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* गीता दर्शन भाग-7 *
और फिर मार्ग छूट जाता था, वहीं से गुरु शुरू होता है। वह | | ये ग्यारह पंडित महावीर के चरणों में सिर रख दिए। इन्होंने अपने परिपूरक है। क्योंकि जहां तक शब्द ले जा सकते हैं, उसके आगे | | शास्त्रों में आग लगा दी। इन्होंने कहा, अब उनकी कोई जरूरत नहीं। ही गुरु का काम है।
क्योंकि जिंदा आदमी मिल गया, जिसकी हम तलाश करते थे। महावीर के जीवन में उल्लेख है, बड़ी हैरानी का उल्लेख है। नक्शे की तभी तक जरूरत है, जब तक घर न मिल गया हो बुद्ध के जीवन में भी वही उल्लेख है। और सांयोगिक नहीं मालूम | जिसकी आप खोज कर रहे हैं। फिर आप नक्शे को फेंक देते हैं। होता। महावीर के जो बड़े शिष्य थे ग्यारह, वे ग्यारह के ग्यारह | फिर आप कहते हैं, मिल गई वह जगह, जिसकी ओर नक्शे में महापंडित ब्राह्मण थे।
इशारा था; जहां हम चल रहे थे। महावीर ब्राह्मणों के शत्रु हैं, एक लिहाज से। क्योंकि वे एक नए | ___ तो महावीर ने जब इन गणधरों से कहा कि छोड़ दो वेद। उन्होंने धर्म की उदभावना कर रहे थे, जो ब्राह्मण और पुरोहित के विरोध | कहा, आपको देखकर ही छूट गए; छोड़ने को अब कुछ बचा नहीं में थी। वे मंदिर, पुराने शास्त्र, वेद, उन सब का खंडन कर रहे थे। ईश्वर, उसका इनकार कर रहे थे। खुद क्षत्रिय थे, लेकिन उनके जो जब बुद्ध ने कहा महाकाश्यप को कि छोड़ दो सब-कोई ग्यारह गणधर हैं, जो उनके ग्यारह विशेष शिष्य, जिनके आधार पर शास्त्र, कोई वेद, कोई ईश्वर। तो उसने कहा, छूट गया। आपको सारा जैन धर्म खड़ा हुआ, वे सब के सब महापंडित ब्राह्मण हैं। यह देखते से ही छूट गया। आपकी मौजूदगी काफी है। आप उस सब जरा हैरानी की बात है।
के सिद्ध प्रमाण हैं, जिसको हम खोजते थे। अब तक पकड़ा था बुद्ध के साथ भी ठीक यही हुआ। बुद्ध क्षत्रिय हैं। उनके जो भी | | उसको, क्योंकि उसके सहारे खोज चलती थी। अब खोज पूरी हो महाशिष्य हैं, वे सभी ब्राह्मण हैं। और साधारण ब्राह्मण नहीं, | | गई, अब उसकी हमें कोई जरूरत नहीं। असाधारण पंडित हैं।
__तो आप जानकर चकित होंगे कि शास्त्र अगर ठीक से समझा जब सारिपुत्त बुद्ध के पास आया, तो पांच सौ ब्राह्मण उसके | जाए, तो उसे छोड़ने में जरा भी कठिनाई नहीं आती। जिन्होंने ठीक शिष्य थे, उसके साथ आए थे। जब मौदगल्यायन बुद्ध के पास | से नहीं समझा है, उन्हीं को कठिनाई आती है। जिनको शास्त्र पचता
आया, तो उसके साथ पांच हजार उसके शिष्य थे। वह पांच हजार नहीं है, उन्हीं की कठिनाई है। वे उसे पकड़े रहते हैं। जिनको शास्त्र शिष्यों का तो स्वयं गुरु था।
पच जाता है, उन्हें छोड़ने में क्या अड़चन है! छूट ही गया; पचने ठीक ऐसा ही महावीर के जीवन में उल्लेख है। गौतम जब | में ही समाप्त हो गया। शास्त्र का काम पूरा हो गया। और जहां आया, सुधर्मा जब आया, तो ये सब बड़े-बड़े पंडित थे। और इनके शास्त्र पूरा होता है, वहां गुरु की तरफ आंख उठनी शुरू होती है। साथ बड़े शिष्यों का समूह था।
और गुरु के बिना कोई उपाय नहीं है। शास्त्र से तो कुछ होने महावीर जिंदा गुरु हैं। ये ग्यारह जो उनके गणधर हैं, ये सब | वाला नहीं है। इतना ही हो जाए तो काफी है। इतना हो सकता है; शास्त्र जान चुके थे। ये सब वेद के ज्ञाता थे। पारंगत विद्वान थे। ये | | पर वह भी आपकी बुद्धिमत्ता पर निर्भर है। आप अगर अपने अर्थ महावीर को समझ सके तत्क्षण, क्योंकि जो-जो शास्त्र में छूट रहा | | निकालते रहें, तो शायद यह भी न हो पाए। था, वह-वह महावीर में मौजूद था। इनको पकड़ फौरन आ गई। | | मुल्ला नसरुद्दीन गुजर रहा था एक मंदिर के पास से। अपने
ये महाकाश्यप, सारिपुत्त, मौदगल्यायन, ये सब के सब बैलों को लिए जा रहा था। मंदिर में पूजा हो रही थी; आरती चल महापंडित थे। इन्होंने सब शास्त्र तलाश लिए थे। शास्त्र में कहीं भी | | रही थी; ढोल बज रहे थे; घंटे का नाद हो रहा था। बैल बिचक कुछ नहीं बचा था, जो इन्होंने न खोजा हो। फिर भी सब जगह बात | | गए। मुल्ला बहुत नाराज हुआ। वह अंदर पहुंचा। और उसने अधूरी थी। बुद्ध को देखते ही सब बातें पूरी हो गईं। इस आदमी की | | कहा, यहां क्या हो रहा है? यह क्या कर रहे हो? तो लोगों ने मौजूदगी से शास्त्र में जो कमी थी, वह तत्काल भर गई। जहां-जहां | कहा, हम आरती उतार रहे हैं। तो नसरुद्दीन ने कहा, चढ़ाई ही शास्त्र का पात्र अधूरा था, वहां-वहां बुद्ध को देखकर पूरा हो गया। क्यों, जब उतारना नहीं आता? . जिस तरफ शास्त्रों ने इशारा किया था, यह वही आदमी था। यह अर्थ उसने निकाला! अर्थ तो बिलकुल साफ है कि जब
तो अपने से विपरीत के प्रति भी समर्पण में कठिनाई नहीं आई। उतारना ही नहीं आता, इतना धूम-धड़ाका कर रहे हो, उपद्रव कर
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