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* पुरुषोत्तम की खोज *
सकोगे, पढ़ सकोगे। तो उसने कहा, तब तो जल्दी करो, क्योंकि | कर रहे हैं। अपने ही जूते के बंध पकड़े हैं और उठाने की कोशिश लिखना-पढ़ना मुझे आता नहीं।
कर रहे हैं। इससे कुछ परिणाम नहीं है। लेकिन एक परिणाम हो __ अब जिसको लिखना-पढ़ना नहीं आता, वह चश्मा लगाने से सकता है कि इससे थक जाएं और गरु की तलाश शुरू हो जाए। भी लिख-पढ़ नहीं सकेगा। क्योंकि चश्मा उतना ही बता सकता है, इसलिए शास्त्रों की एक ही उपयोगिता है कि वे गुरु तक आपको जितना आपको आता हो, उससे ज्यादा नहीं।
पहुंचा दें। मृत जीवित तक आपको पहुंचा दे, तो काफी काम है। शास्त्र में आप वह कैसे पढ़ सकते हैं, जो आपको आता ही और आप सोचते हों कि शास्त्र से बचकर हम गुरु तक पहुंच नहीं। आप वही पढ़ सकते हैं, जो आपको आता है। इसलिए शास्त्र | जाएं, तो बहुत कठिन है। क्योंकि वह असफलता जरूरी है। वह व्यर्थ हैं। शास्त्र आपको आपसे ज्यादा में नहीं ले जा सकता है; कोई | शास्त्र में भटकने की चेष्टा जरूरी है। वहां विषाद से, दुख से भर आत्म-अतिक्रमण नहीं हो सकता है।
जाना जरूरी है। __पर शास्त्र सुविधापूर्ण है। आप जो भी मतलब निकालना चाहें, | दोनों तरह के लोग मेरे पास आ जाते हैं। ऐसा व्यक्ति भी आता निकालें। शास्त्र झगड़ा भी नहीं करता। वह यह भी नहीं कह सकता | | है, जो शास्त्र से थक गया है। तो मैं पाता हूं, उसके साथ काम बहुत कि आप गलत अर्थ निकाल रहे हैं, कि यह मेरा भाव नहीं है, कि | आसान है। क्योंकि वह व्यर्थ से ऊब चुका है। अब उसकी व्यर्थ में ऐसा मैंने कभी कहा नहीं है। शास्त्र कोई आज्ञा भी नहीं देता। सब बहुत उत्सुकता नहीं है। अब वह सार की ही बात जानना चाहता है, आप पर निर्भर है।
| जो की जा सके। अब वह व्यावहारिक है। अब वह शास्त्रीय नहीं इसलिए पहले अहंकार शास्त्र में खोजने की कोशिश करता है। | | है। अब उसकी बौद्धिक चिंता नहीं है बहुत। अब उसकी साधनागत और जब नहीं पाता...। और अभागे हैं वे लोग, जो सोचते हैं कि चिंता है। शास्त्र से वह छूट चुका। अब साधना की प्यास उसमें उनको शास्त्र में मिल गया। सौभाग्यशाली हैं वे लोग, जिनमें कम जगी है। से कम इतनी बुद्धि है कि वे पहचान लेते हैं कि शास्त्र में हमें नहीं | जो लोग बिना शास्त्र को जाने आ जाते हैं, उनकी जिज्ञासा मिला। यह बुद्धिमान का लक्षण है।
शास्त्रीय होती है। वे पूछते हैं, ईश्वर है या नहीं? संसार किसने अनेक तो बुद्धिहीन सोच लेते हैं कि उन्हें मिल ही गया। शास्त्र बनाया? यह काम तो शास्त्र ही निपटा देता, इनके लिए मेरे पास के शब्द कंठस्थ कर लेते हैं, और सोचते हैं, बात पूरी हो गई। | आने की जरूरत नहीं है। आत्मा कहां से आई? ब्रह्म कहां है? यह ___ शास्त्र से जो असफल हो जाता है, उसकी नजर व्यक्तियों की | | सब बकवास तो शास्त्र ही निपटा देता। इस सबके लिए किसी तलाश में जाती है। क्योंकि अब अहंकार एक पराजय झेल चुका।। | जीवित आदमी की कोई जरूरत नहीं है। और कोई जीवित गुरु इस और अब वह जीवित व्यक्ति में तलाश करेगा।
तरह की व्यर्थ की बातों में पड़ेगा भी नहीं, क्योंकि समय खराब जीवित व्यक्ति के साथ अड़चनें हैं। पहली तो अड़चन यह है कि करने को नहीं है। उसके सामने झुकना कठिन है। और बिना झुके सीखने का कोई | तो जो लोग शास्त्र से नहीं गुजरे हैं, उनके साथ तकलीफ यह उपाय नहीं है।
होती है कि उनकी जिज्ञासाएं शास्त्रीय होती हैं और वे व्यर्थ समय दूसरी अड़चन यह है कि आप अपना अर्थ न निकाल सकेंगे। जाया करते हैं। वह जीवित व्यक्ति अपना ही अर्थ, अपने ही अर्थ पर आपको | शास्त्र से गुजर जाना अच्छा है। आपकी जो बचपनी, बच्चों चलाने की कोशिश करेगा। जीवित आदमी को धोखा नहीं दिया जा | | जैसी जिज्ञासाएं हैं, उनका या तो हल हो जाएगा या आपको समझ सकता। अपनी मरजी उस पर थोपी नहीं जा सकती। और वह | | में आ जाएगा कि वे व्यर्थ हैं; उनका कोई मूल्य नहीं है। और आप जीवित आदमी आपको आपके बाहर और आपसे ऊपर ले जाने में | | जीवन में बदलाहट कैसे हो सके, इसकी प्यास से भर जाएंगे। यह समर्थ है।
प्यास बड़ी अलग है। . शास्त्र के द्वारा आत्म-क्रांति करने की कोशिश ऐसे है, जैसे कोई | | और शास्त्रों को आपने समझा हो, तो गुरु को समझना आसान अपने जूते के बंधों को पकड़कर खुद को उठाने की कोशिश करे। | हो जाएगा। क्योंकि जो-जो शास्त्र में छूट गया है, वही-वही गुरु आप ही पढ़ रहे हैं; आप ही अर्थ निकाल रहे हैं; आप ही साधना | | में है। गुरु परिपूरक है। जहां-जहां इशारे थे, थोड़ी दूर तक यात्रा थी
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