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पुरुषोत्तम की खोज
इसलिए मेरा जोर तो साक्षी भाव पर ही है। और अगर कोई व्यक्ति एकाग्रता में उत्सुकता भी रखता है, तो भी मैं उसे साक्षी - भाव की तरफ ही ले जाने की कोशिश करता हूं।
एकाग्रता के माध्यम से भी साक्षी भाव की तरफ जाया जा सकता है। क्योंकि जिसका मन बिखरा है, उसे साक्षी भाव भी साधना कठिन होगा। जिसका मन एकजुट है, उसे साक्षी भाव भी साधना आसान हो जाएगा। इसलिए कुछ धर्मों ने भी एकाग्रता का उपयोग साक्षी भाव की पहली सीढ़ी की तरह किया है। लेकिन वह सीढ़ी ही है, साधन ही है, साध्य नहीं है।
और ध्यान रहे, साक्षी भाव साधन भी है और साध्य भी । साक्षी भाव साधना भी है और साक्षी भाव पाना भी है। साक्षी भाव के पार कुछ भी नहीं है। इसलिए साक्षी भाव की साधना पहले चरण से ही मंजिल की शुरुआत है।
एकाग्रता मंजिल की शुरुआत नहीं है। वह एक साधन है, एक रास्ता है। वह रास्ता वहां तक पहुंचा देगा, जहां से असली रास्ता शुरू होता है। और वह भी तभी पहुंचाएगा, जब आपको ध्यान में हो। अन्यथा खतरा है। एकाग्रता में भटक जाने की पूरी सुविधा है। ऐसा हुआ, विवेकानंद एकाग्रता की साधना करते थे । शक्तिशाली व्यक्ति थे और मन को इकट्ठा कर लेना शक्तिशाली व्यक्तियों के लिए बड़ा आसान है। सिर्फ कमजोरी के कारण ही हम मन को इकट्ठा नहीं कर पाते हैं। कमजोरी के कारण ही मन यहां-वहां भांगता है, हम उसे खींच नहीं पाते। हाथ कमजोर हैं, लगाम कमजोर है, घोड़े कहीं भी भागते हैं। और इसलिए कमजोरी में हमसे सब भूलें होती हैं।
एक आदमी पर मुकदमा चल रहा था। उसने पहले एक आदमी को मारा, फिर दूसरे आदमी को धक्का देकर छत से नीचे गिरा दिया और तीसरे आदमी की हत्या कर दी। एक पंद्रह मिनट के भीतर तीन उसने किए।
उससे पूछ रहा था कि तू इतने भयंकर काम पंद्रह मिनट में कैसे कर पाया? उस आदमी ने कहा, क्षमा करें, कमजोरी के क्षण में ऐसा हो गया। कमजोरी के क्षण में, मोमेंट्स आफ वीकनेस ।
आप जिनको कमजोरी के क्षण कहते हैं, वहीं आपकी ताकत दिखाई पड़ती है। आपकी ताकत गलत में ही दिखाई पड़ती है। और गलत में इसलिए दिखाई पड़ती है कि वहां आपको ताकत दिखानी नहीं पड़ती, मन ही आपको खींचकर ले जाता है। मन के विपरीत जहां भी आपको ताकत दिखानी पड़े, वहीं आप कमजोर हो जाते
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हैं। वहीं फिर आपसे कुछ बनता नहीं।
अगर आपसे कोई कहे कि पांच मिनट शांत होकर बैठ जाएं, तो बड़ी कठिन हो जाती है बात । पचास साल अशांत रह सकते हैं; उसमें जरा भी अड़चन नहीं है। पांच क्षण शांत होना कठिन है। जन्मों-जन्मों तक विचारों की भीड़ चलती रहे, आपको कोई कठिनाई नहीं है। लेकिन एक विचार पर मन को क्षणभर को लाना हो, तो बस कठिनाई हो जाती है।
थे।
पर विवेकानंद शक्तिशाली व्यक्ति थे। एकाग्रता के प्रयोग करते । एकाग्रता सध भी गई। जैसे ही एकाग्रता सधी, जो खतरा होना चाहिए, वह हुआ। क्योंकि एकाग्रता के सधते ही आपको लगता है कि मैं महाशक्तिशाली हो गया।
रूस में एक महिला है, जो पांच मिनट तक अपने को एकाग्र कर लेती है, तो फिर आस-पास की वस्तुओं को प्रभावित कर सकती है। बीस फीट के घेरे में पत्थर पड़ा हो, तो वह उसको अपने पास खींच ले सकती है, सिर्फ विचार से। टेबल रखी हो, तो सिर्फ विचार से हटा दे सकती है। टेबल पर सामान रखा हो, तो सिर्फ विचार से नीचे गिरा दे सकती है।
रूस में उसके बड़े वैज्ञानिक परीक्षण हुए हैं। और उन्होंने अनुभव किया कि जब विचार बिलकुल एकाग्र हो जाता है, तो जैसे विद्युत के धक्के लगते हैं वस्तुओं को, ऐसे ही विचार के धक्के भी लगने शुरू हो जाते हैं। उसके फोटोग्राफ भी लिए गए हैं, और उसके वैज्ञानिक प्रयोग भी किए गए हैं। और सभी प्रयोगों से यह सिद्ध हुआ कि उस स्त्री से कोई वैद्युतिक शक्ति प्रवाहित होती है, जो वस्तुओं को हटा देती है या पास खींच लेती है।
पंद्रह मिनट के प्रयोग में उस स्त्री का तीन पाउंड वजन कम हो जाता है। इतनी शक्ति प्रवाहित होती है कि उसका तीन पाउंड शरीर से वजन नीचे गिर जाता है।
तो दिखाई न पड़ती हो, लेकिन फिर भी शक्ति भौतिक है। नहीं तो तीन पाउंड वजन कम होने का कोई कारण नहीं है। अदृश्य हो, लेकिन मैटीरियल है, पदार्थगत है। इसलिए तीन पाउंड शरीर का वजन नीचे गिर जाता है। और वह स्त्री कोई एक सप्ताह तक अस्वस्थ अनुभव करती हैं। एक सप्ताह के बाद फिर प्रयोग कर सकती है, उसके पहले नहीं ।
जब भी कोई चित्त को एकाग्र करता है, तो बड़ी शक्ति प्रकट होती है। अगर उसका उपयोग किया जाए, शक्ति क्षीण हो जाती है। अगर उसका उपयोग न किया जाए और सिर्फ उसका साक्षी रहा