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* पुरुषोत्तम की खोज
वह जीवन-मुक्त है।
आप भिखारी नहीं रहे, आप सम्राट हो गए। कृष्ण का इतना जो जोर है अर्जुन को, वह इसीलिए कि यह जो पुरुषोत्तम की प्रतीति एकमात्र साम्राज्य है, जो पाने जैसा है। और युद्ध हो रहा है, यह क्षर है। इसमें जो मरेगा, मिटेगा, वह मरने | उसकी प्रतीति के बिना हम सब भिखमंगे हैं। वाला, मिटने वाला ही है। उसमें तू परेशान मत हो। इसमें एक मैंने सुना है, एक भिखमंगा भीख मांग रहा था एक द्वार पर। अक्षर भी छिपा है, वह जो यहां आत्माएं छिपी हैं लोगों में, वही गरमी के दिन थे, मकान का मालिक भीतर खस की टट्टियों की अक्षर तेरे भीतर बेचैन हो रहा है। वही सोच रहा है कि इतनी हत्या आड़ में आराम कर रहा था। उस भिखारी ने कहा, कुछ मिल जाए। मैं करूं? हिंसा होगी, पाप लगेगा, भटकूँगा। और फल क्या है? | भीतर से आवाज आई, आगे बढ़ो। उसने कहा, दो-चार आने से फायदा क्या है? परिणाम क्या है? राज्य भी मिल गया, तो क्या | भी चलेगा। भीतर से आवाज आई, कुछ भी नहीं है आने-वाने। लाभ है ? इतनों को मारकर लिए गए राज्य में इतना खून सन जाएगा | कहीं और जाओ। उसने कहा, तो कुछ कपड़ा-लत्ता ही मिल जाए। कि इसमें सुख तो रहेगा ही नहीं। यह तेरे भीतर जो बात कर रहा है, | | भीतर से और नाराजगी की आवाज आई कि कह दिया बार-बार सोच रहा है, विचार कर रहा है, यह जो तेरा चेतन है, यह दूसरा | कि आगे बढ़ो। कपड़ा-लत्ता यहां कुछ भी नहीं है। तत्व है। मैं तीसरा हूं।
भिखारी भी जिद्दी था। और आदमी जिद्दी न हो, तो भीख मांगने __तो वहां अर्जुन के रथ पर सब मौजूद है। वहां क्षर तत्व मौजूद | | की नौबत भी न आए। पर जिसको भीख मांगना हो, उसको जिद्द है; वह जो अर्जुन का रथ है, वे जो घोड़े हैं। वहां अर्जुन मौजूद है | | रखनी ही चाहिए, नहीं तो भीख मिले भी नहीं। वह चिंतनशील, जो बुद्धि है, आत्मा। और वहां पुरुषोत्तम मौजूद | तो उसने कहा, न सही, रोटी ही मिल जाए, रोटी का टुकड़ा ही है; वह जो दोनों के पीछे साक्षी है। और वह हर रथ पर मौजूद है। | मिल जाए। अंदर से आदमी बहुत ज्यादा तेजी से चिल्लाया कि कह
हर शरीर रथ है। और हर शरीर के भीतर यह सवाल उठते ही | दिया, कुछ भी नहीं है। तो उसने कहा, जब कुछ भी नहीं है, तो हैं, कि ऐसा करूं तो क्या होगा? वैसा करूं तो क्या होगा? करना | अंदर बैठे क्या कर रहे हो? चलो, मेरे साथ ही हो जाओ। जो उचित है या अनुचित है? शुभ है या अशुभ है? यह चिंतना उठती | | मिलेगा, आधा-आधा कर लेंगे। है। यह आत्मा का लक्षण है। लेकिन यह आखिरी तत्व नहीं है। जब तक पुरुषोत्तम का स्वर न हो. तब तक पछने जैसा है कि इसलिए आत्मा जो भी निर्णय लेगी. वह अंतिम नहीं है। अंतिम भीतर छिपे क्या कर रहे हो? तब तक अवस्था भिखमंगे की है। निर्णय तो तभी उठ सकता है, जब पुरुषोत्तम खयाल में आ जाए। | चाहे खस की टट्टी में ही छिपे आप बैठे हों। कुछ है नहीं आपके और तब बड़े मजे की बात है, तब कोई निर्णय लिया नहीं जाता। | पास। उसका स्वर मिलते ही सब मिल जाता है। क्योंकि फिर कुछ
जैसे ही पुरुषोत्तम खयाल में आया, आदमी जिंदगी में बहना शुरू | | पाने की चाह भी नहीं रह जाती। कर देता है; फिर निर्णय नहीं लेता। क्योंकि वह जानता है, जो मिटने | ___ एक जवान लड़का एक लड़की के प्रेम में था। उसकी सोलहवीं वाला है, वह मिटेगा; जो नहीं मिटने वाला है, वह नहीं मिटेगा; और | वर्षगांठ थी। तो वह बड़ी चिंता में था रातभर से कि क्या भेंट करे। जो देखने वाला है, इस पूरे खेल को देखे चला जाता है। तब यह | सब सोचा, कुछ जंचता नहीं था। प्रेमी को कभी नहीं जंचता कि सारा जीवन, सारे जीवन का चक्कर परदे पर चलती फिल्म से ज्यादा | | प्रेमिका को भेंट देने योग्य कुछ भी हो सकता है। ताजमहल भी भेंट नहीं रह जाता। और वह जो देखने वाला है, देख रहा है। | कर रहे हों, तो भी लगेगा, क्या है! कुछ भी नहीं है। सब सोचा,
इस तीसरे की खोज करें। तीसरा ज्यादा दूर नहीं है, बहुत पास | लेकिन कुछ समझ में नहीं आया। और वक्त करीब आने लगा, जब है। जरा-सी चेष्टा से उसका स्वर सुनाई पड़ने लगता है। एक बार | जाना है और वर्षगांठ का भोज होने वाला है, तो उसने सोचा कि उसका स्वर सुनाई पड़ जाए, तो फिर आप वही आदमी नहीं हैं, जो अपनी मां से पूछ्। कल तक थे। तब आपकी हालत ऐसी हो गई, जैसे कल तक आप | __उसने अपनी मां से पूछा कि मां, एक बात पूछू ? जिस लड़की भिखारी थे; और अचानक खीसे में हाथ डाला और हीरे पा गए। से मेरा प्रेम है, उसकी सोलहवीं वर्षगांठ है और मुझे कुछ भेंट देने दुनिया भला देखती रहे कि अभी भी भिखारी हो, क्योंकि अभी जाना है। मैं तुझसे पूछता हूं कि अगर तेरी उम्र सोलह साल हो जाए, दुनिया को कुछ पता नहीं है कि आपके खीसे में क्या है। लेकिन | | तो फिर तू क्या पसंद करेगी?
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