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* गीता दर्शन भाग-7 *
दे रहा
पति ने कहा, एक बात तय है, पागल हो या न हो, सामान्य नहीं। | आदमी के अहंकार को केले का छिलका भी गिरा देता है, उसे है। मैं आया। वह बाहर जाकर देख रहा है। वह आदमी गाली भी | देखकर हंसी आती है।
है. मस्करा भी रहा है। तो उसने आदमी को पछा कि यह वह आदमी अकड़कर चला जा रहा था, हैट-वैट लगाए था, क्या कर रहे हो? उसने कहा, बाधा मत दो।
| टाई वगैरह सब। ऐसा बिलकुल शक्तिशाली आदमी, अचानक वह एक सूफी फकीर था। वह केले पर से गिर पड़ा है। एक | | एक केले का छिलका उसको जमीन पर चारों खाने चित्त कर देता घटना घटी, एक भौतिक घटना। उसके मस्तिष्क में खबर पहुंची, | | है। उसकी सब सामर्थ्य खो जाती है। अकड़ खो जाती है। क्षणभर जो सामान्य आदमी के सभी के पहुंचेगी। और जो केले पर नाराजगी | | में पाता है कि दीन है, सड़क पर पड़ा है। इस दीनता से एकदम हंसी आएगी, वह भी आई। लेकिन वहां से भागा नहीं वह। क्योंकि वह | आती है। आदमी की इस असहाय अवस्था पर। उसके अकड़पन चूक जाएगा क्षण। वह वहीं लेट गया। क्योंकि यह मौका खो देने की स्थिति और फिर एकदम जमीन पर पड़े होने में इतना अंतराल जैसा नहीं है।
है, इतना फर्क है, कि यह आप पहचान ही नहीं सकते थे कि यह एक केले का छिलका क्या कर रहा है? भीतर क्या हो रहा है? | आदमी केले के छिलके से गिरने वाला है। गिरने वाला नहीं है। यह तो मस्तिष्क जो भी करना चाहता है, वह गाली भी दे रहा है। लेकिन | | सम्राट हो सकता है। एक तीसरी घटना वहां घट रही है। वह इन दोनों को देख भी रहा इसलिए आप खयाल रखें, अगर एक भिखारी गिरेगा, कम हंसी है, अपनी इस पागलपन की अवस्था को, इस पड़े हुए छिलके को। | आएगी। अगर एक सम्राट गिरेगा, ज्यादा हंसी आएगी। आप इस पूरी घटना में वह पीछे है, और धीमे-धीमे मुस्कुरा भी रहा है। | सोचें, एक भिखारी गिर पड़े; आप कहेंगे, ठीक है। एक छोटा
इसलिए अक्सर संत पागल भी मालूम पड़ सकते हैं। एक बात | | बच्चा गिरेगा, तो शायद हंसी न भी आए। क्योंकि बच्चे को हम तो पक्की है कि वे सामान्य नहीं हैं। एबनार्मल तो हैं ही। असाधारण | समझते हैं, बच्चा ही है, इसकी अकड़ ही क्या है अभी! लेकिन तो हैं ही। क्योंकि आप यह नहीं कर सकेंगे। मगर अगर कर सकें, | अगर एक सम्राट गिरेगा, तो आप बिलकुल पागल हो जाएंगे तो जो हंसी आएगी भीतर से...।
हंस-हंसकर। आप कभी एक बात को सोचते हैं कि जब दूसरा आदमी कुछ जिस-जिस स्थिति में हंसी आती है आपको देखकर, करता है, उसमें आपको हंसी आती है। जैसे एक आदमी केले के कभी-कभी उस स्थिति में अपने को देखें। तब भी एक हंसी छिलके से फिसला और गिर पड़ा। ऐसा आदमी खोजना कठिन है, आएगी; और वह हंसी ध्यान बन जाएगी; और उस हंसी से आपको जिसको देखकर हंसी न आ जाए। अगर दूसरे को देखकर आपको | | साक्षी की झलक मिलेगी। इतनी हंसी आती है, कभी आपने खुद फिसलकर गिरकर और फिर | कोई भी अनभव हो. तीसरे को पकड़ने की कोशिश करें। हंसकर देखा? तब आपको तीसरे तत्व का थोड़ा-सा अनुभव | पुरुषोत्तम की तलाश जारी रखें। और हर अनुभव में वह मौजूद है। होगा। क्योंकि उस वक्त गिरने वाले आप होंगे; गिरने वाले की जो | | इसलिए न मिले, तो समझना कि अपनी ही कोई भूल-चूक है। प्रतिक्रिया है, वह भी आप होंगे; और देखने वाले भी आप होंगे। | | मिलना चाहिए ही। क्षुद्र अनुभव हो कि बड़ा अनुभव हो, कैसा भी
दूसरे को गिरते देखकर आप हंसते हैं, क्योंकि स्थिति पूरी की | अनुभव हो, पुरुषोत्तम भीतर खड़ा है। पूरी मजाक जैसी मालूम पड़ती है। पर कभी आपने इस पर विचार | स्वामी राम को कुछ लोगों ने गाली दी, तो वे हंसते हुए वापस किया है कि ऐसा होता क्यों है? आखिर केले में, उसके छिलके पर | लौटे। लोगों ने कहा, इसमें हंसने की क्या बात है? लोगों ने से गिर जाने में ऐसा क्या कारण है जिससे हंसी आती है? इसमें अपमान किया है। राम ने कहा कि मैं देख रहा था। और जब राम हंसने योग्य क्या है?
को गाली पड़ने लगीं, और राम भीतर-भीतर कुनमुनाने लगा, तो मनोवैज्ञानिक बड़ी खोज करते हैं। क्योंकि इसमें हंसी सभी को | | मुझे हंसी आने लगी। मैं भीतर कहने लगा कि ठीक हुआ, अब आती है, सारी दुनिया में आती है। इसका कारण क्या है? इसमें भुगतो राम! अब भोगो फल! । ऐसी कौन-सी बात है जिसको देखकर हंसी आती है?
यह जो भीतर से अपने को भी दूर खड़े होकर देखना है, यही मेरी जो दृष्टि है, मुझे जो कारण दिखाई पड़ता है, वह यह है कि पुरुषोत्तम तत्व है। और जिस व्यक्ति को यह धीरे-धीरे सध जाए,
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