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बोध / मृत्यु की अनिवार्यता का बोध / मृत्योन्मुख जीवन कामना-योग्य नहीं है / जीवेषणा-मुक्ति द्वार है-वास्तविक जीवन का / जीवेषणा मुक्ति पर ही मृत्यु का अतिक्रमण / जीवन एक विरोधाभास है / नर्क के तीन द्वार-काम, क्रोध और लोभ / जीवेषणा इन तीन में फैलती है / भूख से शरीर की सुरक्षा और यौन से संतति की / उपवास में काम-वासना का अस्थायी रूप से क्षीण होना / समृद्ध समाज में काम-ऊर्जा अधिक / लोभ काम-वासना का विस्तार है / वासना में बाधा आने पर क्रोध / काम से मुक्त हुए बिना-क्रोध और लोभ से मुक्ति नहीं / लोभ और क्रोध की सतत अंतर-धारा / कंजूस आदमी-कब्जियत का शिकार / कंजूस हंसने तक से डरता है / बांटने से आनंद बढ़ता है / परमात्मा परम आनंद है, क्योंकि अपने को पूरा ही बांट दिया है / भले लोगों का विस्तार शुभ / बुरे लोगों का यात्रा न करना शुभ / केवल काम-मुक्त व्यक्ति से ही कल्याण-कार्य संभव / जो तुम देते हो, वही तुम्हें मिलता है / शास्त्र हैं सिद्ध पुरुषों के वचन / शास्त्र नक्शे हैं / नक्शों से भटकाव में कमी / आज की कठिनाई : अज्ञानी और पागल भी शास्त्र लिख रहे हैं / आज तो जीवित सदगुरु ही सहायक / शास्त्र द्वारा निश्चित कर्तव्य व्यक्ति के वर्णानुसार / अनेक जन्मों में क्रमबद्ध आत्मिक विकास / अर्जुन सुदृढ़ क्षत्रिय है-अनेक-अनेक जन्मों से / वह अचानक ब्राह्मण हो नहीं सकता / क्षत्रियत्व से ही उसके लिए मोक्ष का द्वार / युद्ध में ही समाधि / अकर्ता-भाव से युद्ध करना / तलवार चले, लेकिन चलाने वाला कोई न हो / या परमात्मा ही तलवार चलाए / योद्धा निमित्त-मात्र रह जाए / जापान के अदभुत क्षत्रियः समुराई / गीता में अर्जुन के बहाने सभी प्रकार के व्यक्तियों के लिए मार्ग-दर्शन / गीता में अपने प्रश्न का उत्तर खोज लेना।