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________________ * एकाग्रता और हृदय-शुद्धि * इंस्टैंट काफी बना लेते हैं, वैसा इंस्टैंट मेडिटेशन हो! एक पांच वैराग्य तो आपको कई बार अनुभव होता है। लेकिन उसकी हल्की मिनट में काम किया; और उस काम के लिए भी कुछ करना नहीं झलक आती है। उसको अगर आप अभ्यास न बना सकें, तो वह है। आप हवाई जहाज में उड़ रहे हों, तो भी मंत्र-जाप कर सकते खो जाएगा। अभ्यास का अर्थ है कि जिस वैराग्य की झलक मिली हैं। कार में चल रहे हों, तो भी मंत्र-जाप कर सकते हैं। ट्रेन में बैठे है, वह झलक न रह जाए, उसकी गहरी लकीर हो जाए आपके हों, तो भी मंत्र-जाप कर सकते हैं। उसमें कोई कुछ आपको | भीतर। बदलना नहीं है। सिर्फ एक तरकीब है, जिसका उपयोग करना है। जैसे कि आप धन के लिए दौड़ते थे। और धन आपको मिल वह तरकीब आपको भीतर शांत करेगी। वह शांति आत्मज्ञान गया। धन के मिलने के बाद आपके मन में विषाद आएगा। क्योंकि नहीं बन सकती। वह शांति अक्सर तो आत्मघात बनेगी। क्योंकि आप पाएंगे कि कितनी आशा की थी; आशा तो कुछ पूरी न हुई! आपके पास जो व्यक्तित्व है, वह खतरनाक है। वह उस शांति का कितने सपने संजोए थे; वे सब सपने तो धूल में मिल गए! धन उपयोग करेगा। हाथ में आ गया। कितना नहीं सोचा था आनंद मिलेगा; वह आनंद इसलिए अगर पतंजलि और बुद्ध और महावीर ने ध्यान के पूर्व | तो कुछ मिला नहीं! कुछ अनिवार्य सीढ़ियां रखी हैं, तो अकारण नहीं रखी हैं। गलत तो जो भी धन को पा लेगा, उसके पीछे एक छाया आएगी, जहां आदमी के पास शक्ति न पहुंचे, इसलिए। और गलत आदमी अगर वैराग्य का अनुभव होगा। उसे लगेगा, धन बेकार है। लेकिन अगर चाहे, तो पहले ठीक होने की प्रक्रिया से गुजरे। और उसके हाथ में इसे अभ्यास न बनाया, तो यह झलक खो जाएगी। और मन फिर चाबी तभी आए, जब कोई दुरुपयोग, अपने लिए या दूसरों के कहेगा कि आनंद इसलिए नहीं मिल रहा है, क्योंकि धन आनंद के लिए, वह न कर सके। लिए पर्याप्त नहीं है, और चाहिए। दस हजार ही हैं, दस लाख ही ___ यही सवाल नहीं है कि दूसरों के लिए आप हानि पहुंचा सकते हैं, करोड़ चाहिए। हैं, खुद को भी पहुंचा सकते हैं। गलत आदमी खुद को भी | करोड़ भी मिल जाएंगे एक दिन; कुछ अड़चन नहीं है। तब फिर पहुंचाएगा। वैराग्य का उदय होगा। फिर लगेगा कि वे सब इंद्रधनुष खो गए। सच तो यह है कि बिना खुद को हानि पहुंचाए, कोई दूसरे को वह सब मृग-मरीचिका हाथ नहीं आई। फिर खाली के खाली हैं। हानि पहुंचा ही नहीं सकता। इसका कोई उपाय ही नहीं है। इसके और इतना जीवन गया मुफ्त! क्योंकि धन कोई ऐसे ही नहीं मिलता, पहले कि मैं आपको आग लगाऊं, मुझे खुद जलना पड़ेगा। इसके जीवन से खरीदना पड़ता है। खुद को बेचो, तो धन मिलता है। पहले कि मैं आपको जहर पिलाऊं, मुझे खुद पीना पड़ेगा। जो मैं जितना खुद को मिटाओ, उतना धन इकट्ठा होता है। दूसरों के साथ करता हूं, वह मुझे अपने साथ पहले ही कर लेना तो आत्मा नष्ट होती जाती है, सोने का ढेर लगता जाता है। फिर विषाद पकड़ेगा; फिर वैराग्य लगेगा; लेकिन उसकी झलक ही आएगी। मन फिर जोर मारेगा कि छोड़ो भी, एक करोड़ से कहीं दुनिया में सुख मिला है! यह वही मन है, जो दस लाख पर कहता दूसरा प्रश्नः साधन तत्व को अभ्यास और वैराग्य, ऐसे था, करोड़ से मिलेगा। यह वही मन है, जो दस हजार पर कहता दो भागों में बांटने का क्या कारण है? क्या वे एक | था, दस लाख पर मिलेगा। यह वही मन है, जो दस पैसे पर कहता ही चीज के दो छोर नहीं हैं? क्या सम्यक साधना था, दस हजार पर मिलेगा। पद्धति के अभ्यास से वैराग्य का उदय अवश्यंभावी नहीं ___ जब तक कोई पूरा अध्ययन न करे अपने जीवन की घटनाओं है? और वैराग्य क्या स्वयं एक साधन पद्धति नहीं है? का; और वैराग्य की जो झलकें आती हैं, उनको पकड़ न ले; और फिर उन वैराग्य की झलकों का अभ्यास न करे...। अभ्यास का मतलब है, उनकी पुनरुक्ति, उनका बार-बार स्मरण, उनकी चोट 27 भ्यास और वैराग्य बड़ी भिन्न बातें हैं। वैराग्य तो एक निरंतर भीतर डालते रहना। और जब भी मन पुराना धोखा दे, तो ग भाव है; और अभ्यास एक प्रयत्न, एक यत्न है। वैराग्य का स्मरण खड़ा करना। पड़ता है। 237
SR No.002410
Book TitleGita Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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