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________________ गीता दर्शन भाग-7* आपने कभी नहीं जाना है, उस रास्ते पर किसी के पीछे चलने के | जाना, खोजना, आकाश की तलाश ही बंद कर देंगे। यहीं बैठे सब लिए। अनहोना घटित हो सकता है। अनचाहा घटित हो सकता है। मिल गया। उस जोखम को उठाने की तैयारी भीतर हो। लेकिन मैं यहां आपके भीतर प्यास जगा सकता हूं, अनुभव नहीं इसीलिए तो हम अपने को बंद रखते हैं कि कहीं कोई जोखम न दे सकता। या मेरी मौजूदगी को अगर आप देखें, तो प्यास जग हो जाए। सकती है। और अगर मेरे साथ दो कदम चलने को राजी हों, तो एक मित्र मेरे पास आए। और उन्होंने मुझे कहा कि मैं शिविर में बाहर भी पहुंच सकते हैं। फिर जो आप देखेंगे, वह आपका ही आने से डरता हूं कि कहीं कुछ सच में ही हो न जाए। बच्चे हैं, पत्नी अनुभव होगा। है, घर-द्वार है। और अभी इन सबको बड़ा करना है, सम्हालना है। अनुभव निजी है और कभी भी हस्तांतरित नहीं हो सकता। अभी संसार का दायित्व है, उसे पूरा निभाना है। डर लगता है कि | इसलिए मैंने कहा कि अनुभव, दूसरे के अनुभव काम नहीं आते कहीं जाएं और कहीं कुछ हो ही न जाए! हैं। लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है कि आप दूसरों से सीख नहीं उनका डर ऐसे स्वाभाविक है। और ठीक भी है। मगर इस डर सकते हैं। अनुभव नहीं सीख सकते, लेकिन कैसे वे अनुभव तक के कारण वे बंद हैं। तो मैंने उनसे कहा, मेरे पास भी क्यों आए हो? पहुंचे, वे सारी विधियां, वे सारे मार्ग आप सीख सकते हैं। क्योंकि आना फिजूल है। यहां भी डर तो भीतर होगा ही। उस डर | इसलिए बुद्ध पुरुष सिद्धांत नहीं देते, केवल विधियां देते हैं। की आड़ से अगर तुम मुझसे मिलोगे, तो मिलन हो ही न पाएगा। | निष्पत्ति नहीं देते, केवल मार्ग देते हैं। क्या होगा वहां पहुंचकर, यह वह डर भीतर बैठा है, कहीं कुछ हो न जाए। तो जब डर चला जाए, नहीं बताते; कैसे वहां पहुंच सकोगे, इतना ही बताते हैं। तब ही आना। बुद्ध ने कहा है, मैं मार्ग बताता हूं; चलना तुम्हें है, पहुंचना तुम्हें और जल्दी कुछ भी नहीं है। समय अनंत है। और इतने जन्म | है, जानना तुम्हें है। मैं सिर्फ मार्ग बता सकता हूं। आपके हुए हैं; और इतने ही जन्म हो जाएंगे; कोई जल्दी नहीं है। ___ जो उस मार्ग से गुजरे हैं, उस मार्ग की खबर आपको दे सकते मगर डर की दीवार अगर भीतर हो, तो फिर आप किसी के भी पास | हैं। उनके अनुभव काम नहीं आते, लेकिन उनकी मौजूदगी, उनका जाएं, जाने से कुछ न होगा। अकेली पार्थिव मौजूदगी कुछ भी नहीं | व्यक्तित्व, उनका प्रकाश, उनका मौन, अगर आप खुले हों, तो है। मेरा जो अनभव है, वह मैं आपको दे नहीं सकता। संक्रामक हो जाता है। जैसे मलेरिया पकड़ता है, वैसे ही बद्धत्व भी लेकिन अगर आप खुले हों, अगर आप मेरे साथ बहने को राजी पकड़ता है। हों, तो आपके अनुभव घटने शुरू हो जाएंगे। वे आपके ही होंगे। लेकिन मलेरिया के लिए हम खुले होते हैं, तैयार होते हैं। अभी लेकिन मैं आपका हाथ पकड़कर कहीं ले चलूं, कहूं कि आओ यहां एक आदमी खांस दे, दस-पंद्रह आदमी खांसेंगे। उसके लिए मकान के बाहर सूरज निकला है, और फूल खिले हैं, और हम तैयार हैं। रोग के लिए हम तैयार हैं! लेकिन अभी यहां एक आकाश में बड़ी रंगीनी है! तो मैं आपका हाथ पकड़कर बाहर ले आदमी शांत हो जाए, तो दस-पंद्रह आदमी शांत नहीं हो जाएंगे। जा सकता हूं, लेकिन जब आप आंख खोलेंगे और सूरज को दुख के प्रति हम संवेदनशील हैं। आनंद के प्रति ऐसी ही देखेंगे, तो वह अनुभव आपका ही होगा, वह मैं आपको नहीं दे संवेदनशीलता का नाम समर्पण है। सकता। इस कमरे में बैठा हुआ मैं आपको वह अनुभव नहीं दे सकता। मैंने कितना ही सूरज देखा हो, और कितने ही फूल खिले देखे हों, और कितना ही आकाश रंगीन हो, यहां बैठकर मैं आप | तीसरा प्रश्नः इस विराट विश्व के संदर्भ में अपनी से आकाश की बात कर सकता हूं, सूरज की बात कर सकता हूं, तुच्छता का बोध आदमी में हीनता की ग्रंथि को लेकिन अनुभव नहीं दे सकता। मजबूत बनाकर उसे पंगु बना सकता है। और शब्द अनुभव नहीं हैं। और अगर आप मेरे शब्दों से राजी हो हीनता-भाव निरअहंकारिता नहीं है। कृपया बताएं कि जाएं, तो मैं आपका दुश्मन हूं। क्योंकि आप समझ लें कि शब्द हीनता से बचकर अहंकार-विसर्जन के लिए क्या सूरज सूरज है, आकाश शब्द आकाश है, तो फिर आप बाहर । किया जाए? 220
SR No.002410
Book TitleGita Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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