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________________ गीता दर्शन भाग-7 कहा कि समझदार पत्नियां इस तरह के प्रश्न नहीं पूछतीं। पत्नी आगबबूला थी; उसने कहा, और समझदार पति...? वह आगे कुछ कहे, उसके पहले ही नसरुद्दीन बोला कि ठहर ! समझदार पति सदा कुंआरे रहते हैं। वह जो डरा हुआ है, वह कितना ही समझदार मालूम पड़ता हो, लेकिन जीवन के अनुभव से वंचित रह जाएगा। एक अनुभव है। और उसमें उतरने से ही पता चलता है। और उसका फंसना उपयोगी है। क्योंकि उस फंसने के भीतर भी अगर तुम बिना फंसे रह सको, तो तुम्हारे जीवन में अमृत बरस जाएगा। उस कारागृह में प्रवेश करके भी तुम्हारी मुक्ति नष्ट न हो, तुम्हारी भीतरी मुक्ति तुम कायम रख सको, वही कला है। तो एक तो प्रेम है जीवन में। गुरु और शिष्य का संबंध भी प्रेम का आखिरी संबंध है। वह और भी बड़ा फंसाव है । क्योंकि पत्नी के साथ रहकर स्वतंत्र रहना आसान है, गुरु के साथ रहकर स्वतंत्र रहना और भी मुश्किल है, और भी जटिल है, क्योंकि उसका जाल और भी बड़ा है। वह हृदय तक ही नहीं जाता, उसका जाल आत्मा तक चला जाता है। पर वहां भी स्वतंत्र रहने की संभावना है। और मजा यही है कि वहां जितने पूरे मन से कोई अपने को छोड़ देगा, उतना ही स्वतंत्र रहेगा। परतंत्रता पैदा इसलिए होती है कि तुम छोड़ नहीं पाते। अगर तुम छोड़ दो, तो परतंत्र रहने का कोई अर्थ ही नहीं है । जेलखाना जेलखाना मालूम पड़ता है, क्योंकि तुम जेलखाने में रहना नहीं चाहते। और अगर तुम जेलखाने में रहना ही चाहते हो, तब ? तब जेलखाना समाप्त हो गया। फिर अगर जेल के लोग तुम्हें बाहर निकालने लगें, तो वह परतंत्रता होगी। जिस बात से हमारा प्रतिरोध है, विरोध है, रेसिस्टेंस है, वहीं फंसना मालूम होता है। अगर एक युवक एक युवती को सच में ही प्रेम करता है, तो फंसना मालूम होता ही नहीं। युवती अगर सच में प्रेम करती है, तो फंसना मालूम नहीं होता; तब प्रेम मुक्ति मालूम होता है। और अगर प्रेम न हो, डर हो, भय हो, बचाव की चेष्टा हो, तो फंसना मालूम होता है; तो बंधन और कारागृह मालूम होता है। मैं यह कह रहा हूं आपसे कि वहीं आपको बंधन मालूम होता है, जहां आप लड़ते हैं। भूमिदान आंदोलन असफल हुआ, तो सारे मुल्क में भूमि हथियाओ आंदोलन चला। तो मैंने एक घटना सुनी है कि उसकी नकल पर एक गांव में – निश्चित ही गांव गुजरात में रहा होगा - पत्नियां हथियाओ आंदोलन लोगों ने चला दिया । और | उन्होंने कहा कि समाजवाद में जब कि सभी के पास एक-एक पत्नी नहीं है, तो कुछ लोगों के पास दो-दो हैं, यह नहीं हो सकता। यह बर्दाश्त के बाहर है। तो जिन युवकों के पास पत्नियां नहीं थीं, उन्होंने एक जुलूस निकाला और कहा कि पत्नियां हथियाओ। जिनके पास दो हैं, उनसे एक छीनो, और उनको दो जिनके पास एक भी नहीं है। और यह समाजवाद के लिए बिलकुल जरूरी है। मुल्ला नसरुद्दीन बाहर गया था; उसकी दो पत्नियां थीं। वह घर |पहुंचा, तो हाय-तोबा मची थी। जुलूस उसकी एक पत्नी को लेकर आगे बढ़ गया था। मुल्ला भागा; जाकर नेता के हाथ पकड़ लिए | और कहा कि अन्याय मत करो। उस नेता ने कहा, अन्याय कौन | कर रहा है? तुम अन्याय कर रहे हो जनता पर कि हम ? जब कि | गांव में सौ आदमी मौजूद हैं जिनके पास एक भी पत्नी नहीं; और तुम दो-दो पर कब्जा जमाए बैठे हो ? तुम दो-दो का सुख ले रहे हो? और ज्यादा हमारे पास समय नहीं। अभी हमें और कोई पचास पत्नियां हथियानी हैं। उसने घड़ी देखी, उसने कहा,' हटो रास्ते से । नसरुद्दीन ने फिर भी हाथ पकड़ लिया और बिलकुल कंपने लगा और कहा कि नहीं, ऐसा अन्याय मत करो।' को भी दया आ | गई और नेता ने कहा, मर्द जैसे मर्द होकर भी इस तरह रिरिया रहे हो औरतों की तरह ! ले जा अपनी पत्नी को । नसरुद्दीन एकदम जमीन पर गिर पड़ा और पैर पकड़ लिए और कहा कि आप समझे नहीं; दूसरी को भी लेते जाइए। बंधन! जहां प्रेम समाप्त हुआ, वहां विवाह बंधन बन जाता है, परतंत्रता बन जाता है। जहां श्रद्धा खो गई, वहां गुरु जेलखाना हो जाता है। श्रद्धा हो, तो गुरु मुक्ति है। प्रेम हो, तो प्रेम का संबंध स्वतंत्रता है और प्रेमी एक-दूसरे को और स्वतंत्र कर देते हैं, जितने अकेले होकर वे कभी भी नहीं हो सकते थे। क्योंकि दो स्वतंत्रताएं मिलती हैं। और गुरु तो परम मुक्त है। उसके मोक्ष से जब आपका मिलना होता है या उसके जाल में जब आप फंसते हैं, तो अगर आपका | विरोध न हो तो आप परम मुक्त हो जाएंगे। और अगर विरोध हो, | तो ही आपको लगेगा कि जाल में फंसे हैं। जाल में फंसा हुआ होना जाल के कारण नहीं लगता; मुझे फंसना नहीं है, इसलिए लगता है। नदी में एक आदमी तैर रहा है, तो उसको लगता है, नदी मेरे 274
SR No.002410
Book TitleGita Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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