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गीता दर्शन भाग-7
अब हम सूत्र को लें।
हे भारत, इस प्रकार तत्व से जो ज्ञानी पुरुष मेरे को पुरुषोत्तम जानता है, वह सर्वज्ञ पुरुष सब प्रकार से निरंतर मुझ परमेश्वर को
भा
हे निष्पाप अर्जुन, ऐसे यह अति रहस्ययुक्त गोपनीय शास्त्र मेरे द्वारा कहा गया, इसको तत्व से जानकर मनुष्य ज्ञानवान और कृतार्थ हो जाता है।
एक-एक शब्द समझें।
इस प्रकार से जो ज्ञानी पुरुष मेरे को पुरुषोत्तम जानता है, वह सर्वज्ञ पुरुष सब प्रकार से निरंतर मुझ परमेश्वर को ही भजता है। जिसको भी यह स्मरण आ गया कि परिधि पर शरीर है, मध्य में चेतना है और अंत में केंद्र पर अंतर्यामी पुरुषोत्तम है; जिसको भी यह स्मरण आ गया कि केंद्र परमात्मा है, फिर उसकी परिधि भी परमात्मा के ही गुणगान करने लगती । फिर उसकी परिधि पर भी परमात्मा का ही स्वर गूंजने लगता है। फिर उसके बाहर भी वही प्रकट होने लगता है, जो भीतर है। फिर वह उठता भी है, तो परमात्मा में बैठता भी है, तो परमात्मा में। फिर परमात्मा उसके लिए कुछ पृथक नहीं रह जाता, उसके अपने होने का अभिन्न अंग हो जाता है। फिर वह जो भी करता है, वह सब परमात्मा में ही घटित होता है। जैसे मछली सागर में होती है, ऐसा फिर वह परमात्मा में होता है । भजने का यही अर्थ है।
भजने का यह अर्थ नहीं कि आप बैठे हैं, कभी-कभी राम-राम, राम-राम कर लिया। भजने का यह अर्थ है कि आपके जीवन की कोई भी गतिविधि परमात्मा से शून्य न हो। आप जो भी करें, जो भी न करें, सब में परमात्मा का स्मरण सतत भीतर बना रहे। आपके जीवन के कृत्य माला के मनके हो जाएं और परमात्मा आपके भीतर का धागा हो जाए। हर मनके में दिखाई पड़े या न दिखाई पड़े, वह धागा भीतर समाया रहे। सभी मनके उसी धागे से बंध जाएं, भजन का यह अर्थ है।
पर हम तो हर चीज को विकृत कर लेते हैं। तो हम काम करते जाते हैं और सोचते हैं, भीतर राम-राम करते जाओ। लोग अभ्यास कर लेते हैं उसका । तो वे कार ड्राइव करते रहेंगे और भीतर राम-राम करते रहेंगे ! वह अभ्यस्त हो जाता है।
मन जो है, आटोमैटिक किया जा सकता है। तो मन स्वचालित यंत्र बन जाता है। आप अपना काम करते रहें, वहां राम-राम, राम-राम, राम-राम चलता रहे। उसका कोई मूल्य नहीं है। वह मन
का एक कोना दोहराता रहता है।
भजन का अर्थ है, आपके जीवन में डूब जाए स्मृति परमात्मा की। कैसे यह हो ?
किसी मित्र की आंख में झांकें, तब आपको मित्र तो दिखाई पड़े, वह परिधि रहे, लेकिन उसमें पुरुषोत्तम भी दिखाई पड़े, तो वह भजन हो जाएगा। फूल को देखें, फूल तो परिधि रहे और फूल में जो सौंदर्य प्रकट हुआ है, वह जो खिलावट, वह जो जीवन की अभिव्यक्ति हुई है, वह जो पुरुषोत्तम वहां मौजूद है, उसका स्मरण आ जाए। चाहे फूल देखें, चाहे आंख देखें, चाहे आकाश देखें, जो भी देखें वहां आपको पुरुषोत्तम की स्मृति बनी रहे ।
ऐसा नहीं कि फूल देखें, तो भीतर राम-राम, राम-राम करने लगें। उसमें तो फूल भी चूक जाएगा। राम-राम करने की शाब्दिक | बात नहीं है। फूल के अनुभव में पुरुषोत्तम का अनुभव मौजूद रहे। भोजन करें, पुरुषोत्तम का अनुभव मौजूद रहे। स्नान करें, पुरुषोत्तम | का अनुभव मौजूद रहे।
लोग नदी में स्नान करने जाते हैं। मेरे गांव में नियम से लोग सुबह नदी में स्नान करने जाते हैं। सर्दी के दिनों में भी जाते हैं। सर्दी के दिनों में वे ज्यादा भजन करते और राम-राम, जय शिव शंकर...!
पानी में ठंड लगती है, भुलाने के लिए वे जोर से भगवान का नाम लेते हैं। इधर मन भगवान के नाम में लग जाता है, एक डुबकी लगाई और बाहर निकल आए। फिर वे भगवान का नाम नहीं लेते। जैसे ही बाहर हुए, वे भूले। तो वे जब भगवान का नाम ले रहे हैं, ऐसा लगेगा सुबह नदी के किनारे कि बड़े भक्त आए हुए हैं। वह सिर्फ ठंड से बचने का उपाय है।
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वह वैसे ही जैसे आप अकेले गली में जा रहे हों, तो जोर से सीटी बजाने लगें; उससे ऐसा लगता है कि अकेले नहीं हैं। सीटी सुनाई पड़ती है, अपनी ही सीटी! जो नहीं हैं धार्मिक, वे फिल्मी गाना गाकर भी स्नान कर लेते हैं। उसमें भी फर्क नहीं पड़ता ।
भजन का अर्थ कोई शब्दों से राम की स्मृति नहीं है। क्योंकि वह धोखा भी हो सकती है; दुख से बचने का उपाय हो सकती है; ठंड से बचने का उपाय हो सकती है; अकेलेपन से बचने का उपाय हो सकती है। वह एक तरह की व्यस्तता हो सकती है।
नहीं, भगवान को अनुभव में जानना है, अनुभव से पलायन करके नहीं। उससे बचना नहीं, उससे भागना नहीं। जैसा भी जीवन है, जहां भी जीवन ले जाए, वहां मेरी आंख परिधि पर ही न रहे,