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* प्यास और धैर्य *
हो, टिकता न हो; आता हो, चला जाता हो; जरा-सा पानी और | इसकी भी जांच निरंतर रखनी चाहिए कि हम केवल प्रभावों से तो सब बह जाता हो; तो समझना कि वह व्यक्तियों के प्रभाव में |
| नहीं जीते? अपने भीतर भी खोज करते रहना चाहिए कि हम सिर्फ आपको लगता है कि समर्पण हो रहा है।
सम्मोहित तो नहीं हैं? हमारे भीतर कुछ अंतर हो रहा है या नहीं? वह समर्पण आपका नहीं है। उससे कोई रद्दोबदल, कोई क्रांति रोज लोग मंदिर में जाते हैं। मंदिर में उनके चेहरे देखें; कभी भी नहीं होगी। आप जैसे थे, आप वैसे ही रहेंगे। नुकसान भी | भक्ति-भाव से भरे हुए मालूम पड़ते हैं। मंदिर से बाहर निकलते ही हो सकता है। क्योंकि जो व्यक्ति स्वयं बिना बदले प्रभावित हो चेहरे बदल जाते हैं। उस मंदिर को वे जन्मों से जा रहे होंगे, लेकिन जाता है, उसके जीवन की सारी व्यवस्था ऊपर-ऊपर, सतह पर | | मंदिर कहीं भी उनको बदल नहीं पाता। वे वही के वही हैं। मंदिर में होने लगती है। वह किसी से भी प्रभावित हो सकता है। वह जहां जाकर एक चेहरा ओढ़ लेते हैं। उसकी भी आदत हो गई है! तो जाएगा, वहीं प्रभावित हो जाएगा। लेकिन प्रभाव होगा ऊपर लहरों | मंदिर में प्रवेश करते ही से भक्ति का भाव धारण कर लेते हैं। पर; उसके प्राणों की गहराई में कुछ भी नहीं होगा।
लेकिन धारण किए हुए भाव का कोई मूल्य नहीं है। भाव भीतर प्राणों की गहराई में तो जो घटना घटती है, वह आपके ही से आना चाहिए। और अगर भीतर से आएगा, तो मंदिर में ही क्यों, अनुभव से घटती है। आपका अनुभव तैयार हो और गुरु का मिलन | | मंदिर के बाहर भी रहेगा, मंदिर के भीतर भी रहेगा। हो जाए, तो समर्पण, शरणागति पैदा होती है।
तो जब आप मुझे सुनते हैं, तभी अगर ऐसा लगता हो कि . आपका अनुभव भीतर न हो और गुरु का मिलना हो जाए, तो समर्पण कर दें, उसका बहुत मूल्य नहीं है। जब मुझे सुनकर चले प्रभाव पैदा होता है। लेकिन प्रभाव क्षण में आता है, क्षण में चला | | जाते हैं, और अगर वह भाव आपके भीतर गूंजता ही रहता हो; जाता है; उसका कोई बहुत मूल्य नहीं है। वह वैसे ही है, जैसे आप | | उठते-बैठते, सोते-जागते, उसकी धुन आपके भीतर बजती रहती चित्र देखने गए; फिल्म देखी और थोड़ी देर को प्रभावित हो गए। | हो, वह आपका पीछा करता हो; न केवल पीछा करता हो, बल्कि हैं। और बाहर निकलते ही बात समाप्त हो गई है।
उसकी मौजूदगी के कारण आपके जीवन में फर्क पड़ता हो; कि यह भी हो सकता है कि फिल्म देखते क्षण में करुणा उमड़ आई आप किसी की जेब में हाथ डालकर रुपया निकालने ही वाले थे, हो, आंख आंसुओं से भर गई हो। लेकिन जैसे ही परदे पर प्रकाश | कि वह जो भाव आपके भीतर उठा था, वह आपको रोक देता हो; होता है, घंटी बजती है, स्मरण आ जाता है कि सिर्फ फिल्म थी, कि गाली बस निकलने को ही थी मुंह से, कि वह जो भाव भीतर प्रकाश-छाया का खेल था; रोने जैसा कुछ भी न था; और आप उठा है, बाधा बन जाता हो; कि कोई गिर पड़ा था, उसको उठाने हंसते हुए बाहर आ जाते हैं। हो सकता है अभी भी आंखें गीली हों, | के लिए हाथ बढ़ जाता हो; वह भाव कृत्य बनता हो; तो समझना लेकिन वह सब ऊपर-ऊपर था; भीतर उसके कोई परिणाम नहीं है। कि वह आपके भीतर है।
मझे सनकर भी प्रभाव हो सकता है। मेरी बात अच्छी लग अगर भाव कत्य बनने लगे. तो उसका अर्थ है कि वह आचरण सकती है, तर्कयुक्त मालूम हो सकती है। मेरी बात का काव्य मन | को बदलेगा। अगर भाव कृत्य न बने, तो आप तो वही रहेंगे। हो को पकड़ ले सकता है। लेकिन उसका बहुत मूल्य नहीं है; | | सकता है, बुद्धि में थोड़ी अच्छी बातें संगृहीत हो जाएं। अच्छी बातों मनोरंजन से ज्यादा मूल्य नहीं है। बाहर आप जाएंगे, वह सब खो | | का कोई भी मूल्य नहीं है। अच्छी बातें अच्छे सपनों जैसी हैं। सपना जाएगा; धुआं-धुआं उड़ जाएगा।
कितना ही अच्छा हो, तो भी सपना है। और सपने में आप सम्राट लेकिन अगर आपके भीतर अनुभव भी पका हो और फिर मेरी | | भी हो जाएं, तो सुबह आप पाते हैं कि आप भिखारी हैं। उससे कुछ बात का उससे मेल हो जाए; बीज भी पड़ा हो जमीन में और वर्षा | | अंतर नहीं पड़ता। हो, तो अंकुरण होगा। बीज आपको अपने साथ लाना है। ___ तो मैं अगर कहूं कि आप स्वयं ब्रह्म हैं; और भीतर छिपा है
कोई भी गुरु आपको अनुभव नहीं दे सकता। गुरु वर्षा बन अविनाशी अंतर्यामी; और मेरी बात सुनकर आपको लगे कि ठीक, सकता है। अनुभव का बीज भीतर हो, तो अंकुरित हो सकता है। | और इससे जीवन में, कृत्य में कहीं कोई अंतर न पड़ता हो; तो गुरु की मौजूदगी माली का काम कर सकती है। लेकिन कोई भी । | इसका कोई भी मूल्य नहीं है; और इसे आप धोखा समझना। और गुरु बीज नहीं बन सकता आपके लिए। उसका कोई उपाय नहीं है। इस धोखे से जितने जल्दी आप बाहर हो जाएं, उतना अच्छा है।
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