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* गीता दर्शन भाग-7 *
उसे गुरु कभी भी नहीं मिल सकता। क्योंकि वह कहीं भी जाए, वह कुछ करना चाहता है। उसको बिठा देना कष्टपूर्ण है। उसको अपने पर उसका भरोसा है, जिसने कहीं भी नहीं पहुंचाया है। | बिठाने का एक ही उपाय है कि पहले उससे कहो कि घर के दस
मैंने सुना है कि मुल्ला नसरुद्दीन एक दिन बहुत नाराज था; चक्कर लगा। और जितनी तेजी से बन सके, उतनी तेजी से लगा। उछल-कूद रहा था, क्रोध में आगबबूला हो रहा था। उसके मित्र और जब वह थक जाए और हाथ-पैर जोड़ने लगे कि अब मैं नहीं पंडित रामचरणदास उसके पास बैठे थे। वे उससे पूछ रहे थे कि | दौड़ सकता; अब बस! तब उससे कहो कि बैठ जा। ।। नाराजगी क्या है? तो वह कह रहा था, मेरी पत्नी ने मुझे धोखा | इस मन को पहले दौड़ा लें। यह आधा-आधा दौड़ा हुआ होगा, दिया! बेईमान है, दुश्चरित्र है। घर से निकाल देने योग्य है। | तो यह कहीं रुकने न देगा। जहां भी आप जाएंगे, यह आपके लिए
तो उसके मित्र ने पूछा कि आखिर क्या तुम्हारे पास प्रमाण है ? | | दौड़ के लिए कारण खोज लेगा। इसे दौड़ा ही लें अच्छी तरह। किस आधार पर कहते हो कि पत्नी दुश्चरित्र है? किस आधार पर | जितना संदेह करना है, संदेह कर लें। जितने तर्क करने हैं, तर्क इतने नाराज और पागल हुए जा रहे हो?
कर लें। जितना विचार करना है, विचार कर लें। कुनकुने नहीं, नसरुद्दीन ने कहा, मेरे पास प्रमाण है। कल पूरी रात वह घर से | पूरे उबल जाएं। भाप बनने दें इसे। बड़ा कष्ट होगा; नर्क हो गायब रही। और सुबह जब आई और मैंने पूछा, तो उसने मुझे जाएगा खड़ा। धोखा दिया है। वह कहती है कि मैं अपनी सहेली तारा के घर पर यही अड़चन है। न तो समर्पण करते हैं कि सब शांत हो जाए; रात रुक गई। यह बात सरासर झठ है। तो पंडित रामचरणदास ने। और न उबलते हैं पूरे कि सब तरह से भाप पैदा हो जाए। कुछ भी पूछा कि इसका तुम्हारे पास प्रमाण है कोई? तो उसने कहा, पूरा नहीं करते। बीच में कुनकुनाते रहते हैं। यह जो कुनकुनापन है, यह प्रमाण है। क्योंकि तारा के घर तो रातभर मैं रुका था।
आदमी मन पूरे समय दूसरे पर संदेह कर रहा है। मन अपने पर लौटता संदेह ही करना है, तो पूरा कर लें। पूरा संदेह भी श्रद्धा पर ले ही नहीं।
| जाएगा। नर्क से गुजरना पड़ेगा। बड़ी पीड़ा होगी। लेकिन उस पीड़ा तो अगर आप इस मन को लेकर खोजने चले हैं, तो गुरु से से गुजरकर एक बात हाथ में आ जाएगी कि यह मन सिवाय दुख आपका मिलना कभी भी नहीं हो सकता। अगर इस मन से थक के और कहीं भी नहीं ले जाता है। यह द्वार है दुख का। यह प्रतीप्ति गए हैं या न थके हों, तो और थोड़ी मेहनत करें, और थक जाएं। हो जाएगी, तो आप इस मन के द्वारा तसल्ली नहीं खोजेंगे। आप जब थक जाएं, तो गुरु से मिलना हो जाएगा।
इस मन को हटा देंगे और सीधा संपर्क साधेगे। फिर समर्पण और गुरु को खोजने कोई हिमालय जाने की जरूरत नहीं है। गुरु आसान है। हो सकता है आपके घर में मौजूद हो। लेकिन आपका मन उससे जब तक समर्पण न होता हो, तसल्ली खोजने का मन जारी रहता संबंध न जुड़ने देगा।
हो, तब तक इसका दुख पूरी तरह भोगें। और धीमे-धीमे नहीं। आपका मन हट जाए, तो आंखें साफ हो जाएंगी, खोज सरल होमियोपैथी के डोज मत लें। पूरा जहर इकट्ठा पी लें। या इस पार हो जाएगी। और शायद आपको खोजने भी न जाना पड़े। वह | या उस पार। दो में से कहीं भी पार हो जाएं। बीच में मत उलझे रहें। व्यक्ति आपको खोजता आ जाए। लेकिन तसल्ली की खोज वाला तो मैं यहां देखता हूं, अनेक लोग थोड़ी तसल्ली भी करते हैं, मन कभी भी नहीं खोज पाता है।
थोड़ी नहीं भी करते हैं। यह उनकी स्थिति है; नपुंसकता की स्थिति और पूछा है, तब तक क्या करें?
है। इससे इंपोटेंस पैदा होती है। इससे कहीं जा नहीं सकते। मेरे पास तब तक इस मन के दुख जितने भोग सकें, भोगें। कोई और कोई आता है और वह कहता है कि थोड़ा आप पर विश्वास आता उपाय नहीं है। और जहां-जहां यह मन ले जाए और भटकाए, है, थोड़ा नहीं भी आता। भटकें। इस मन से पूरी तरह थक जाना है। थक जाएं। | मैं कहता हूं, दो में से तू कुछ भी चुन। यह थोड़ा विश्वास भी
यह मन उसी तरह का है, जैसे एक छोटे बच्चे को कहें कि बैठ छोड़ दे, तो मुझसे छुटकारा हो। इस थोड़े विश्वास की वजह से तू जाओ एक कोने में; शांत बैठो; हिलो-डुलो मत! तो बड़ी मुश्किल मेरे से दूर भी नहीं जा सकता। अकारण समय खराब कर रहा है। में हो जाता है बच्चा। क्योंकि सब शक्ति उसकी ऊर्जा भागती है। और थोड़ा अविश्वास है, उसकी वजह से मेरे पास भी नहीं आ
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