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* गीता दर्शन भाग-7 *
तो एक घटना बनेगी। जब वैराग्य पानी पर खींची लकीर न | | मर गया—कि पत्नी चल बसी, कि बेटा, कि पति, कि पिता-तो होगा. पत्थर पर खींची लकीर हो जाएगा। और उसी वैराग्य के थोडी चोट लगती है कछ दिन। यह हमने इंतजाम किया है। सहारे मन का अंत होगा; नहीं तो मन का अंत नहीं होगा। एक-एक | यह इंतजाम ऐसा ही है, जैसे ट्रेन में बफर लगे होते हैं। दो रेल बूंद वैराग्य इकट्ठा करना होगा। उसका नाम अभ्यास है। | के डब्बों के बीच में बफर लगे रहते हैं, ताकि धक्का बफर पी जाएं
यह बड़े मजे की बात है कि वैराग्य तो सभी को आता है; ऐसा | और यात्रियों को धक्का न लगे। कार में स्प्रिंग लगे रहते हैं कि गड्डा आदमी ही खोजना मुश्किल है, जिसको वैराग्य न आता हो। हर आए, तो स्प्रिंग गड्ढे के धक्के को पी जाएं, भीतर बैठे यात्री को संभोग के बाद वैराग्य आता है। हर संभोग के बाद ब्रह्मचर्य की धक्का न लगे। आकांक्षा उठती है। हर बार ज्यादा खा लेने के बाद उपवास की तो हमने अपने चारों तरफ बफर लगा रखे हैं। चोट आए, तो सार्थकता दिखाई पड़ती है। हर बार क्रोध करके पश्चात्ताप उठता | बफर पी जाए। तो अगर मुसलमान मर गया, तो हिंदू के लिए बफर है। हर बार बुरा करके न करने की प्रतिज्ञा मन में आती है। पर है कि ठीक है, मुसलमान था; मर गया तो क्या हर्ज है! पहले ही क्षणभर को रहती है, यह बात। मन प्रबल है, क्योंकि मन का मर जाना चाहिए था। आदमी बुरा था। और होने से कोई लाभ भी अभ्यास जन्मों-जन्मों का है।
नहीं था। हिंदू मर गया, तो मुसलमान के लिए बफर है। नीग्रो मर तो दो तरह के अभ्यास हैं जगत में। एक मन का अभ्यास और जाए, तो अमेरिकी को फिक्र नहीं। अमेरिकी मरे, तो नीग्रो को एक वैराग्य का अभ्यास। तो आप मन का अभ्यास तो पूरी तरह | प्रसन्नता है। ये हमने बफर पैदा किए हैं। शत्रु मर जाए, तो ठीक। करते हैं। वैराग्य मन का विपरीत है। वैराग्य का मतलब यह है कि इन सब बफर के बाद दो-चार लोग ही बचते हैं हमारे मन का एंटीडोट। वह मन जब भी नया धोखा खड़ा करे, तब आस-पास, जिनकी मौत से हमको थोड़ी-बहुत चोट पहुंचेगी। आपको वैराग्य की स्मृति खड़ी करनी है। यह तो मैं पहले भी सुन नहीं तो हर एक की मौत से चोट पहुंचती है। क्योंकि कौन मरता है,
तो मैं पहले भी कर चका: यह तो मेरा अनभव है और इससे क्या फर्क पड़ता है। मौत घटती है। और मौत की चोट परिणाम क्या हुआ?
पहुंचती है; और वैराग्य का उदय होता है। लेकिन हमने तरकीबें निरंतर परिणाम का चिंतन पुराने अनुभव की स्मृति है, और बना रखी हैं। पुरानी झलकों का संग्रह है। इसको जब कोई साधता ही चला जाता फिर जो हमारे बिलकुल निकट हैं, उनसे भी बचने के लिए हमने है, तो धीरे-धीरे मन के विपरीत एक नई शक्ति का निर्माण होता बफर बना रखे हैं। अगर पत्नी भी मर जाए, तो भी हम कहते हैं, है। जो मन के लिए नियंत्रण बन जाता है; और मन के लिए साक्षी | जल्दी ही मिलना होगा, स्वर्ग में मिलेंगे। थोड़े ही दिन की बात है। बन जाता है; और मन की जो पागल दौड़ है, उसे तोड़ने में सहयोगी और आत्मा अमर है, इसलिए पत्नी कुछ मरी नहीं है। यह तो सिर्फ हो जाता है। कई बार मन आपको पकड़ लेगा फिर-फिर। लेकिन शरीर छूट गया है। कोई रास्ता हम खोज लेते हैं।
डा-सा संग्रह है. तो पनः स्मरण आ जाएगा बेटा मर जाए तो हम कहते हैं. परमात्मा. जो प्यारे लोग हैं. और आप रुक सकेंगे।
उनको जल्दी उठा लेता है। यह बफर है। इससे हम अपने को राहत अभ्यास का केवल इतना ही अर्थ है, जीवन में जो सहज वैराग्य देते हैं, कंसोलेशन देते हैं। इससे सांत्वना बना लेते हैं कि ठीक है; की झलक आती है, उसको संजो लेना है, इकट्ठा कर लेना है; | परमात्मा के लिए प्यारा होगा, इसलिए बेटे को उठा लिया। आपका उसकी शक्ति निर्मित कर लेनी है। और अभ्यास के उपाय हैं। बेटा परमात्मा को प्यारा होना ही चाहिए! सिर्फ गलत लोग ज्यादा
मृत्यु तो आपको कई दफा अनुभव होती है, लेकिन हमने ऐसी | | जीते हैं। अच्छे लोग तो जल्दी मर जाते हैं। कि अपना कोई कर्म व्यवस्था कर ली है कि उसके अनुभव की हमें चोट नहीं लगती। होगा, जिसकी वजह से दुख भोगना पड़ रहा है।
कोई कहता है, कोई मर गया। अगर वह कोई बहुत निकट का मौत को बचाते हैं; कुछ और चीजें बीच में ले आते हैं। कर्म का नहीं है, तो हम कहते हैं, बुरा हुआ। बात समाप्त हो गई। उसके | फल है, इसलिए भोगना पड़ रहा है। अब फल है, तो भोगना बाद हमारे मन में कुछ भी नहीं होता। कोई बहुत निकट का मर | पड़ेगा। तो मौत को हटा दिया, डायवर्शन पैदा हो गया। अब हम गया, तो दिन दो दिन खयाल में रहता है। कोई बहुत ही निकट का कर्म की बात सोचने लगे। लड़का, मौत, अलग हट गई। थोड़े दिन
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