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* समर्पण की छलांग *
यह काम जोखम का है। इसलिए मैं अक्सर कहता हूं कि खूटी है; कोट टांगा जा सकता है। कोट टंग जाएगा। कोट होना दुकानदार धर्म में असफल रहते हैं, जुआरी जीत जाते हैं। यह काम चाहिए टांगने को आपके पास। कोई हिसाब-किताब का नहीं है कि आप पूरा पक्का पता लगा लेंगे समर्पण चाहिए, तैयारी चाहिए अपने को खोने और मिटाने की, कि एक रुपया लगा रहे हैं, तो कितनी बचत होगी? कि नहीं होगी? | तो कोई भी गुरु काम दे देगा। यह दांव है। इसमें सब खो सकता है, सब मिल सकता है। इसमें । मगर यह जो सवाल है, यह सबके मन में उठता है, कि जब तक छोटे हिसाब से नहीं चलेगा।
तसल्ली न हो...। तो आप भटकेंगे। तसल्ली कभी भी न होगी। और जिंदगी बड़ी बेबूझ है; गणित की तरह नहीं है, पहेली की यह मन ऐसा है कि तसल्ली होने ही नहीं देगा। मन की सारी प्रक्रिया तरह है। यह पहेली की तरह जो जिंदगी है, इसमें अगर आप बहुत अविश्वास पैदा करवाने की है। इसे समझ लें। हिसाबी-किताबी हैं, तो धर्म आपके लिए नहीं है, फिर व्यवसाय मन का ढांचा संदेह जन्माने का है। जैसे वृक्षों में पत्ते लगते हैं, आपके लिए है।
ऐसे मन में संदेह लगते हैं। तो मन में कभी श्रद्धा तो लगती ही नहीं; यह बिलकुल जोखम का काम है। यहां कोई पक्की गारंटी नहीं वह उस वृक्ष के बीज में ही नहीं है। कोई व्यक्ति मन के द्वारा श्रद्धा है कि आप किसी को समर्पण करेंगे, तो वह योग्य होगा ही। भूल को उपलब्ध नहीं होता; मन के द्वारा सिर्फ संदेह को उपलब्ध होता हो सकती है। पर भूल से कोई खतरा नहीं है। क्योंकि समझने की है। मन यानी संदेह। बात यह है, जिसको आप समर्पण करते हैं, उसकी योग्यता से तो जिस मन से आप खोजने जाएंगे, उसमें आपको संदेह मिलते क्रांति घटित नहीं होती; समर्पण से क्रांति घटित होती है। चले जाएंगे। और जब संदेह आपको मिलेगा, तो कैसे समर्पण कर __इसलिए एक वृक्ष के नीचे रखे हुए पत्थर को आप समर्पण कर । सकते हैं? समर्पण तो वे ही लोग कर सकते हैं, जो अपने मन से दें और क्रांति घटित हो जाएगी। असली सवाल आपके झुकने, थक गए हैं। अपने को मिटाने का है। किसके बहाने मिटाया, यह बात गौण है। । तसल्ली के कारण नहीं किसी पर, अपने मन पर जिनकी श्रद्धा
और मैं आपसे कहता हूं, ऐसा अक्सर हुआ है कि अज्ञानी गुरुओं उठ गई है; जो अपने मन से ऊब गए हैं और परेशान हो गए हैं; के पास भी कई बार शिष्य ज्ञान को उपलब्ध हो गए हैं। | और जिन्होंने मन के सब रास्ते टटोल लिए हैं; मन के साथ सब
यह बिलकुल उलटा लगेगा, क्योंकि यह गणित नहीं समझ में | मार्गों पर चलकर देख लिया है; मन की सब बातें मान ली और फिर आएगा। जब तक गुरु ज्ञानी न हो, तब तक कैसे शिष्य ज्ञान को भी कहीं कोई आनंद नहीं पाया; जो अपने मन से ऊब गए हैं, जो उपलब्ध हो सकता है? ज्ञानी गुरुओं के पास भी शिष्य वर्षों रहे हैं | अपने मन से विषाद से भर गए; वे लोग समर्पण करते हैं। और अज्ञानी रहे हैं!
मन को छोड़ना समर्पण है। क्योंकि मन को छोड़ा कि श्रद्धा का . इसलिए मैं कहता हूँ; जीवन पहेली जैसा है। क्योंकि ज्ञानी गरु जन्म हुआ। जहां आपको कल संदेह दिखाई पड़ते थे, वहीं श्रद्धा के पास भी आप बैठे रहें बिना समर्पित, तो ज्ञानी गुरु कुछ भी नहीं | दिखाई पड़ने लगेगी। जहां कल आपको तसल्ली पैदा नहीं होती कर सकता। उसकी आंखें आपके काम नहीं आ सकतीं, और न थी, वहां अचानक तसल्ली हो जाएगी, ट्रस्ट हो जाएगा। एक गहरा उसका हृदय आपके लिए धड़क सकता है, न उसकी अनुभूति भाव पैदा हो जाएगा और आप मार्ग पर चलना शुरू कर देंगे। आपकी अनुभूति बन सकती है। और अज्ञानी गुरु भी कभी काम कौन मांगता है तसल्ली? आप! अगर आप कहीं पहुंच गए हैं, आ सकता है, अगर आप समर्पण कर दें। क्योंकि समर्पण करना | | तो तसल्ली की कोई जरूरत नहीं, समर्पण की कोई जरूरत नहीं। ही घटना है, गुरु तो सिर्फ बहाना है।
अगर कहीं नहीं पहुंचे हैं...। जैसे आप कमरे में आते हैं; कोट निकालते हैं; खूटी पर टांग | तो धार्मिक व्यक्ति और अधार्मिक व्यक्ति में एक ही फर्क है। देते हैं। खूटी तो सिर्फ बहाना है। कोई भी खूटी काम दे जाएगी। | अधार्मिक व्यक्ति सब पर संदेह करता है, अपने को छोड़कर। और लाल रंग की है, कि हरे रंग की है, कि पीले रंग की है, कि बेरंग | धार्मिक व्यक्ति अपने पर संदेह करता है, सब को छोड़कर। की है; कि छोटी है, कि बड़ी है; कि लकड़ी की है, कि लोहे की, जो अपने पर संदेह करता है, उसको गुरु जल्दी मिल जाएगा, है, कि सोने की है; इसकी तसल्ली करने की बहुत जरूरत नहीं। क्योंकि वह तसल्ली कर सकता है। जो दूसरे पर संदेह करता है,
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