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समर्पण की छलांग *
दुकान; यह आप बहुत बार कर चुके हैं।
भोजन कौन बनाएगा। एक का नाम आ गया। पर उसमें भी एक काश, आपको एक दफे भी याद आ जाए कि यह आप बहुत | | शर्त थी। वह शर्त यह थी कि जिसका नाम आ जाएगा, वह भोजन बार कर चुके हैं, तो इसमें जो आज आप इतना रस ले रहे हैं, वह बनाएगा; लेकिन बाकी दो में से कोई भी भोजन की शिकायत न एकदम खो जाएगा। यह पागलपन मालूम पड़ेगा। आप एकदम कर सकेगा। और जिसने शिकायत की, उसी दिन से भोजन उसको ठहर जाएंगे।
बनाना पड़ेगा। मृत्यु में जो होशपूर्वक मरे, वह जन्म में भी होशपूर्वक पैदा होता _मुल्ला बड़ी मुश्किल में पड़ गया। नाम तो दूसरे का आया, है। और जो मृत्यु और जन्म में होशपूर्वक रह जाए, वह जीवन में | इससे प्रसन्न हुआ। लेकिन भोजन उसने इतना रद्दी बनाना शुरू होशपूर्वक रहता है। क्योंकि मृत्यु और जन्म छोर हैं; बीच में जीवन किया कि वह खाया न जाए और शिकायत कर नहीं सकते। है। और हम तीनों में बेहोश हैं।
शिकायत की, तो खुद बनाना पड़े। इसलिए हम कितना ही सुनें कि शरीर नहीं है, आत्मा है, यह एक दिन, दो दिन, तीन दिन, फिर उसने होश खो दिया। तीसरे बात बैठती नहीं है। कितना ही कोई कहे कि आप शरीर नहीं, आत्मा | दिन उसने कहा कि इट टेस्ट्स लाइक हार्स शिट-घोड़े की लीद हैं; मान भी लें, तो भी यह बात भीतर उतरती नहीं। क्योंकि हमारा जैसा इसका स्वाद है। लेकिन तभी उसको खयाल आया, तो उसने
अनुभव नहीं है। लगता तो ऐसे ही है कि शरीर ही होंगे। यह आत्मा | कहा, बट डिलीशियस–पर बड़ा स्वादिष्ट है। क्योंकि कंप्लेंट हवा मालूम पड़ती है; हवाई बात मालूम पड़ती है।
नहीं करनी है, शिकायत नहीं करनी है। ___ कृष्ण कहते हैं, परंतु शरीर छोड़कर जाते हुए को अथवा शरीर अगर आप खयाल रखेंगे, तो चौबीस घंटे ऐसे मौके आपको में स्थित हुए को और विषयों को भोगते हुए को अथवा तीनों गुणों |आएंगे, जब आधा वाक्य बेहोशी में निकलेगा, और तब आपको से युक्त हुए को भी अज्ञानीजन नहीं जानते हैं। क्योंकि मूर्छा सतत खयाल आएगा; आधा तब आप पीछे से कहेंगे, बट डिलीशियस। है। केवल ज्ञानरूप नेत्रों वाले ज्ञानीजन ही तत्व को जानते हैं। जीवन है हाथ में अभी, और अभी ही कुछ किया जा सकता है।
कौन-सा है ज्ञान-नेत्र जो ज्ञानियों को मिल जाता है ? उसको ही | | वाणी, विचार, आचरण, सब पहलुओं पर होश की साधना। जो मैं अमूर्छा कह रहा हूं। होशपूर्वक घटनाओं को घटने देना, मृत्यु भी मैं कहूं, जो भी मैं सोचं, जो भी मैं करूं, वह होशपूर्वक हो, को, जन्म को, जीवन को। ये तीन घटनाएं हैं। अगर ये तीनों इतना भर काफी है। तो धीरे-धीरे आप पाएंगे कि बेहोशी टूटने होशपूर्वक घट जाएं, तो आपके पास ज्ञान-नेत्र उपलब्ध हो गया। लगी। और बेहोशी के टूटने के साथ ही दुख टूटने शुरू हो जाते
जहां आप हैं, वहीं से शुरू करना पड़ेगा। जन्म तो पीछे छूट हैं। बेहोशी के कारण ही दुखों को हम निमंत्रण देते हैं। और बेहोशी गया। मौत आगे आ रही है। वह अभी दूर है। जीवन अभी है। | के कारण ही हम वे क्षण चूक जाते हैं जिनसे आनंद उपलब्ध हो जीवन के साथ शुरू करना जरूरी है कि हम जीएं, तो ज्ञानपूर्वक सकता था। जीएं। जो भी करें, होशपूर्वक करें। बार-बार होश छूट जाएगा; मुल्ला नसरुद्दीन के पास एक गधा था। और गधे को अक्सर फिर उसे पकड़ें।
सर्दी लग जाती, तो वह कंपने लगता, बुखार आ जाता। तो वह रास्ते पर चलें, तो होश से। भोजन करें, तो होश से। किसी लेकर गया उसको एक जानवरों के डाक्टर के पास। से बात करें, तो होश से। एक बात सतत बनी रहे कि मेरे द्वारा उस डाक्टर ने जांच-पड़ताल की और उसको दो गोलियां दीं मूर्छा में कुछ न हो। कोई गाली दे, तो पहले होश को सम्हालें, | और एक पोली नली दी। और कहा कि नली में गोलियों को रखना फिर उत्तर दें। .
और एक छोर गधे के मुंह में डालना और दूसरे से फूंक मार देना, __ आप चकित हो जाएंगे, होश सम्हल जाए, तो उत्तर निकलेगा | | तो गोलियां इसके पेट में चली जाएंगी। गोलियां बहुत गरम हैं, एक नहीं। और होश न सम्हला हो, तो जो आप नहीं करना चाहते, वह | ही दिन में ठीक हो जाएगा। भी हो जाता है, वह भी निकल जाता है।
___ शाम को ही नसरुद्दीन लौटा, तो वह लट्ठ लिए हुए था। उसने ___ मुल्ला नसरुद्दीन एक यात्रा पर गया। दो मित्र साथ थे। तीनों जाकर दरवाजे पर लट्ठ मारा और कहा, कहां है वह डाक्टर का बैलगाड़ी से यात्रा कर रहे थे। तीनों ने चिटें डालकर तय किया कि बच्चा? डाक्टर भी डरा, क्योंकि उसकी आंखें लाल, चेहरा सुर्ख,
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