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________________ गीता दर्शन भाग-7* शराब पीकर थोड़ी देर सुख मिलता है। वही अहंकार शराब तब तक अहंकार को रस नहीं आता। पीकर मिट जाता है। इसलिए शराब पीने वाले लोग विनम्र होते हैं। ___ आपने खयाल न किया होगा, जब आप डाक्टर की तरफ जाते जो लोग शराब छोड़े होते हैं, वे लोग अकडैल, दुष्ट प्रकृति के होते | | हैं सोचकर कि बड़ी बीमारी पकड़ गई है, और डाक्टर कहता है हैं। उन्हें अहंकार को हटाने का कोई उतना भी उपाय नहीं है। कुछ भी नहीं है, तो आपको अच्छा नहीं लगता। मन में थोड़ी-सी इसलिए अक्सर आप पाएंगे कि शराब पीने वाला मृदु होगा, चोट लगती है; शक होता है कि शायद यह डाक्टर ठीक नहीं है। मैत्रीपूर्ण होगा, भला होगा; वक्त पर काम पड़ सकता है। आप उस मुझ जैसे आदमी को और छोटी-मोटी बीमारी या कुछ भी नहीं! यह पर भरोसा कर सकते हैं। कंजूस नहीं होगा, कठोर नहीं होगा। उलटा मालूम पड़ता है, लेकिन भीतर यह लगता है, कि बेकार क्योंकि थोड़ी शराब के द्वारा कम से कम अहंकार भूलता है; मिटता | आना-जाना हुआ। तो नहीं, लेकिन थोड़ी देर को भूल जाता है। तो जो बेईमान डाक्टर हैं या कुशल, वे आपको देखकर बड़ा इसलिए आप शराब पीएं, तो थोड़ी देर में चेहरे की उदासी खो | गंभीर चेहरा बना लेंगे। उससे आपका चित्त प्रसन्न होता है। और जाती है और एक प्रसन्नता प्रकट होने लगती है। पैरों में गति आ | जब आपका हाथ हाथ में लेते हैं, तो ऐसा लगता है कि बहुत गंभीर जाती है और नाच आ जाता है। यह वही आदमी है, थोड़ी देर पहले | | स्थिति है। आपको कोई बीमारी न भी हो, तो भी वे बीमारी को ऐसा मरा हुआ चल रहा था, चेहरा ऐसा था जैसे कि बस, जीवन बढ़ा-चढ़ाकर खड़ा करते हैं। उससे मरीज प्रसन्न होता है। में कोई अर्थ नहीं है। इसकी आंखों में रौनक आ गई, चेहरे पर किसी मरीज को कह दें कि आपको मानसिक खयाल है, बीमारी चमक आ गई, पैर में गति आ गई। । है नहीं। वह आपका दुश्मन हो जाता है। यह हलका-फुलका कैसे हो गया? शराब किसी को हलका- | कोई यह बात मानने को राजी नहीं है कि हम दुख को भी पकड़ते फलका नहीं करती। शराब केवल अहंकार को सला देती है। हैं, लेकिन हम पकड़ते हैं। दुख को भी हम बड़ा करते हैं। फिर वह इसलिए सफी फकीर कहते हैं कि जिन्होंने परमात्मा की शराब पी| | दुख बड़ा होकर हमारे सिर पर पत्थर की तरह, छाती पर पत्थर की ली, फिर इस शराब में उन्हें कोई भी अर्थ नहीं है। परमात्मा की शराब | तरह सवार हो जाता है। फिर हम उसको ढोते हैं। का मतलब इतना ही है कि जिन्होंने अहंकार ही छोड़ दिया, जिन्होंने रेचन का अर्थ है, दुख को उतार देना। प्राइमल स्क्रीम का अर्थ उसकी शरण पकड़ ली, उनको अब भुलाने को कुछ नहीं बचा। | है, दुख को प्रकट हो जाने देना, निकल जाने देना। एक भयंकर ___इसलिए फकीरों की मस्ती शराबियों की ही मस्ती है. पर बड़ी चीत्कार में वह बाहर हो जाए और छाती हलकी हो जाए: हृदय का गहन शराब की है। और शराबी की मस्ती बड़ी महंगी है। क्योंकि बोझ उतर जाए। पाता बहुत ना-कुछ है और बहुत-से दुख उठाता है। फकीर की तो कोई आपको पता नहीं लगाना पड़ेगा कि कैसे पता चले कि मस्ती बिना कुछ खोए बहुत कुछ पाने की है। यह प्राइमल स्क्रीम थी! ऐसे पता चलेगा कि उसके बाद एकदम हम दुख को पकड़े बैठे हैं और दुख को हम इकट्ठा करते हैं। हम आप हलके हो जाएंगे। आप पाएंगे कि जैसे आपके पास कोई दुख रस भी लेते हैं। कभी था ही नहीं। आप सदा ही आनंद में रहे। जैसे एक स्वप्न देखा लोगों को देखें, जब वे अपने दुख की कथा किसी को सुनाते हैं, | हो दुख का और नींद टूट गई। और अब कोई स्वप्न नहीं है। और तो कितने प्रसन्न मालूम होते हैं! यह बड़ी हैरानी की बात है। अगर आप हंस रहे हैं। कोई आपकी दुख की कथा न सुने, तो आपको दुख लगता है। सुने, आपको रस आता है। और हर आदमी अपने दुख की कहानी बढ़ा-चढ़ाकर बताता है। तीसरा प्रश्नः कल आपने बताया कि वासनाओं की एक मेरे मित्र ने मुझसे कहा-उनकी पत्नी मेरे पास आती जड़ें गहरे अचेतन में हैं और केवल बौद्धिक तल पर थी-उन्होंने कहा, आप इसकी बातों में ज्यादा मत पड़ना। क्योंकि घटित वैराग्य का निर्णय अपर्याप्त है। वैराग्य का इसको फुसी हो जाती है, और कैंसर बताती है। और मैंने पाया कि | जागरण गहरी अचेतन जड़ों तक कैसे हो सकता है? वे ठीक कहते थे। फुसी भी कोई बीमारी है! जब तक कैंसर न हो, 1204
SR No.002410
Book TitleGita Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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