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* प्यास और धैर्य *
खिलाफ बह रही है। क्योंकि वह नदी से उलटा जाने की कोशिश | मार न सके, वह गुरु नहीं; जो आपको मिटा न सके, वह गुरु नहीं। कर रहा है। उसको लगता है, नदी मेरी दुश्मन है। और एक आदमी वह आपको काटेगा ही। और जब आप बिलकुल समाप्त हो नदी में बह रहा है; जहां नदी जा रही है, उसी में बह रहा है। उसको जाएंगे, तभी आपको छोड़ेगा कि बस, अब काम पूरा हुआ। बिना लगता है, नदी मेरी मित्र है, नदी मेरी नाव है। और नदी मुझे ले जा | | मिटे परमात्मा को पाने की कोई व्यवस्था नहीं है। बिना खोए उसकी रही है; जरा भी श्रम नहीं करना पड़ रहा है।
खोज पूरी नहीं होती। ___ अगर गुरु के साथ आप उलटी धारा में बह रहे हों, तो फंसना | इसलिए पुराने सूत्रों में कहा है कि आचार्य, गुरु मृत्यु है। और वह लगेगा। और अगर गुरु के साथ बह रहे हों, तो मुक्ति अनुभव जो कठोपनिषद में नचिकेता को भेजा है यम के पास, वह गुरु के होगी। आप पर निर्भर है, शिष्य पर निर्भर है कि गुरु परतंत्रता बन पास भेजा है। यम गुरु का प्रतीक है। वहां जाकर आप मर जाएंगे। जाएगा कि स्वतंत्रता।
इसलिए गुरु से लोग बचते हैं। पच्चीस तरह की युक्तियां खोजते तड़पना भी पड़ेगा। क्योंकि यह खोज बड़ी है और यह खोज | | हैं कि कैसे बच जाएं; रेशनलाइजेशन खोजते हैं कि कैसे बच जाएं। गहन है। और मिलने के पहले बहुत पीड़ा है। पानी मिले, उसके | गुरु को सुन भी लेते हैं, तो कहते हैं, बात अच्छी है, लेकिन अभी पहले गहन प्यास से गुजरना होगा। और जैसे ही आप किसी गुरु | अपना समय नहीं आया! करेंगे कभी जब समय आएगा! हजार के पास पहुंचेंगे, आपकी तड़प बढ़ेगी, घटेगी नहीं। अगर घट | | तरकीब आदमी करता है अपने को बचाने की। जाए, तो समझना कि यह गुरु आपके काम का नहीं है। क्योंकि | ___ जैसे आप मृत्यु से बचते हैं, वैसे ही आप गुरु से बचते हैं। और घटने का मतलब यह हुआ कि आग ठंडी हो रही है। | जिस दिन आप ठीक से समझ लेंगे...। गुरु के पास जाने का
गुरु के पास पहले पहुंचकर तो प्यास बढ़ेगी, क्योंकि गुरु को | मतलब ही यह है कि मैं गलत हूं और गलत को जला डालना है। देखकर आपको पहली दफा पता चलेगा कि पानी पीए हुए लोग और मैं भ्रांत हूं और प्रांत को मिटा देना है। और मैं जैसा अभी हूं, किस आनंद में हैं। पहली दफा तुलना पैदा होगी, तकलीफ पैदा | मरणधर्मा हूं; इस मरणधर्मा को मर जाने देना है, ताकि अमृत का होगी। पहली दफा तृषा गहन होगी। पहली दफा लगेगा कि ऐसा मैं | उदय हो सके। भी कब हो जाऊं? कैसे हो जाऊं? यह मुझे भी कब हो? . मृत्यु द्वार है अमृत का। और जो मिटने को राजी है, वह उसको __ आनंद की पहली झलक आपके दुख को बहुत गहन कर | उपलब्ध हो जाता है, जो कभी नहीं मिटता है। एक तरफ गुरु मारेगा जाएगी। ऐसे ही जैसे रास्ते से आप गुजर रहे हों, अंधेरे रास्ते से, | और दूसरी तरफ जिलाएगा। वह मृत्यु भी है और पुनर्जन्म भी, लेकिन अंधेरे में ही गुजर रहे हों, तो अंधेरे में भी दिखने लगता है। नव-जीवन भी। फिर एक कार गुजर जाए तेज प्रकाश को करती हुई, तो कार के क्या गुरु के जाल में फंसना, तड़पना, मर जाना, रूपांतरण की गुजरने के बाद रास्ता और भी भयंकर अंधकार मालूम होता है। प्रक्रिया के अनिवार्य अंग हैं? तुलना पैदा होगी।
बिलकुल अनिवार्य अंग हैं। और इसके पहले कि फंसो या तो गुरु के पास आकर पहली दफा तुलना पैदा होगी। पहली दफा | भाग खड़े होना चाहिए; फिर लौटकर नहीं देखना चाहिए। गुरु आपको लगेगा, आप कहां हैं! किस नरक में हैं! किस पीड़ा में हैं! खतरनाक है। जरा भी रुके, तो डर है कि फंस जाओगे। और फंस
तो तड़प तो पैदा होगी। और गुरु की कोशिश होगी कि और जोर गए, फिर तड़पना पड़ेगा। तड़पे, कि फिर मरना पड़ेगा। वे एक ही से तड़पाए। क्योंकि जितने जोर से आप तड़पें, उतनी ही आग पैदा | मार्ग की सीढ़ियां हैं। होगी, उतना ही उबलने का बिंदु करीब आएगा। और जितने आप लेकिन जो व्यक्ति स्वयं का रूपांतरण चाहता है, वह चाहता तड़पें, उतनी ही खोज जारी होगी, सरोवर के निकट पहुंचना आसान क्या है? वह चाहता यही है कि मैं गलत हूं, जैसा हूं। जो मुझे होना होगा। अगर आप पूरी तरह तड़प उठें, तो सरोवर उसी क्षण प्रकट | चाहिए, वह मैं नहीं हूं। और जो मुझे नहीं होना चाहिए, वह मैं हूं। हो जाता है।
तो वह मिटने के लिए तैयार है, वह बिखरने के लिए तैयार है, वह इसलिए तड़पना भी होगा और मरना भी होगा। क्योंकि वह शून्य होने को राजी है। और जो व्यक्ति शून्य होने को राजी है, उसी आखिरी है। गुरु का काम ही वही है। गुरु यानी मृत्यु। जो आपको का गुरु से मिलन हो पाता है।
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