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* पुरुषोत्तम की खोज *
पीछे। इसलिए अगर आप बहुत संवेदनशील न हों, तो आपको | | हम बाहर दौड़ पड़ते हैं। किसी ने गाली दी; व्याख्या की, हम बाहर उसका पता नहीं चलेगा। वह गुप्ततम है।
गए। उस आदमी पर नजर पड़ जाती है, जिसने गाली दी। क्यों दी __ वह जो पुरुषोत्तम है, वह गुप्ततम भी है। जितनी संवेदना आपकी गाली? या उसको कैसे हम बदला चुकाएं? तो जब हमें भीतर जाना बढ़ेगी, धीरे-धीरे उसकी प्रतीति होनी शुरू होगी।
था और तीसरे को खोजना था, तब हम बाहर चले गए। वह क्षणभर कोई आदमी आपको गाली दे रहा है। तत्क्षण गाली देने वाला का मौका था, खो गया। रोज ऐसे अवसर खो जाते हैं। और आप गाली सुनने वाले, गाली और आप, दो हो गए। अगर | तो जब भी आपके भीतर कोई घटना घटे. बाहर न दौडकर भीतर थोड़ी संवेदना को जगाएं, तो आपको वह भी भीतर दिखाई पड़ दौड़ने की फिक्र करें। तत्क्षण! ध्यान बाहर न जाए, भीतर चला जाएगा जो दोनों को देख रहा है। गाली दी गई, तो गाली भौतिक | जाए। और भीतर अगर ध्यान जाए, तो आप पाएंगे साक्षी को खड़ा है; कान पर चोट पड़ी; मस्तिष्क में शब्द घूमे; मस्तिष्क ने व्याख्या हुआ। और अगर साक्षी आपके खयाल में आ जाए, तो पूरी स्थिति की; यह सब भौतिक है। मस्तिष्क ने कहा, यह गाली बुरी है। । | बदल जाएगी, पूरी स्थिति का अर्थ बदल जाएगा।
मुल्ला नसरुद्दीन को उसका पड़ोसी एक दिन कह रहा था कि । किसी ने गाली दी हो; आत्मा व्याख्या करती है कि बुरा है या तुम्हारा लड़का जो है फजलू, बहुत भद्दी और गंदी गालियां बकता | | भला है, कोई प्रतिक्रिया करती है। अगर उसी वक्त तीसरा भी है। नसरुद्दीन ने कहा, बड़े मियां, कोई फिक्र न करो; छोटा है, | | दिखाई पड़ जाए, तो भी आत्मा फिर व्याख्या करेगी। अब यह तीसरे बच्चा है, नासमझ है। जरा बड़ा होने दो, अच्छी-अच्छी गालियां | | की व्याख्या करेगी जो भीतर छिपा है। और हो सकता है, आपको भी बकने लगेगा।
हंसी आ जाए। शायद आप खिलखिलाकर हंस पड़ें। ___ व्याख्या की बात है। कभी-कभी गाली अच्छी भी लगती है, जब । वह जो बाहर गाली आई थी, वह भी मस्तिष्क में आई, उसकी मित्र देता है। सच में मित्रता की कसौटी यह है कि गाली अच्छी | व्याख्या आत्मा ने की। फिर आपने पीछे लौटकर देखा और साक्षी लगे। अगर मित्र एक-दूसरे को गाली न दें, तो समझते हैं कि कोई | | का अनुभव हुआ, यह भी अनुभव मस्तिष्क में आएगा और आत्मा मित्रता में कमी है, मिठास नहीं है।
| इसकी भी व्याख्या करेगी। शत्रु भी गाली देते हैं, वही गाली; मित्र भी गाली देते हैं, वही अगर आपको साक्षी दिखाई पड़ जाए, तो आपकी मुस्कुराहट गाली; शत्रु के मुंह से सुनकर बुरी लगती है; मित्र के मुंह से सुनकर | धीरे-धीरे सतत हो जाएगी। हर अनुभव में आप हंस सकेंगे। भली लगती है, प्यारी लगती है। तो नसरुद्दीन एकदम गलत नहीं | | क्योंकि हर अनुभव लीला मालूम पड़ेगा। और हर अनुभव एक कह रहा है। अच्छी गालियां भी हैं ही। व्याख्या पर निर्भर है। गहरी मजाक भी मालूम पड़ेगी कि यह क्या चल रहा है! क्या हो
शरीर पर चोट पड़ती है, कान पर झंकार जाती है, मस्तिष्क | रहा है! और इतनी क्षुद्र बातों को मैं इतना मूल्य क्यों दे रहा हूं! व्याख्या करता है। यह सब भौतिक घटना है। व्याख्या जो करता __ मैंने सुना है कि एक स्त्री ने अपने घर के भीतर झांककर अपने है, वह चेतना है। इसलिए वही गाली भली भी लग सकती है कभी; | | पति को कहा कि बाहर एक आदमी पड़ा है। पागल मालूम होता वही गाली बुरी भी लग सकती है कभी। वह जो व्याख्या करने | | है। सामने सड़क पर लेटा है। पति ने भीतर से ही पूछा, लेकिन उसे वाली है, वह चेतना है।
पागल कहने का क्या कारण है ? पत्नी ने कहा, पागल कहने का क्या आपके पास कोई तीसरा तत्व भी है, जो दोनों को देख सके? | | कारण यह है कि एक केले के छिलके पर फिसलकर वह गिर पड़ा इस घटना को भी देखे, इस बड़े यंत्र की प्रक्रिया को–गाली, कान है। उठ नहीं रहा है, केले को पड़ा-पड़ा गाली दे रहा है। में जाना, मस्तिष्क में चक्कर, शब्दों का व्याघात, ऊहापोह; फिर | | कोई भी सामान्य आदमी होता, तो पहला काम वह यह करता
आत्मा का अर्थ निकालना। और क्या इनके पीछे दोनों को देख रहा है कि किसी ने देख तो नहीं लिया! कपड़े झाड़कर, जैसे कुछ भी हो कोई, ऐसी कभी आपको प्रतीति होती है? तो वही पुरुषोत्तम है। नहीं हुआ। केले को गाली भी देगा, तो भीतर और बाद में। न प्रतीति होती हो, तो उसकी तलाश करनी चाहिए। और हर अनुभव | | पत्नी ने कहा, आदमी बिलकुल पागल मालूम होता है। लेटा है में क्षणभर रुककर उसकी तरफ खयाल करना चाहिए। वहीं, जहां गिर गया है; और सामने केले का छिलका पड़ा है,
लेकिन हमारी मुसीबत यह है कि जब भी कोई अनुभव होता है, उसको गाली दे रहा है!
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