________________
शुरू करें / आसुरी संपदा अर्थात और अधिक की दौड़ / भविष्य की तैयारी ः वर्तमान की बलि / भविष्य तो सपना है / मन की असीम वासनाएं / जो है-उसी में डूबना / बिन मांगे मोती मिले / आसुरी व्यक्ति दूसरों को हानि पहुंचाने वाला / दैवी संपदा वाला जीवनदायी / प्रत्येक व्यक्ति–साधन नहीं, साध्य है / सृजन की आराधना / सृजन के क्षण में परमात्मा की झलक / जो हम नहीं हैं-उसे ही हम सिद्ध करने की कोशिश करते हैं / हीनता की ग्रंथि / दूसरों को दिखाने के लिए झूठे चेहरे / आसुरी व्यक्ति सदा अच्छी बातें सोचता है-करता है सदा बुरी बातें / आत्म-सम्मोहन और वंचना / नरक अर्थात आसुरी चित्त की दशा / आसुरी व्यक्ति दुख बांटता है और सदा दुख ही पाता है / सुख-दुख-सब हमारा ही अर्जन / जैसा बोएंगे, वैसा पाएंगे।
जीवन की दिशा ... 383
यदि संसार में अच्छाई और बुराई सदा ही समान मात्रा में हैं, तो साधना का प्रयोजन क्या है? / न अच्छाई को बढ़ाना, न बुराई को घटाना / दोनों के साक्षी होना / साधना अर्थात अतिक्रमण का प्रयास / समाज आपको अच्छा बनाना चाहता है-धार्मिक नहीं / नीति है–सामाजिक उपयोगिता / धर्म है-अंतस क्रांति / सज्जन-दुर्जन, साधु-असाधु-सब द्वंद्व / अच्छाई भी बाहर-और बुराई भी / ध्यान है-भीतर डूबना / करने के पार / अर्जुन अच्छाई-बुराई के द्वंद्व से ग्रसित है / कर्ता-भाव छोड़-निमित्त हो जा / तीन वर्ष तक किसी इंद्रिय का उपयोग न करने पर वह निष्क्रिय हो जाती है, तो यह कामेंद्रिय के साथ क्यों नहीं घटता? / कामेंद्रिय समस्त इंद्रियों का आधार-स्रोत / पूरा शरीर काम-वासना के अणुओं से निर्मित / केवल जननेंद्रिय नहीं-पूरा शरीर कामेंद्रिय है / जब तक शरीर से तादात्म्य-तब तक काम-वासना / जब तक जीवेषणा-तब तक काम-वासना / मृत्यु-बोध का बढ़ना-काम-वासना का क्षीण होना / काम-तृप्ति ही-सभी इंद्रियों के द्वारा / मिटने की तैयारी चाहिए / दैवी संपदा भी क्यों विध्वंस करती है? / बनाने के लिए मिटाना जरूरी / बनाने के लिए मिटाना-दैवी / मिटाने के लिए मिटाना—आसुरी / हर तोड़ना-एक कदम हो-बनाने के लिए / दूसरे . व्यक्ति को साधन नहीं, साध्य मानना कठिन क्यों है? / आसुरी संपदा–कि मैं केंद्र हूं, मैं साध्य हूं / प्रेम में दूसरा साध्य हो जाता है / धन व पद के . लिए दूसरों का उपयोग-सीढ़ियों की तरह / महत्वाकांक्षी धार्मिक नहीं हो सकता / निमित्त होने के बोध से समर्पण घटित / मैं श्रेष्ठ हूं-ऐसा सोचना आसुरी वृत्ति है / आसुरी व्यक्ति नास्तिक होगा / तर्क से परमात्मा न सिद्ध होता-न असिद्ध / अपनी धारणाओं के लिए तर्क जुटाना / ईश्वर के इनकार से संभावनाओं के द्वार बंद / परमात्मा एक नियम-व्यक्ति नहीं / भारत की गहरी से गहरी खोजः कर्म का सिद्धांत / धर्म अर्थात जगत के नियम के अनुसार चलना / जो करो, वही बढ़ता है / सम्यक दिशा के लिए प्रयास / नियम निष्पक्ष है / आदमी-ऊर्जा, दिशा और नियम का जोड़ है।
8
नरक के द्वार: काम, क्रोध, लोभ ... 399
यदि परम नियम ही ईश्वर और धर्म है, तो प्रार्थना, भक्ति और आराधना का क्या अर्थ? और तब क्या धर्म और विज्ञान पर्यायवाची नहीं हो जाते? / भक्ति और प्रार्थना–व्यक्ति की आंतरिक दशाएं हैं / पूजा चित्त की एक दशा है / बिना भगवान का बौद्ध-धर्म / प्रेमपूर्ण हृदय हो, तो सब में प्रेमी का दर्शन / भगवान नहीं-भगवत्ता / हमारी प्रार्थना-मांग है / हमारी प्रार्थनाएं-नियम तोड़ने का प्रयास हैं / मांग-पूर्ति पर टिकी आस्था / प्रार्थना-अहंकार को मिटाने की कीमिया / कर्ताभाव को तोड़ने की तरकीब / अकड़ने से दुख, झुकने से सुख / प्रार्थना की कला / धर्म अर्थात नियम के अनुकूल चलना / निराधार भाव में कठिनाई / अकारण सुखी है संत / धर्म परम विज्ञान है / परम नियम को बाहर खोजना विज्ञान है / परम नियम को भीतर खोजना धर्म है / सत्य–निकटतम-स्वयं के भीतर है / जीवन का सभी विस्तार भीतर से बाहर की तरफ / जीवेषणा मुक्ति की सम्यक विधि क्या है? /जीने की अंधी दौड़ / पौधों और पशुओं में भी गहन जीवेषणा / हम किसलिए जीना चाहते हैं!/सुख पाने की आशा / आशा की व्यर्थता का