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* पुरुषोत्तम की खोज *
हुआ है।
रहे हो, उतर नहीं रही, तो चढ़ाई किसलिए? पहले उतारना सीख | ही जब कोई शास्त्र को पढ़ने वाला शब्दों का उपयोग करने लगता लो, फिर चढ़ाओ।
है; आहिस्ते चलता है; धीमे से स्पर्श करता है; शब्द को फुसलाता आप शास्त्र पढ़ेंगे, क्या अर्थ निकालेंगे, वह अर्थ आपके भीतर है, ताकि उससे अर्थ निकल आए। शब्द को निचोड़ता नहीं; से आएगा। नसरुद्दीन को पता ही नहीं था कि आरती चढ़ाना क्या पकड़कर उसकी गर्दन ही नहीं दबा देता कि इसकी जान निकालकर है; आरती उतारना क्या है। वह समझा, कोई चीज चढ़ा दी; चढ़ देख लें। गई है, अब उतर नहीं रही है। अब ये इतना शोरगुल मचा रहे हैं, बहुत लोग वैसे ही हैं। आपने कहानी सुनी होगी; पुरानी यूरोप कूद-फांद रहे हैं, और इनसे उतर नहीं रही है।
में प्रचलित कथा है। ईसप की कहानियों में एक है। कि एक आदमी शब्द कभी भी पूरा नहीं हो सकता। क्योंकि शब्द कोई वस्तु तो के घर में एक मुर्गी थी, जो रोज एक सोने का अंडा दे देती थी। फिर नहीं है। शब्द तो सिर्फ संकेत है। संकेत पूरा नहीं हो सकता। संकेत लोभ पकड़ा। पति-पत्नी ने विचार किया कि ऐसे हम कब तक का अर्थ ही है कि वह सिर्फ इशारा है। वहां कुछ है नहीं, वहां सिर्फ जिंदगीभर, एक-एक अंडा रोज मिलता है। और जब अंडा तीर जाते हैं।
एक-एक रोज मिलता है, तो इस मुर्गी के भीतर अंडे भरे हैं। तो हम __ सड़क के किनारे पत्थर लगा हुआ है, दिल्ली की तरफ। उस पर एक दफा इकट्ठे ही निकाल लें। यह रोज की चिंता, फिक्र, आशा, लिखा है दिल्ली और एक तीर लगा है। वहां दिल्ली नहीं है। सपना, फिर बाजार जाओ, फिर बेचो-क्या फायदा? नसरुद्दीन वहीं ठहर सकते हैं, कि आ गई दिल्ली; पत्थर पर लिखा उन्होंने मुर्गी मार डाली। एक भी अंडा न निकला उससे। तब
बहुत पछताए, रोए-धोए; लेकिन फिर कोई अर्थ न था। क्योंकि ___आप भी अगर शास्त्र को देखकर समझते हों, आ गई दिल्ली, | | मुर्गी में कोई अंडे इकट्ठे नहीं हैं। मुर्गी अगर जीवित हो, तो एक-एक तो भूल में पड़ रहे हैं। वह सिर्फ पत्थर है, जहां एक तीर लगा हुआ | अंडा निकल सकता है। अंडा रोज बनता है। है कि यात्रा आगे की तरफ चलती है। अभी और आगे जाना है। शास्त्रों में जो शब्द हैं, वे भी आपकी सहानुभूति से जीवित हो
जब दिल्ली सच में आएगी, तो पत्थर पर शून्य बना होगा, वहां | | सकते हैं। और उनमें अर्थ भरा हुआ नहीं है कि आपने निचोड़ लिया तीर नहीं होगा, जीरो होगा। और जिस दिन आपके भीतर भी जीरो और पी गए। वह कोई फलों का रस नहीं है कि आपने निचोड़ा और आ जाए, शून्य आ जाए, समझना कि दिल्ली आ गई! उस दिन पीया! शब्द से अर्थ निकल सकता है, अगर सहानुभूति और प्रेम आप पहंच गएं: मकाम आ गया। शन्य के पहले मकाम नहीं है। से आपने शब्द को समझा. शब्द को फसलाया. राजी किया।
शास्त्र में खोजें। अगर समझ हो, तो शास्त्र बड़े प्यारे हैं। क्योंकि | इसलिए हिंदुस्तान में हम शास्त्रों का अध्ययन नहीं करते, पाठ जिनसे वे निकले हैं, वे अनूठे लोग थे। उनमें उनकी थोड़ी सुवास करते हैं। पाठ और अध्ययन में यही फर्क है। अध्ययन का मतलब तो है ही। जिस शब्द का उपयोग बुद्ध ने कर लिया, उसमें बुद्ध की | होता है, निचोड़ो; तर्क से, विश्लेषण से अर्थ निकाल लो। पाठ का थोड़ी सुवास तो आ ही गई। जो उनके होंठों पर रह लिया, जो इस | अर्थ होता, सिर्फ गाओ; भजो। गीत की तरह उपयोग करो; जल्दी योग्य समझा गया कि बुद्ध ने उसका अपनी वाणी से उपयोग कर नहीं है कुछ अर्थ की। शब्दों को भीतर उतरने दो, डूबने दो; तुम्हारे लिया, उसमें बुद्ध थोड़े समा तो गए ही।
| खून में मिल जाएं, तुम्हारे अचेतन में उतर जाएं। तुम उनके साथ __ अगर आप में थोड़ी समझ हो, तो उतनी झलक उस शब्द से | एकात्म हो जाओ। तब शायद मुर्गी अंडा देने लगे। आपको आ सकती है। लेकिन उसके लिए बड़ा हल्का, बड़ा शांत | अति सहानुभूति से, सिम्पैथी से शास्त्र का थोड़ा-सा अर्थ
और बुद्धिमत्तापूर्ण हृदय चाहिए। अत्यंत सहानुभूति से भरा हुआ | आपको मिल सकता है। और वह अर्थ आपको गुरु की तरफ ले जाने हृदय चाहिए। तब उस शब्द में से थोड़ी-सी गंध आपको पता | | में सहयोगी होगा। क्योंकि वह अर्थ यह कहेगा कि यह तो शास्त्र है; चलेगी। अगर जोर से झपट्टा मारकर शब्द को पकड़ लिया और | जिनसे शास्त्र निकला है, अब उनकी खोज करो। क्योंकि जब शास्त्र कंठस्थ कर लिया, तो वह मर गया।
| में इतना है, तो जिनसे निकला होगा, उनमें कितना न होगा! शब्द बहुत कमजोर हैं। उनकी गर्दन पकड़ने की जरूरत नहीं है। बुद्ध के वचन पढ़े, धम्मपद पढ़ा। तो धम्मपद बड़ा प्यारा है, फूल की तरह हैं। तो जैसा कवि शब्दों का उपयोग करता है, वैसा लेकिन कितना ही प्यारा हो, इससे बुद्ध की क्या तुलना है! इससे
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