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________________ * समर्पण की छलांग * सके, आप बदल जाएंगे। और अगर समर्पण की तलाश स्वयं को | की पत्नी को पूछा कि क्या करना चाहिए ? साल्जमन की पत्नी ने बदलने के लिए है, तो तसल्ली की बात ही मत सोचो। कहा, मैं नहीं जानती। मैंने दिए थे, वे मुझे वापस मिल गए। तो फिर एक और बात समझ लेने की है। अगर कोई व्यक्ति सच उसने सोचा, जब वापस ही मिल जाना है, तो डरना क्या? वह में ही आपको पूरी तसल्ली दे दे, तो आपके झुकने का अर्थ क्या गुरजिएफ को दे आई। उसने कभी वापस न किए। रह जाएगा? अगर परमात्मा आपके सामने खड़ा हो और सब भांति अब यह जो गुरजिएफ है, इसे कोई प्रयोजन हीरे और जवाहरात आपको तसल्ली हो जाए, तब आपका सिर झुके, तो आपका से नहीं है; लेकिन उस मन से तो प्रयोजन है, जो पकड़ता है, छोड़ अहंकार नहीं झुक रहा है। अगर सब तरह तसल्ली ही हो गई, तो नहीं सकता। जो छोड़ सकता है, उसके वापस लौटाए जा सकते सिर को झुकना ही पड़ रहा है, इसमें गुण क्या है ? इसका मूल्य क्या | हैं। जो छोड़ नहीं सकता, उसके वापस लौटाने असंभव हैं। है? इससे कोई आत्मक्रांति घटित न होगी। __ और गुरजिएफ यहां से पैसा लेता और दूसरी जगह बांट देता। इसलिए बहुत-से संत तो इस भांति जीते हैं, ताकि आपको | एक से मांगता और दूसरे को दे देता। उसके व्यवहार से लगेगा कि तसल्ली न हो सके। उनके पूरे जीवन की व्यवस्था यह है कि पैसे पर उसकी पकड़ है। आपको तसल्ली न होने देंगे। और गुरजिएफ ने अपने शिष्यों को कहा है कि मैं सब भांति गुरजिएफ के पास एक महिला थी, अलेक्जेंड्रा डि साल्जमन। अपने में अविश्वास पैदा करवाने की कोशिश करवाता हूं। और एक बड़ी संगीतज्ञ की पत्नी थी। और गुरजिएफ की आदत थी कि | उसके बाद भी अगर कोई विश्वास कर ले, तो समर्पण है; तो जब भी कोई व्यक्ति उसके पास आए, तो पहले वह उससे कहता | उसका अहंकार उसी वक्त खो जाता है। था, सारा रुपया-पैसा, जेवर, जायदाद, जो भी हो, मुझे दे दो। कई इसलिए जिनको आप साधारणतः संत पुरुष समझते हैं, जो सब तो इसीलिए भाग जाते थे कि हम यहां धर्म की तलाश में आए, और भांति आपके मापदंड में साधु हैं, उनके पास आपके जीवन में कोई यह आदमी सारा धन, जेवर पहले मांगता है! क्रांति कभी घटित नहीं होने वाली। आप सब भांति कसौटी पर ___ यह डि साल्जमन और उसकी पत्नी बड़े भक्त थे। और जब कसकर उनको समर्पण करते हैं। समर्पण आप करते ही नहीं। गुरजिएफ ने उनसे कहा कि तुम अपना सब जेवर पहले मेरे पास क्योंकि समर्पण तो वही कर सकता है, जो जानता है, मेरी योग्यता छोड़ दो, तुम खाली हाथ हो जाओ, क्योंकि तब ही मैं तुम्हें भर | क्या कि मैं कसौटी पर कसूं! सकूँगा। तो साल्जमन, पति तो राजी हो गया। लेकिन जैसा स्त्रियों जो आपकी कसौटी पर खरा उतरा और उस पर आपने समर्पण का मन होता है, साल्जमन की पत्नी का मोह अपने कुछ | किया, तो आपने समर्पण किया ही नहीं, आपकी कसौटी जिंदा है। हीरे-जवाहरातों में था। बड़े परिवार की महिला थी। एक हीरे में तो | यह आदमी आपसे छोटा है। आपने सब भांति इसे परख लिया। उसका बहुत ही लगाव था। और आपका मन राजी हो गया कि बिलकुल ठीक; तब आपने तो उसने अपने पति को कहा कि मैं क्या करूं? उसके पति ने समर्पण किया। समर्पण की कोई क्रांति घटित नहीं होगी। कहा, तेरे लिए दो ही उपाय हैं। या तो तू सब दे दे। वह एक हीरा समर्पण की क्रांति तो तब ही घटित होती है, जब मन डांवाडोल नहीं बचाने देंगे। और या कुछ भी मत दे। लेकिन तब तू निर्णय कर | है; जब मन डरता है, जब मन भरोसा भी नहीं कर पाता है। और ले। क्योंकि मैं तो सब छोड़कर उसके चरणों में जा रहा हूं। अगर जब अहंकार सब तरह के सुझाव देता है कि भाग जाओ, हट तू गुरजिएफ को छोड़ती है, तो मुझे भी छोड़ दे। जाओ, तब भी आप साहस करते हैं और छलांग लगाते हैं। उसी उसकी पत्नी ने हिम्मत की। अपना हीरा, अपने सब जवाहरात, | छलांग में अहंकार की मृत्यु हो जाती है। पक्के भरोसे के साथ, अपने सब गहने-लाखों रुपए के थे-वे सब एक पोटली में | | तसल्ली के साथ जब आप समर्पण करते हैं, तो समर्पण झूठा है। बांधे और गुरजिएफ के चरणों में जाकर रख दिए। दूसरे दिन समर्पण है ही नहीं। वहां कोई छलांग ही नहीं है। गुरजिएफ ने बुलाया और पूरी पोटली उसे वापस कर दी। | आपने सब भांति परख कर ली कि रास्ता साफ-सुथरा है; यहां कोई पंद्रह दिन बाद एक दूसरी महिला आई और गुरजिएफ ने कोई गड्ढे नहीं हैं। और यहां कोई छलांग का खतरा नहीं है; यहां उससे भी कहा कि तू सारे अपने जेवर मुझे दे दे। उसने साल्जमन किसी खाई में गिर जाने का डर नहीं है। रास्ता है पक्का पटा हुआ, 215
SR No.002410
Book TitleGita Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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