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* गीता दर्शन भाग-7 *
पसीने से भरा हुआ।
चेहरा दिखाई दर्पण में पड़ रहा था, वहीं उसने पट्टियां लगा दीं। डाक्टर ने पूछा कि क्या हुआ?
कृष्ण कह रहे हैं कि केवल ज्ञानरूप नेत्रों वाले ज्ञानीजन ही तत्व उसने कहा, तूने पूरी बात क्यों न बताई?
से जानते हैं। कौन-सी पूरी बात?
केवल वे ही, जो होश से जगे हुए हैं और प्रतिपल जिनका ज्ञान नसरुद्दीन ने कहा, गधे ने पहले फूंक मार दी; गोलियां मेरे पेट | जाग्रत है, वे ही जन्म में, मृत्यु में, जीवन में, भीतर के तत्व को पूरी में चली गईं।
तरह पहचानते हैं। उस डाक्टर ने पूछा, तुम करने क्या लगे?
क्योंकि योगीजन भी अपने हृदय में स्थित हुए इस आत्मा को उसने कहा, मैं जरा दूसरे सोच में पड़ गया, जरा देर हो गई। | यत्न करते हुए ही तत्व से जानते हैं। और जिन्होंने अपने अंतःकरण गोली रखकर, मुंह में नली लगाकर मैं बैठा और कुछ दूसरा खयाल को शुद्ध नहीं किया है, ऐसे अज्ञानीजन तो यत्न करते हुए भी इस आ गया।
आत्मा को नहीं जानते हैं। उतने खयाल में तो बेहोशी हो जाएगी।
___ यत्न ही काफी नहीं है। यत्न जरूरी है, पर्याप्त नहीं है। प्रयास तो हम सब ऐसे ही जी रहे हैं। कुछ कर रहे हैं, कुछ खयाल आ रहा | करना होगा सघन, लेकिन अकेला प्रयास काफी नहीं है; हृदय की। है। कुछ करना चाहते हैं, कुछ हो जाता है। कुछ सोचा था, कुछ शुद्धि भी चाहिए। परिणाम आते हैं। कभी भी वही नहीं हो पाता, तो हम चाहते हैं। ___ यहां थोड़ा-सा समझ लेना जरूरी है। क्योंकि बहुत बार ऐसा वह होगा भी नहीं, क्योंकि वह केवल तभी हो सकता है, जब होश होता है कि लोग सिर्फ प्रयास ही करते रहते हैं, बिना इस बात की पूरा हो।
फिक्र किए कि भाव शुद्ध नहीं है, हृदय शुद्ध नहीं है। तो उसके जिसका होश पूरा है, उसके जीवन में वही होता है, जो होना परिणाम भयानक हो सकते हैं। कोई आदमी हृदय को शुद्ध न करे चाहिए। उससे अन्यथा का कोई उपाय नहीं है। जिसका जीवन | और एकाग्रता को साधे, कनसनट्रेशन को साधे। साध सकता है। मूर्छा में चल रहा है, वह शराबी की तरह है। जाना चाहता था घर, । | बुरे से बुरा आदमी भी एकाग्रता साध सकता है। एकाग्रता से पहुंच गया कहीं और। क्योंकि पैर का उसे कोई पता नहीं कि कहां | बुराई का कोई लेना-देना नहीं है, बल्कि बुरा आदमी शायद जा रहे हैं। वह शराबी की तरह है। करना चाहता था कुछ और, हो | | एकाग्रता ज्यादा आसानी से साध सकता है। क्योंकि बुरे आदमी का गया कुछ और।
एक लक्षण होता है कि वह जिस काम में भी लग जाए, पागल की ___ मैं पढ़ता था एक शराबी के संस्मरणों को। वह एक रात ज्यादा | | तरह लगता है। और बुरा आदमी जिद्दी होता है, क्योंकि बुराई बिना पीकर लौटा। पत्नी से बचने के लिए कि पत्नी को पता न चले...। जिद्द के नहीं की जा सकती। तो बुरे आदमी के लिए हठयोग
और ज्यादा पी गया, तो रास्ते पर कई जगह गिरा था। तो चेहरे पर बिलकुल आसान है। उसको पकड़ भर जाए, उसके खयाल में भर कई जगह खरोंच और चोट लग गई। तो वह बाथरूम में गया और आ जाए। और बुरा आदमी दुष्टता कर सकता है, दूसरों के साथ उसने मलहम की पट्टियां अपने चेहरे पर लगाई। जाकर चुपचाप भी, अपने साथ भी। दुष्टता करने में उसे अड़चन नहीं है। बिस्तर में सो गया। और बड़ा प्रसन्न हुआ कि पत्नी को पता भी नहीं __ अगर आप हठयोग साधेगे, तो ऐसा लगेगा कि क्यों सताओ इस चला; शोरगुल भी नहीं हुआ; खरोंच वगैरह भी सुबह तक काफी | शरीर को! क्यों इतना आसन लगाकर बैठो! पैर दुखने लगते हैं; ठीक हो जाएगी; पता भी नहीं चलेगा। बात निपट गई।
आंख से आंसू झरने लगते हैं। दुष्ट आदमी इनकी फिक्र नहीं लेकिन सुबह ही उसकी पत्नी चिल्लाती बाथरूम से बाहर आई | करता। वह दूसरे को भी सता सकता है, उतनी ही मात्रा में खुद को कि तुमने बाथरूम का दर्पण क्यों खराब किया है? पति ने पूछा, भी सता सकता है। कैसा दर्पण!
इसलिए आप हैरान होंगे जानकर कि आपके तथाकथित योगियों क्योंकि वह रात बेहोशी में जो मलहम-पट्टी चेहरे पर लगानी थी, | | में, महात्माओं में आधे से ज्यादा तो दुष्टजन हैं। पर उनकी दुष्टता दर्पण पर लगा आया था। होश न हो, तो यही होगा। करेंगे कुछ, हो दूसरों की तरफ नहीं है। इतनी भी उनकी बड़ी कृपा है। अपनी ही जाएगा कुछ। और शराबी को होना बिलकुल आसान है। क्योंकि | | तरफ किए हुए हैं। इससे समाज को उनसे कोई हानि नहीं है। अगर
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