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गीता दर्शन भाग-7
होगी ही, उससे ज्यादा निश्चित और कुछ भी नहीं है। वही एकमात्र निश्चित तथ्य है।
फिर जब दूसरा मरता है, तब तुम्हें कभी खयाल नहीं आता कि यह मेरे मरने की भी खबर है। तब तुम दूसरे पर दया करने का विचार करते हो, कि बड़ा बुरा हुआ; बेचारा! तुम्हें यह खयाल कभी भी नहीं आता कि कोई भी जब मरता है, तब तुम ही मर रहे हो ।
लेकिन हर आदमी यह सोचकर चलता है कि हमेशा दूसरा मरता है, मैं तो कभी मरता नहीं। और एक लिहाज से आपका तर्क ठीक भी है। कम से कम अभी तक तो आप मरे नहीं। इसलिए...। मैं है एक आदमी एक पक्षियों की दुकान से एक तोता खरीदकर ले गया। दूसरे दिन ही वापस आया और तोता बेचने वाले पर नाराज होने लगा और कहा कि तुमने किस तरह का तोता दिया वह घर जाकर मर गया। तो उस दुकानदार ने कहा, लेकिन यह मैं मान ही नहीं सकता, क्योंकि ऐसी हरकत उसने इसके पहले कभी नहीं की। तोता यहां भी था, महीनों तक रहा, ऐसी हरकत उसने पहले कभी की नहीं। इसलिए मैं भरोसा कर ही नहीं सकता।
आपका भी तर्क यही है। अभी तक आप मरे नहीं, तो भरोसा कैसे कर सकते हैं कि मर जाएंगे ! और जो अब तक नहीं हुआ, वह आगे भी क्यों होगा !
जब दूसरा मरता है, तब भी आप सोचते हैं, दूसरा मरता है। तब आपको खयाल नहीं आता है कि मैं भी मरूंगा या मैं भी मर रहा हूं या यह खबर मेरी मौत की खबर है।
अगर आप दुख को ठीक से जीएं, तो हर मौत आपको अपनी मौत मालूम पड़ेगी। तब वैराग्य गहरा हो जाएगा।
जब कोई दूसरा असफल होता है या जब आप खुद भी असफल होते हैं जीवन में, तो आप सोचते हैं, संयोग ठीक न थे, भाग्य साथ न था, दूसरे लोगों ने बेईमानी की, चालबाजी की, चार सौ बीस थे, इसलिए वे सफल हुए; मैं असफल हुआ। लेकिन आप यह कभी नहीं देख पाते हैं कि पूरा जीवन असफलता है। इसमें सफल होना होता ही नहीं। लेकिन कोई तरकीब आप निकाल लेते हैं।
मुल्ला नसरुद्दीन एक गांव से गुजर रहा है। कोई मर गया है; घर के आस-पास भीड़ है; लाश सामने रखी है। नसरुद्दीन भूखा है। छोटा गांव है। सारा गांव वहीं इकट्ठा है। कोई भोजन देने के लिए भी अभी उत्सुक नहीं होगा। अभी कोई मेहमान बनाने की भी तैयारी में नहीं है। और गांव इतने दुख में है कि वह यह बात भी करे कि मुझे भूख लगी है, कि मुझे भोजन चाहिए, तो भद्दा मालूम पड़ेगा।
वह भी भीड़ में जाकर खड़ा हो गया और उसने पूछा कि क्या बात है ? क्यों रो रहे हो? तो उन्होंने कहा कि क्यों रो रहे हैं, यह भी पूछने की कोई बात है ? घर का आदमी मर गया है। गांवभर का
प्यारा था ।
नसरुद्दीन ने कहा कि मैं उसे जिला सकता हूं। लेकिन अभी मैं भूखा हूं। पहले मेरा पेट भर जाए, मैं स्नान कर लूं, पूजा-पाठ कर लूं इसे मैं जिला सकता हूं। रोने की कोई भी जरूरत नहीं है।
भूख में ऐसा कह गया। फिर जब पेट भर गया, हाथ-मुंह धोकर पूजा-पाठ जब उसने की, तब पूजा-पाठ कर नहीं सका, क्योंकि अब उसको झंझट मालूम हुई कि अब क्या करना ? कहीं मरा हुआ कभी कोई जिंदा हुआ है!
फिर भी वह आया, लाश के पास बैठा; और उसने कहा कि यह आदमी कौन था? इसका धंधा क्या था? उन्होंने कहा कि यह आदमी! जाहिर आदमी है, यह बड़ा नेता था; राजनीति इसका धंधा था । नसरुद्दीन क्रोध से खड़ा हो गया और उसने कहा कि नालायको, मेरा समय खराब किया ! राजनीतिज्ञ मरकर कभी जिंदा नहीं होते। तुम्हें पहले ही बताना था; नाहक मेरा समय खराब करवा दिया। अब तक मैं दूसरे गांव पहुंच गया होता।
आप भी जिंदगी में बहाने खोज रहे हैं। कभी यह, कभी वह । लेकिन हमेशा समझा लेते हैं अपने को कि असफलता का कोई कारण है।
बुद्ध का वैराग्य गहरा हुआ, क्योंकि बुद्ध ने अपने को समझाया नहीं, बल्कि सीधा देखा और पाया कि जीवन पूरी की पूरी असफलता है; इसमें कारण की कोई जरूरत नहीं है। यहां कुछ भी करो, सफलता तो हो नहीं सकती। क्योंकि यहां कुछ भी करो, सुख तो मिल नहीं सकता। यहां कुछ भी करो, कहीं पहुंचना नहीं हो सकता। स्वप्नवत है।
जो सीधा देखना शुरू करेगा, उसका वैराग्य गहरा हो जाता है। और वैराग्य के बिना गहरा हुए, कोई शास्त्र सहयोगी नहीं है, कोई गुरु अर्थ का नहीं है। वैराग्य गहरा हो, तो गुरु से संबंध हो सकता है । वैराग्य गहरा हो, तो शास्त्र का अर्थ प्रकट हो सकता है। और वैराग्य गहरा हो, तो गुरु भी न हो, शास्त्र भी न हो, तो पूरा जीवन ही गुरु और शास्त्र बन जाता है।
लेकिन वैराग्य को गहरा करने की तरकीबें नहीं हैं। वैराग्य को गहरा करने का एक ही मार्ग है, आपका अनुभव पूरी सचाई में | जीया जाए। जो भी अनुभव हो - सुख का हो, दुख का हो; संताप
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