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* संकल्प-संसार का या मोक्ष का *
नुभव के अतिरिक्त कोई भी उपाय नहीं। और हम सब जाते हैं। आप मृत्यु का दुख नहीं भोगते। आप पूछने चले जाते हैं 07 चाहते हैं कि अनभव के बिना कळ हो जाए। अनभव पंडित से. परोहित से कि आत्मा अमर है? पत्नी मर गई है. या पति
से बिना गुजरे कोई उपाय नहीं है, चाहे अनुभव कितनी मर गया, या बेटा मर गया; मौत सामने खड़ी है। आप ही पीड़ा दे, कितना ही जलाए। हमारी आकांक्षा ऐसी है, जैसे सोना साधु-संन्यासियों से पूछ रहे हैं कि आत्मा अमर है? सोचता हो कि बिना आग से गुजरे और मैं शुद्ध हो जाऊं। आग से | आप झुठलाना चाहते हैं मौत को, कि कोई कह दे कि आत्मा गुजरना ही पड़ेगा। पहली बात। अनुभव से गुजरना ही पड़ेगा। अमर है, भरोसा दिला दे, तो रोने की जरूरत न रहे, दुख की
और दूसरे के अनुभव आपके काम न आएंगे, यह ध्यान में रखें। | जरूरत न रहे। क्यों? क्योंकि अगर आत्मा अमर है, तो कुछ बात बुद्ध कहते हैं, संसार दुख है। आप पढ़ लें, सुन लें। मैं कहता हूं, | नहीं। शरीर ही छूटा, वस्त्र बदले; लेकिन बेटा कहीं न कहीं जिंदा संसार दुख है। आप सुन लें, समझ लें। इससे कुछ होगा नहीं। है; कभी न कभी मिलना होगा। इससे खतरा है कि आप पाखंडी हो जाएंगे।
ईसाई, मुसलमान, सभी सोचते हैं कि मरने के बाद फिर अपने यह अनुभव आपका ही होना चाहिए कि संसार दुख है। संबंधियों से मिलना हो जाता है। तो थोड़े दिन का फासला है, थोड़े इसीलिए इस तरह के सवाल उठते हैं कि वैराग्य कैसे गहरा हो? | दिन की बात है; झेल लो। और कोई मिटा नहीं, कोई मरा नहीं। वैराग्य को गहरा करने का सवाल नहीं है। जीवन के अनुभव को | आप दुख से बचने का उपाय खोज रहे हैं। पूरा का पूरा भोगने का है। लेकिन हम सब का मन यह होता है मौत सामने खड़ी है, इसके दुख को भोगो। झुठलाओ मत। कि...।
तरकीबें मत खोजो। जिस पत्नी से सुख पाया है, उसका दुख भी बुद्ध तो दुख भोगकर वैराग्य को उपलब्ध हुए, फिर उन्होंने | | भोगो। जिस पति से आनंद अनुभव किया था, उस पति के जाने पर आनंद पाया। हम बुद्ध से भी ज्यादा कुशलता दिखाना चाहते हैं। अभाव का जो नरक है, उससे गुजरो। न तो शराब पीकर भुलाओ, दुख भोगने से भी बचना चाहते हैं; और जैसा वैराग्य बुद्ध को | न सिद्धांतों को पीकर भुलाओ। न भजन-कीर्तन करके अपने को हुआ, वैसा वैराग्य चाहते हैं; और वैसा आनंद चाहते हैं, जैसा | समझाओ; न गीता पढ़कर अपने मन को यहां-वहां लगाओ। दुख वैराग्य के बाद उन्हें हआ।
सामने खड़ा है, दुख को सीधा भोगो। दुख को ही तुम्हारा ध्यान बन नहीं, यह नहीं होगा। वैराग्य का अपना गणित है। और कोई जाने दो। शार्टकट न कभी रहा है और न कभी होने वाला है। और अगर आप तो उस मृत्यु से तुम निखरकर बाहर आओगे। तुम आग से गुजर इतने लंबे दिनों से भटक रहे हैं, तो शार्टकट की तलाश की वजह | जाओगे, तुम्हारा सोना निखर जाएगा; वैराग्य का उदय होगा। फिर से। नहीं तो कभी का आपको भी...।
तुम्हें मुझसे नहीं, किसी से भी नहीं पूछना पड़ेगा कि वैराग्य गहरा कितने जन्मों तक आप भी गुजरे हैं। पर आपकी आशा यह है कैसे हो? वैराग्य गहरा हो जाएगा। कि बिना दुख से गुजरे, बिना अनुभव से गुजरे और वैराग्य हो | एक मौत को भी तुम ठीक से देख लो, तो जिंदगी व्यर्थ हो जाती जाए। और फिर वैराग्य से मोक्ष मिले और परम आनंद की उपलब्धि | | है। एक सूखा पत्ता वृक्ष से गिरता हुआ भी तुम ठीक से समझ लो, हो। आप पहली सीढ़ी चूक रहे हैं। बुद्ध जैसे दुख से गुजरना पड़े, | तो जिंदगी में कुछ पाने जैसा नहीं रह जाता। तो ही बुद्ध जैसा वैराग्य उत्पन्न होगा।
लेकिन नहीं, जब कोई मरता है, तब तुम अपने को समझाने में और ऐसा नहीं है कि दुख की आपको कोई कमी है। दुख काफी लग जाते हो। और जब कोई मर भी जाता है, तब भी तुम यही है। लेकिन आप उससे गुजरते नहीं, बचते हैं। आपने पलायन, सोचते हो कि दुर्घटना है। एस्केप को अपना रास्ता बनाया हुआ है। कैसे बच जाएं, इसकी __ मौत जीवन का वास्तविक तथ्य है, दुर्घटना नहीं। यह कोई फिक्र में रहते हैं।
संयोग नहीं है। यह होने ही वाला है; यह जीवन की नियति है। जो दुख से बचेगा, उसे वैराग्य कभी उत्पन्न नहीं होगा। क्योंकि | जब कोई मरता है, तो तुम ऐसा सोचते हो कि कुछ भूल-चूक दुख की गहनता ही वैराग्य का जन्म है।
हो गई, कहीं कुछ गड़बड़ हो गई, कुछ कर्म का फल रहा होगा। आपका प्रियजन मर जाता है, आप बचने की तलाश में लग तुम यह बात भूल रहे हो कि मौत हर जीवन के पीछे लगी ही है,
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