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गीता दर्शन भाग-7 *
क्योंकि इस धोखे में आपने न मालूम कितना समय गंवाया होगा। जा सकेंगे; न गुरु के वचन काम आएंगे; न आपने जो प्रभाव इकडे
लोग हैं, जो एक गुरु से दूसरे गुरु की यात्रा करते रहते हैं; एक | किए हैं, वे काम आएंगे। मरते क्षण में, आपने क्या किया आश्रम से दूसरे आश्रम में चलते रहते हैं। कोई आश्रम उनको बदल जीवनभर, वही बस आपके साथ होगा। मरते क्षण के कृत्यों नहीं पाता। और तब वे क्या सोचते हैं, कि सभी आश्रम बेकार हैं; का सार-निचोड़ आपके साथ यात्रा पर निकलेगा। मरते क्षण में कहीं कोई सार नहीं है। कोई गुरु उनको नहीं बदल पाता। तब वे सिर्फ आप ही बचेंगे; और आपके अपने सारे कृत्यों का संग्रह, सोचते हैं कि सब गुरु बेकार हैं, सदगुरु कोई है ही नहीं। जो-जो आपने किया, उसकी सब लकीरें आपके ऊपर हैं।
कठिनाई सदगुरु की नहीं है, कठिनाई आपकी है। आप बदलने तो निरंतर यह सोचें कि आपके जीवन की धारा कैसी चल रही को तैयार हों, तो एक छोटा बच्चा भी आपको बदल दे सकता है। है। वही पहचान है। और आप बदलने को तैयार न हों; तो खुद कृष्ण भी आपके पास खड़े रहें, तो कुछ भी करने में समर्थ नहीं हैं।
इसे खयाल रखें। जो भी प्रभाव हो, वह आपका कृत्य बनने | - दूसरा प्रश्नः इतने दिन से आपको बड़ी उत्कंठा से लगे, इसका स्मरण रखें। और मौका दें कि वह कृत्य बने। जहां भी सुनकर भी मैं अपने आपको वहीं पा रहा हूं जहां मैं अवसर मिले, तत्क्षण जो आपका भाव है, उसे कर्म में रूपांतरित | था! फिर मैं क्या आशा रख सकता हूं? होने दें। जब भी कोई भाव कर्म बनता है, तो उसकी लकीर आपके भीतर गहरी हो जाती है।
जो आप सोचते हैं, उसका बहुत मूल्य नहीं है। जो आप करते किससे आप आशा रख रहे हैं, मुझसे या अपने से? हैं, उसी का बहुत मूल्य है। क्योंकि जो आप करते हैं, वह आपके पिा प्रश्न से ऐसा लगता है कि मुझसे कुछ आशा रख रहे
अस्तित्व से जुड़ता है। जो आप सोचते हैं, वह बुद्धि में भटकता हैं। जैसे मुझे सुनकर आप वहीं के वहीं हैं, तो कसूर रहता है।
| मेरा है! मैंने कहा कब आपको कि आप सुनकर कुछ और हो बहुत लोग हैं जिनके पास अच्छे-अच्छे विचार हैं। उन अच्छे | जाएंगे? काश, इतना आसान होता कि लोग सुनकर बदल जाते; विचारों का कोई भी मूल्य नहीं है। समय पर काम नहीं आते। और तो इस दुनिया में बदलाहट कभी की हो गई होती! जो वे करते हैं, उस करने से उनके विचारों का कोई संबंध नहीं | ___ लोग सुनकर नहीं बदलते हैं, यह तो साफ ही है। और सच तो जुड़ता।
| यह है कि जितना ज्यादा सुनते हैं, उतना ही जड़ हो जाते हैं। क्योंकि मैं जो भी आपसे बोलता हूं, उसका प्रयोजन आपको प्रभावित | सुनने की उनको आदत हो जाती है। तो पहली दफे सुनकर शायद करना नहीं है। बच्चों का खेल है प्रभावित करना। आप तो मदारी | थोड़ी-बहुत उनकी बुद्धि में गति भी आई हो, बार-बार सुनने से से प्रभावित हो जाते हैं, इसलिए उसका कोई मूल्य भी नहीं है। उतनी गति भी खो जाती है! फिर सुनने के आदी हो जाते हैं! फिर सड़क पर एक मदारी डमरू बजा रहा है। आप वहीं खड़े हो जाते उनको लगता है, यह तो सब परिचित ही है। फिर सुनना भी एक हैं। तो आपको प्रभावित करने का कोई मूल्य नहीं है, न कोई अर्थ | नशा हो जाता है। तो उसकी तलब होती है। है। आप तो किसी से भी प्रभावित हो जाते हैं!
अगर आप मुझे सुनते हैं उत्कंठा से और कोई फर्क नहीं हो रहा, ___ आपके भीतर जीवन का संचरण शुरू हो जाए! आपकी तो आठ बजे कि आप चले। वह तलब है। वह जैसे किसी को जीवन-धारा नई गति ले ले!
सिगरेट पीने की तलब है, कि आठ बजे और सिगरेट न पीए, तो तो न शास्त्रों की फिक्र करें, न प्रभावों की फिक्र करें; फिक्र इस उसको तकलीफ होती है। तो यह एक व्यसन हुआ, नशा हुआ। बात की करें कि आपके भीतर क्या घटित हो रहा है। इसका सतत नशे का एक मजा है। करो, तो कुछ मिलता नहीं; न करो, तो निरीक्षण चाहिए। और आपके भीतर जो घटित होगा, वही संपदा | | तकलीफ होती है। जाओ सुनने, कुछ फायदा नहीं; न जाओ, तो बनेगी।
बेचैनी होती है। जब भी ऐसा हो, तो समझना कि यह व्यसन हो मरते क्षण में न तो आप शास्त्र ले जा सकेंगे, न गुरु को साथ ले गया। यह रोग है। इस रोग से कुछ उपलब्धि होने वाली नहीं है।
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