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* गीता दर्शन भाग-73
यो मामेवमसंमूढो जानाति पुरुषोत्तमम् । | और अगर गुरु-भाव भ्रांत हो, मिथ्या हो, सिर्फ खयाल हो, पैदा स सर्वविद्भजति मां सर्वभावेन भारत ।। १९ ।। | न हुआ हो, तो ज्यादा देर टिकेगा नहीं। उसका कोई बहुत मूल्य नहीं
इति गुह्यतमं शास्त्रमिदमुक्तं मयानघ । | है। वह ऐसे ही है, जैसे फूल को किसी ने बीज के ऊपर रख दिया एतबुद्ध्वा बुद्धिमानस्यात्कृतकृत्यश्च भारत ।। २० ।। | हो; बीज से निकला न हो।
हे भारत, इस प्रकार तत्व से जो ज्ञानी पुरुष मेरे को __यदि गुरु-भाव वस्तुतः पैदा हुआ है, तो जीवन बदलना शुरू हो पुरुषोत्तम जानता है, वह सर्वज्ञ पुरुष सब प्रकार से निरंतर | जाएगा। वही लक्षण है कि गुरु-भाव वास्तविक है या नहीं। क्योंकि मुझ परमेश्वर को ही भजता है।
गुरु-भाव एक बड़ी क्रांतिकारी घटना है। किसी के प्रति समर्पण की हे निष्पाप अर्जुन, ऐसे यह अति रहस्ययुक्त गोपनीय शास्त्र | भावना जीवन को आमूल बदलना शुरू कर देती है। समर्पित होते मेरे द्वारा कहा गया, इसको तत्व से जानकर मनुष्य ज्ञानवान ही आप दूसरे होने शुरू हो जाते हैं। वह जो व्यक्ति समर्पित हुआ और कृतार्थ हो जाता है।
था, मर ही जाता है। नए व्यक्ति का ही उदभव हो जाता है।
अगर समर्पण की, शरण जाने की भावना वास्तविक हो और
वास्तविक का अर्थ यह है कि पिछले जन्मों के अनुभव से निकली पहले कुछ प्रश्न।
हो-तो आपके जीवन में क्रांति शुरू हो गई। वह अनुभव आने पहला प्रश्नः कल आपने कहा कि बिना शास्त्रों को | लगेगी। पढ़े गुरु की तलाश नहीं करनी चाहिए, मगर मैंने कभी आपकी वृत्तियों में फर्क होगा; आपके लोभ में, क्रोध में, काम शास्त्रों का अध्ययन नहीं किया और आपको पहली | में फर्क होगा। आपकी करुणा गहन होगी, मैत्री बढ़ेगी। सुख-दुख बार सुनकर ही गुरु मान लिया है। तो क्या मेरा रास्ता | के प्रति उपेक्षा आनी शुरू होगी। भविष्य बहुत मूल्यवान नहीं गलत है? कल से मुझे सूझ नहीं पड़ता; क्या मैं सदा | मालूम होगा; वर्तमान ज्यादा मूल्यवान मालूम होगा। और जो ही भटकता रहूंगा?
| दिखाई पड़ता है, उससे भी ज्यादा, जो नहीं दिखाई पड़ता है, उसकी | तरफ आंखें उठनी शुरू हो जाएंगी। ऐसे जीवन में सब तरफ से फर्क
पड़ने शरू होंगे। ल हुत-सी बातें समझनी जरूरी हैं। पहली बात, यह जन्म | अगर गुरु-भाव, गुरु के प्रति समर्पण का भाव, अतीत के प आपका पहला नहीं है। आप जमीन पर नए नहीं हैं। अनुभवों से निकला हो, तो पहचानने में अंतर नहीं पड़ेगा, कठिनाई
बहुत बार हुए हैं; बहुत बार खोजा है; बहुत बार | नहीं पड़ेगी। लेकिन अगर ऐसे ही पैदा हो गया हो—ऐसे भी कभी शास्त्रों में भी खोजा है; बहुत बार गुरुओं के चरणों में भी बैठे हैं। | पैदा हो जाता है—तब आपमें गुरु के प्रति भाव पैदा नहीं होता, गुरु सारे जन्मों का सार-संचित आपके साथ है।
के प्रभाव में आपके ऊपर फूल रख जाता है। यदि कभी ऐसा घटित होता हो कि किसी के निकट गरु-भाव | प्रभावशाली व्यक्ति हैं। उनके व्यक्तित्व में प्रभाव हो सकता है; पैदा हो जाता हो, तो उसका केवल एक ही अर्थ है कि पिछले जन्मों | | उनकी वाणी में प्रभाव हो सकता है; उनके अस्तित्व में प्रभाव हो की अनंत यात्रा में गुरु के प्रति समर्पित होने की पात्रता अर्जित की | सकता है। उस प्रभाव की छाया में आपको लग सकता है कि आप है। अगर वैसा न हो, तो गुरु-भाव पैदा होना संभव नहीं है। | समर्पित हो रहे हैं। लेकिन वह ज्यादा देर टिकेगा नहीं। वह सम्मोहन
जैसे फूल तो तभी लगेंगे वृक्ष पर, जब वृक्ष बड़ा हो गया हो, से ज्यादा नहीं है। जल्दी ही वर्षा, एक वर्षा भी उसे धुला देने के शाखाएं फैल गई हों, पत्ते लग गए हों, और फूल लगने का समय | लिए काफी होगी। आ गया हो। बीज से सीधे फूल कभी नहीं लगते।
तो यही कसौटी है कि अगर समर्पण आपको बदल रहा हो, तो पहली बात तो यह खयाल रखनी चाहिए कि यदि सच में टिकता हो और धीरे-धीरे स्थिर भाव बनता हो, तो समझना कि गुरु-भाव पैदा हुआ हो, तो शास्त्रों की खोज पूरी हो गई होगी। वह | | शास्त्रों की कोई जरूरत नहीं है; शास्त्रों का काम पूरा हो चुका चाहे ज्ञात न भी हो; चाहे आपके चेतन मन को उसका पता भी न हो। होगा। अगर समर्पण-भाव कई बार आता हो, अनेक के प्रति आता
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