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* समर्पण की छलांग *
11 हली बात, हीनता की ग्रंथि, इनफीरिआरिटी कांप्लेक्स | - पूरब की स्त्रियों ने इतनी फिक्र नहीं की ऊंची एड़ी के जूतों की। - अहंकार का ही हिस्सा है। अहंकार के कारण ही हमें | क्योंकि उनमें अभी भी पुरुष के साथ बहुत प्रतिस्पर्धा नहीं है। हीनता मालूम होती है।
| लेकिन पश्चिम में भारी प्रतिस्पर्धा है। यह जरा कठिन लगेगा। अगर आप में अहंकार न हो, तो आप | __दूसरा बड़ा है, उससे कष्ट शुरू होता है। लेकिन कष्ट की क्या में हीनता हो ही नहीं सकती। हीनता इसलिए मालूम होती है कि बात है! आप छः फीट के हैं, में पांच फीट का हूं। न तो एक फीट आप समझते तो अपने को बहुत बड़ा हैं और उतने बड़े आप अपने | बड़े होने से कोई बड़ा होता है, न एक फीट छोटे होने से कोई छोटा को पाते नहीं। जितना बड़ा आप अपने को समझते हैं, उतना बड़ा | होता है। कि आप बहुत अच्छा गा सकते हैं, मैं नहीं गा सकता हूं। पाते नहीं हैं। वास्तविक जगत में आप पाते हैं, छोटे हैं। उससे | तो अड़चन कहां खड़ी होती है! हीनता पैदा होती है।
यह सब मुझमें भी होना चाहिए। यह मेरा अहंकार मान नहीं अहंकार जितना बड़ा होगा, उतनी ज्यादा हीनता मालूम होगी। | सकता कि कुछ है, जो मुझमें कम है। फिर जीवन में अनुभव होता अहंकार जितना कम होगा, हीनता उतनी ही कम होगी। अहंकार है, बहुत कम है। तो हीनता आती है, आत्म-अविश्वास आता है। नहीं होगा, हीनता खो जाएगी। हीनता और अहंकार एक ही सिक्के | फिर इससे दूर होने के लिए हम उपाय करते हैं और एड़ियों वाले के दो पहलू हैं।
| जूते पहनते हैं; उनसे और कष्ट पैदा होता है; और सारा जीवन इसलिए जो आदमी विनम्र है, वह हीन नहीं होता। उसको हीनता विकृत हो जाता है। पकड़ ही नहीं सकती। जो आदमी दंभी है, उसको ही हीनता ___ इन सारे रोगों से मुक्त होने का एक ही उपाय है, आप जैसे हैं, पकड़ती है।
| वैसे अपने को स्वीकार करें। आपके पास दो आंखें हैं, तो आपने मेरे पास न मालूम कितनी बार तरह-तरह के लोग आते हैं। कोई | | स्वीकार किया। आंखों का रंग काला है या हरा है, तो आपने आकर कहता है कि मेरा आत्म-विश्वास ज्यादा कैसे हो? मुझमें | स्वीकार किया। किसी की नाक लंबी है, किसी की छोटी है, तो बड़ा आत्म-अविश्वास है, कोई आकर कहता है। कोई कहता है | उसने स्वीकार किया। ये तथ्य हैं; उन्हें स्वीकार कर लें कि ऐसा मैं कि मुझमें हीनता की ग्रंथि है, तो यह कैसे मिटे? ठीक बीमारी को | हूं। और जो मैं हं, इस मेरी स्थिति से क्या उपलब्धि हो सकती है, नहीं पकड़ पा रहे हैं वे, केवल लक्षण को पकड़ रहे हैं। उसकी चेष्टा, उस पर सृजनात्मक श्रम।
अगर आत्म-अविश्वास है, तो इसे स्वीकार कर लें कि यह मेरा लेकिन दूसरे से स्पर्धा हो, तो आप पागल हो जाएंगे। और हिस्सा हुआ। जैसे आपकी छः फीट ऊंचाई है या पांच फीट ऊंचाई करीब-करीब सारे लोग पागल हो गए हैं। स्पर्धा विक्षिप्तता लाती है, तो आप क्या करते हैं? स्वीकार कर लेते हैं कि मैं पांच फीट है। और ऐसा तो कभी भी नहीं होगा...। .ऊंचा हूं
ऐसी हालत है करीब-करीब। मैं एक यात्रा पर था। एक मेरे मित्र लेकिन आप सोचते हैं कि छः फीट होना था। कोई दूसरा छः फीट | | खुद ही ड्राइव कर रहे थे। तो जैसे ही कोई गाड़ी उनको आगे दिखाई है। तो फिर हीनता शुरू हुई। एक फीट आप कम हैं; अब इसको | पड़ती रोड पर, वे अपनी गाड़ी तेज कर देते। कोई गाड़ी उनसे आगे किसी तरह पूरा करना जरूरी है। तब आप पंजे के बल खड़े होकर | कैसे हो सकती है। मैं थोड़ी देर तो देखता रहा कि जैसे ही उनको चलना शुरू करेंगे। उससे कष्ट पाएंगे; उससे बड़ी पीड़ा होगी। गाड़ी दिखाई पड़ती कोई आगे कि वे पगला जाते। वे गाड़ी तेज
सारी दुनिया में स्त्रियां बड़ी एड़ी का जूता पहनती हैं। वह सिर्फ | करके जब तक उसको पीछे न कर दें, तब तक उनको बेचैनी रहती। पुरुष की ऊंचाई पाने की चेष्टा है। उससे बड़ा कष्ट होता है, मैंने उनसे पूछा कि क्या तुम सोचते हो इस रास्ते पर कभी ऐसी क्योंकि चलने में वह आरामदेह नहीं है। जितनी ऊंची एड़ी हो, | हालत आएगी कि आगे कोई गाड़ी न हो? तुम पगला जाओगे। उतनी ही कष्टपूर्ण हो जाएगी। लेकिन फिर धीरे-धीरे उसी कष्ट की | रास्ते पर कोई न कोई गाड़ी आगे होगी ही। आदत हो जाती है। फिर हड्डियां वैसी ही जकड़ जाती हैं; फिर सीधे तुम अपनी रफ्तार से चलो। तुम्हें अपनी मंजिल पर पहुंचना है, पैर से जमीन पर चलना मुश्किल हो जाता है। लेकिन स्त्री के मन उसके हिसाब से चलो। मगर कोई भी गाड़ी आगे हो, तो उसे पार में थोड़ा-सा संकोच है। पुरुष से थोड़ी उसकी ऊंचाई कम है। करने की क्या तकलीफ है?
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