहीं है; जो अभी गर्भ में है; होगा । वर्तमान देखा जा सकता है। निर्णय वर्तमान के संबंध में लिए जा सकते हैं। भविष्य अंधेरे में है, छिपा है अज्ञात में। अर्जुन चाहता है, उसका भी निर्णय ले ले, तो ही युद्ध में उतरे। और ध्यान रहे, पिरहो और अर्जुन की हालत में बहुत फर्क नहीं अर्जुन की हालत और भी बुरी है। वहां तो एक आदमी डूबता और मरता था, यहां लाखों लोगों के मरने और बचने का सवाल है। युद्ध की आखिरी घड़ी में उसके मन को संदेह ने पकड़ लिया है। वस्तुतः जब भी आपको कोई कर्म करने का निर्णय लेना होता है, तब आप सभी अर्जुन की अवस्था में पहुंच जाते हैं। इसलिए अधिक लोग निर्णय लेने से बचते हैं। कोई और उनके लिए निर्णय । पिता बेटे से कह दे, ऐसा करो। गुरु शिष्य से कह दे, ऐसा करो। आप इसीलिए आज्ञा मानते हैं । आज्ञा मानने की मौलिक आधारशिला खुद निर्णय से बचना है। दुनिया में लोग कहते हैं कि लोगों को स्वतंत्र होना चाहिए। लेकिन लोग स्वतंत्र नहीं हो सकते। लोग आज्ञा मानेंगे ही। क्योंकि आज्ञा मानने में एक तरकीब है, उसमें निर्णय कोई और लेता है; आप निर्णय की जो दुविधा है, निर्णय का जो कष्ट है, जो कठिनाई है, उससे बच जाते हैं। इसलिए लोग गुरु को खोजते हैं, नेताओं को खोजते हैं। किसी के पीछे चलना चाहते हैं। पीछे चलने में एक सुविधा है; जो आगे चल रहा है, वह निर्णय लेगा। पीछे चलने वाले को निर्णय लेने की जरूरत नहीं है । यद्यपि यह भी भ्रांति है। क्योंकि किसी के पीछे चलने का निर्णय लेना, सारे निर्णयों की जिम्मेवारी आपके ऊपर आ गई। चुन तो आपने लिया है, लेकिन अपने को धोखा देने की सुविधा है। अर्जुन जैसी कठिनाई प्रत्येक व्यक्ति को अनुभव होगी। इसलिए गीता का संदेश बहुत शाश्वत है। क्योंकि प्रत्येक मनुष्य के जीवन में वही कठिनाई है। हर कदम पर, प्रतिपल, एक पैर भी उठाना है, तो निर्णय लेना है। क्योंकि हर पैर उठाने का परिणाम होगा और जीवन भिन्न होगा। एक कदम भी बदल देने से जीवन भिन्न हो जाएगा। आज आप यहां मुझे सुनने आ गए हैं। आपका जीवन वही नहीं हो सकता अब, जो आप मुझे सुनने न आए होते तो होता । वही हो ही नहीं सकता। अब कोई उपाय नहीं है। यह बड़ा निर्णय है । क्योंकि इस समय में आप कुछ करते। किसी के प्रेम में पड़ सकते थे; विवाह कर सकते थे। किसी से झगड़ सकते थे; दुश्मनी पैदा 3 | कर सकते थे। इस समय में कुछ न कुछ आप करते, जो जिंदगी | को कहीं ले जाता । इस समय मुझे सुन रहे हैं। यह भी कुछ कर रहे हैं। यह भी जिंदगी को कहीं ले जाएगा। क्योंकि एक-एक शब्द आपको भिन्न करेगा। आप वही नहीं हो सकते। चाहे आप मैं जो कहूं, उसे मानें या न मानें, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता । न मानें, तो भी आप वही नहीं होंगे। क्योंकि न मानने का निर्णय आपको भिन्न जगह ले जाएगा। मानें तो भी, न मानें तो भी! एक पलक भी झपकी, तो हम बदल रहे हैं। और एक पलक का फासला बड़ा फासला हो सकता है। मंजिल में हजारों मील का फर्क हो सकता है। इस अर्जुन की मनःस्थिति को ठीक से समझ लें, तो फिर कृष्ण का प्रयास समझ में आ सकता है कि कृष्ण क्या कर रहे हैं। अर्जुन उस दुविधा में खड़ा है, जो प्रत्येक मन की दुविधा है। और जब तक मन रहेगा, दुविधा रहेगी। क्योंकि मन कहता है, तुम | कुछ करने जा रहे हो, इसका परिणाम तुम्हें ज्ञात नहीं। और जब तक | परिणाम ज्ञात न हो, तुम कैसे करने में उतर रहे हो ? मन प्रश्न उठाता है और उत्तर नहीं है। अर्जुन प्रश्न-चिह्न बनकर खड़ा है। उत्तर की तलाश है। यह उत्तर उधार भी मिल सकता है। कोई कह दे और जिम्मेवारी अपने ऊपर ले ले। कोई कह दे कि भविष्य ऐसा है। भविष्य के संबंध | में कोई निर्णायक मंतव्य दे दे और सारा जिम्मा अपने ऊपर ले ले, तो अर्जुन युद्ध में कूद जाए या युद्ध से रुक जाए। कोई भी निष्कर्ष अर्जुन ले सकता है। लेकिन तब निर्णय उधार होगा, किसी और पर निर्भर होगा। कृष्ण कोई उधार वक्तव्य अर्जुन को नहीं देना चाहते। इसलिए | गीता एक बड़ा गहन मनो-मंथन है। एक शब्द में भी कृष्ण कह सकते थे कि मुझे पता है भविष्य । तू युद्ध कर। पर कृष्ण की अनुकंपा यही है कि उत्तर न देकर, अर्जुन के मन को गिराने की वे चेष्टा कर रहे हैं। जहां से संदेह उठते हैं, उस स्रोत को मिटाने की कोशिश कर रहे हैं; न कि संदेह के ऊपर आस्था और श्रद्धा का एक पत्थर रखकर उसको दबाने की। अर्जुन को किसी तरह समझा-बुझा देने की कोशिश नहीं है । अर्जुन को रूपांतरित करने की चेष्टा है। अर्जुन नया हो जाए, वह उस जगह पहुंच जाए, जहां मन गिर जाता है। जहां मन गिरता है, वहां संदेह गिर जाता है। क्योंकि कौन करेगा संदेह ? जहां मन
SR No.002410
Book TitleGita Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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