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*गीता दर्शन भाग-7 *
कोई बहुत गहरी हीनता की ग्रंथि होगी कि मैं किसी दूसरे से पीछे | उसका हाथ पहुंच गया और मेरा नहीं पहुंचा। कैसे रह सकता हूं! और ऐसा जीवन के रास्ते पर भी यही है। आप | आप थोड़ा सोचें, नेपोलियन की जगह आप भी होते, तो ऐसी इसकी फिक्र में नहीं होते कि आपको कहां जाना है। इसकी भी कोई | | ही पीड़ा होती। रोज यही पीड़ा हो रही है। चिंता नहीं कि कहीं पहुंचना है। लेकिन कोई आपके आगे न हो! __ हीनता अनुभव होने लगती है, क्योंकि बड़ा अहंकार है। अगर वह चाहे नरक जा रहा हो, तो भी आपको उसको पीछे करना है! | | नेपोलियन स्वीकार करता कि मैं पांच फीट का हूं: ठीक है। और
मैंने सुना है कि अमेरिका का एक बहुत बड़ा वैज्ञानिक ओपेनहेमर यह छः फीट का है। तो इसका हाथ पहुंचेगा, मेरा नहीं पहुंचा। यह अमेरिकी प्रेसिडेंट को सलाह दिया कि जल्दी करें, क्योंकि रूसी चांद | | तथ्य की बात है; इसमें अड़चन क्या है? और हाथ पहुंच जाने से पर पहुंचने में हमसे आगे हैं। शुरू में वे थे भी। तो ओपेनहेमर ने | | कौन-सी ऊंचाई सिद्ध हो गई? तब फिर कोई हीनता नहीं है। कहा अमेरिका के प्रेसिडेंट को कि हम जल्दी करें, नहीं तो वे चांद | । और जब हम निरंतर जोर देते हैं समर्पण के लिए, शून्य होने के पर हमसे पहले पहुंच जाएंगे। प्रेसिडेंट ने ऐसे ही कहा कि लेट देम | लिए, तो हीनता पैदा करने के लिए नहीं, विनम्रता पैदा करने के गो टु हेल–जाने दो उनको नरक, जाने दो उनको दोजख।| | लिए। और विनम्रता हीनता से बिलकुल उलटी बात है। क्योंकि
ओपेनहेमर ने कहा कि अगर इस रफ्तार से गए, तो वहां भी वे हमसे विनम्रता तब पैदा होती है, जब अहंकार जाता है। और जब अहंकार पहले पहुंच जाएंगे। और यह बर्दाश्त नहीं किया जा सकता! जाता है, तो हीनता अपने आप चली जाती है; वह उसकी छाया है।
तो कोन कहां जा रहा है, यह बड़ा सवाल नहीं है आपको, आप | आप विनम्र आदमी को तो कभी हीन कर ही नहीं सकते।' से आगे भर न जा पाए।
लाओत्से ने कहा है कि मुझे कभी कोई हरा नहीं पाया, क्योंकि आपकी जिंदगी में कई बार आपके रास्ते इसीलिए बदल गए कि | मैं पहले से ही हारा हुआ हूं। और मेरा कभी कोई अपमान नहीं कर संयोग से आगे एक आदमी मिल गया, जो कहीं और जा रहा था। सका, क्योंकि मैंने कभी सम्मान चाहा नहीं।
आपको खयाल में नहीं है। अगर आप विश्लेषण करेंगे, तो कहा जाता है, लाओत्से किसी सभा में जाता—अगर वह यहां आपको साफ दिखाई पड़ेगा कि आप चले जा रहे थे और एक आता सनने, तो वह बिलकल अंत में, जहां जूते उतारे जाते हैं, वहां आदमी और अच्छी कार में चला जा रहा था, आपकी जिंदगी बदल | | बैठता। क्योंकि वह कहता, वहां से कभी कोई उठा नहीं सकता। गई। क्योंकि आपको उससे अच्छी कार चाहिए। आप चले जा रहे __ आप लाओत्से को हीन नहीं कर सकते। कोई उपाय नहीं है उसे थे, किसी से मित्रता हो गई, जिसके पास आपसे बड़ा मकान था। | | हीन करने का। ओर ध्यान रखें, जो आदमी अंतिम बैठने में समर्थ अब आप मुश्किल में पड़ गए; आपके पास उससे बड़ा मकान |
है. उसके पास बडी आत्मा चाहिए। वह इतना आश्वस्त है अपने होना चाहिए।
होने से कि अंतिम बैठने से अंतिम नहीं होता हूं। और आप भूल ही जाते हैं कि आप कहां जाना चाहते हैं? क्या और जो आदमी पहले बैठने की कोशिश कर रहा है, वह होना चाहते हैं? यह अहंकार बर्दाश्त नहीं कर सकता कि कोई | | आश्वस्त नहीं है। वह डरा हुआ है। वह जानता है कि अगर मैं मुझसे आगे हो; इससे हीनता अनुभव होती है। और कोई न कोई | | पहला बैठा नहीं, तो लोग समझेंगे कि मैं पहला नहीं हूं। उसे अपने
आगे होगा। जीवन के रास्ते पर कभी किसी आदमी ने अनुभव नहीं | पर भरोसा नहीं है। जिसे अपने पर भरोसा है, वह कहीं भी बैठे, किया कि मैं सबके आगे हूं।
इससे कोई भी फर्क नहीं पड़ता। नेपोलियन सब कुछ जीत ले, तो भी छोटी-छोटी चीजों में दुखी विनम्रता हीनता नहीं है। विनम्रता अहंकार का विसर्जन है। हो जाता था। एक दिन उसकी घड़ी बि
विनम्रता इस बात की घोषणा है कि मैं जैसा हं. वैसा हं। और मेरी कोशिश में उसने हाथ बढ़ाया। उसकी ऊंचाई ज्यादा नहीं थी, पांच किसी दूसरे से प्रतिस्पर्धा नहीं है। और अगर मुझे विकास करना है, ही फीट थी। तो उसका हाथ नहीं पहुंचा घड़ी तक, तो उसका जो तो वह मेरा विकास है; वह दूसरे से संबंधित नहीं है। वह दूसरे की अर्दली था, वह छः फीट लंबा जवान था। उसने जल्दी से आकर तुलना और कंपेरिजन में नहीं है। . ठीक कर दिया। नेपोलियन ने अपनी डायरी में लिखा है कि मुझे जैसे ही यह बोध आना शुरू हो जाता है, कि मैं मैं हूं, तुम तुम इतनी पीड़ा हुई कि जैसे मैं सारा संसार हार गया। अर्दली! और हो। तुम जैसे हो, तुम्हारे लिए भले हो; मैं जैसा हूं, मेरे लिए भला
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