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________________ गीता दर्शन भाग-7 उत्क्रामन्तं स्थितं वापि भुञ्जानं वा गुणान्वितम् । विमूढा नानुपश्यन्ति पश्यन्ति ज्ञानचक्षुषः ।। १० ।। यतन्तो योगिनश्चैनं पश्यन्त्यात्मन्यवस्थितम् । यतन्तोऽप्यकृतात्मानो नैनं पश्यन्त्यचेतसः । । ११ । । परंतु शरीर छोड़कर जाते हुए को अथवा शरीर में स्थित हुए को और विषयों को भोगते हुए को अथवा तीनों गुणों से युक्त हुए को भी अज्ञानीजन नहीं जानते हैं, केवल ज्ञानरूप नेत्रों वाले ज्ञानीजन ही तत्व से जानते हैं। क्योंकि योगीजन भी अपने हृदय में स्थित हुए इस आत्मा को यत्न करते हुए ही तत्व से जानते हैं और जिन्होंने अपने अंतःकरण को शुद्ध नहीं किया है, ऐसे अज्ञानीजन तो यत्न करते हुए भी इस आत्मा को नहीं जानते हैं। पहले कुछ प्रश्न | पहला प्रश्न : किसे समर्पण करें? किसे समर्पण करना चाहिए, इसकी कैसे तसल्ली हो ? और तब तक क्या जारी रखें ? सल्ली कभी भी न होगी। क्योंकि जो मन तसल्ली मांगता है, तृप्त होना उसका स्वभाव नहीं। वह भूल-चूक खोज ही लेगा। आप बुद्ध के पास से भी गुजरे हैं, कृष्ण के पास से भी, महावीर के पास से भी। आप पहली दफा पृथ्वी पर नहीं हैं। तसल्ली कोई आपको दे नहीं पाया। अगर किसी ने भी तसल्ली दी होती, तो आप यहां होते नहीं । त भूलें आपने सब में खोज ली हैं। इसलिए नहीं कि भूलें थीं। इसलिए कि भूल खोजने में आप पारंगत हैं, कुशल हैं। जहां भूल न हो, वहां भी आप देख ले सकते हैं। फिर व्याख्या आपके ऊपर निर्भर है। तथ्य तो केवल उन्हें दिखाई पड़ते हैं, जिनका मन खो गया। आप तो तथ्य की व्याख्या करते हैं। और आपको वही दिखाई पड़ता है, 'आप देखना चाहते हैं, जो आप देख सकते हैं। एक मित्र हाईस्कूल में ड्राइंग के शिक्षक थे। किसी कारण से उनको जेल हो गई। जब वे वापस लौटे और मैं गांव गया, तो मैंने उनसे पूछा कि जेल का जीवन कैसा रहा? उन्होंने कहा, और तो सब ठीक था, लेकिन जेल की मेरी जो कोठरी थी, उसके कोने नब्बे डिग्री के नहीं थे। ड्राइंग का शिक्षक उन्हें बड़ी तकलीफ रही होगी। वे जो दीवार के कोने थे, नब्बे डिग्री के नहीं थे ! आप पर निर्भर होता है, आप क्या देखेंगे। आप पर निर्भर है, आप कैसी व्याख्या करेंगे। महावीर के पास से आप गुजरें, हो सकता है उनका नग्न खड़ा होना आपको कठिनाई में डाल दे। शायद आपको लगे कि नग्न खड़ा आदमी भला कैसे हो सकता है? भले आदमी तो सदा अपने को वस्त्र से ढांके हुए हैं। इस पर भरोसा न आएगा, तसल्ली न आएगी। जीसस के पास से आप गुजरें, और यह जीसस दावा करता है कि मैं परमात्मा का पुत्र हूं। आपके अहंकार को चोट लगेगी कि आपके अतिरिक्त और कैसे परमात्मा का पुत्र होने का दावा कर सकता है! जरूर यह धोखेबाज है, बेईमान है। और फिर जब | जीसस को सूली लगेगी, तब भी आप व्याख्या करेंगे। आप कहेंगे, न मालूम किन कर्मों का फल भोग रहा है यह आदमी ! और अगर | सच में ईश्वर का पुत्र है, तो अब सूली पर चमत्कार दिखाना चाहिए। कोई चमत्कार नहीं हुआ। मोहम्मद के पास से आप गुजरेंगे, तो भी अपनी व्याख्या ही आप करेंगे। मोहम्मद ने नौ स्त्रियों से शादी कर ली थी । तसल्ली आपको. न होगी। आप अपने को ही बेहतर समझेंगे; कम से, एक से ही निबटारा कर रहे हैं। यह आदमी नौ स्त्रियों से शादी कर लिया है। महाकामी मालूम पड़ता है! तसल्ली आपको कोई भी न दे सकेगा। कृष्ण तो आपको बिलकुल तसल्ली न दे सकेंगे। आप में से एक भी तसल्ली उनके द्वारा नहीं पा सकेगा। इतनी सखियां हैं। इतना राग-रंग है ! नाच है; युद्ध है; धोखाधड़ी है; बेईमानी है; झूठ बोलना है। सब उनमें है। अगर आप तसल्ली की तलाश में हैं, तो आपके समर्पण का कोई उपाय नहीं है। सच तो यह है कि तसल्ली की खोज समर्पण से बचने का ढंग है । जिन्हें समर्पण करना है, वे पत्थर को भी समर्पण कर सकते हैं। और समझ लेने की बात यह है कि वह आदमी समर्पण के योग्य था या नहीं, यह बात ही व्यर्थ है । आपने समर्पण किया, आपको फल मिल जाएगा। वह आदमी गलत भी रहा हो, वह आदमी ठीक न भी रहा हो, योग्य भी नहीं था कि उसके चरणों में आप झुकें। लेकिन उस आदमी का सवाल भी नहीं है। आप झुके, आप झुक 214
SR No.002410
Book TitleGita Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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