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________________ * संकल्प-संसार का या मोक्ष का * हूं, तभी मैं इसकी तरफ देखता हूं कि आज नहीं कल मरघट में पड़े | नसरुद्दीन ने कहा, वह बेवा हो गई। तो भाई ने कहा, नालायक, मैं रहोगे; लोगों की ठोकरें लगेंगी। कोई क्षमा भी मांगने रुकेगा नहीं। जिंदा बैठा हूं, तो वह बेवा हो कैसे सकती है! तो नसरुद्दीन ने कहा जब मुझे कोई गाली देता है या जब कोई मुझे मारने को तैयार हो जाता | | कि तुम जिंदा बैठे हो, इससे क्या फर्क पड़ता है। जब बुआ बेवा है, तब मैं उसकी तरफ नहीं देखता, इस खोपड़ी की तरफ देखता हूं। हुई थीं, तब भी तुम जिंदा थे। जब चाची बेवा हुईं, तब भी तुम जिंदा तब मेरा मन भीतर ठंडा हो जाता है कि ठीक ही है। इस खोपड़ी को | | थे। सैकड़ों औरतें गांव में बेवा हो गईं, तुम जिंदा थे। किसी को न कब तक बचाऊंगा? फिर अनंत काल तक यह पड़ी रहेगी, ठोकरें | रोक पाए बेवा होने से। तो अब तुम क्या कर सकते हो? किसी का खाएगी। तो क्या फर्क पड़ता है कि अभी कोई मार जाता है कि कल | बेवा होना, न होना, तुम पर निर्भर है क्या? कोई मार जाएगा, जब मैं बचाने के लिए मौजूद न रहूंगा! नसरुद्दीन ठीक ही कह रहा है। लेकिन वह जो भीतर मैं है. वह तो यह खोपड़ी भी शून्यता में ले जाएगी। परे समय अपने को केंद्र मानकर बैठा है। नसरुद्दीन का व्यंग्य अपनी वास्तविक स्थिति का स्मरण कि मैं मरणधर्मा हूं; कि यह बिलकुल ही ठीक है। तुम्हारे रहने से क्या होता है? लेकिन प्रत्येक देह थोड़ी देर के लिए है; कि मेरी सीमाएं हैं; कि मेरे ज्ञान की सीमा | | सोच रहा है कि उसके रहने से ही सब कुछ होता है। छिपकली भी है, मेरे सामर्थ्य की सीमा है; और मैं स्वतंत्र नहीं हूं, परतंत्र हूं; सब | | सोचती है कि उसका सहारा नहीं होगा, तो मकान गिर जाएगा। हम तरफ से मैं घिरा हूं और सब तरफ से परस्पर आश्रित हूं; मेरी कोई | सब भी उसी भाषा में सोचते हैं। स्वतंत्र इकाई नहीं है। ऐसी प्रतीति गहरी होती जाए, यह विचार | मेरे पास लोग आते हैं; कहते हैं, ध्यान करना चाहते हैं; शांत गहन होता जाए, यह ध्यान में उतरता जाए, यह हृदय में बैठ जाए, | | होना चाहते हैं। लेकिन अगर हम शांत हो जाएंगे, तो क्या होगा? तो शरणागति फलित होगी। परिवार है, पत्नी है, बच्चे हैं। कठिन इसलिए है, कि मैं कुछ भी नहीं हूं, यह मानने का मन हर एक को खयाल है कि सारा संसार उसकी वजह से चल रहा नहीं होता। मैं कुछ हूं, ऐसा मोह है। बहुत दीन मोह है, बहुत दुर्बल | है; उसके सहारे चल रहा है। और कब्रिस्तान भरे पड़े हैं इस तरह मोह है, किसी मूल्य का भी नहीं; दो कौड़ी उसकी कीमत नहीं है, | के लोगों से, जिनको सभी को यह खयाल था। जिस जगह पर आप लेकिन मैं कुछ हूं...। बैठे हैं, उस जगह पर कम से कम दस आदमी मर चुके और गड़ मैंने सुना है कि मुल्ला नसरुद्दीन के बड़े भाई ने उसे अपनी पत्नी चुके। जमीन पर कोई ऐसी जगह नहीं है, जहां दस-दस परतें लाशों को लेने ससुराल भेजा। और जाते वक्त कहा कि नसरुद्दीन, व्यर्थ की न बिछ चुकी हों। उन सभी को यही खयाल था जो खयाल की बकवास मत करना। ज्यादा उलटी-सीधी बात करने की तुम्हारी आपको है कि मैं कुछ हूं। आदत है, इसका उपयोग मत करना। तुम तो न या हां में ही जवाब __ यह भ्रांति टूट जाए, तो शरणागति आनी शुरू होती है। और इसे दे देना। तोड़ने के लिए कुछ करना नहीं है, सिर्फ आंख खोलनी काफी है। तो नसरुद्दीन ने गांठ बांध ली कि न और हां से दूसरा शब्द बोलेगा| | अपने चारों तरफ आंख भर खोलनी काफी है। ही नहीं। पहुंचा, तो भाई के ससुर ने पूछा कि तुम आए हो नसरुद्दीन, | स्थिति ही यही है कि आप कुछ भी नहीं हैं। छोटा-सा संयोग तुम्हारे बड़े भाई नहीं आए? तो नसरुद्दीन ने कहा, न। तो पूछा ससुर | है। वह भी पानी की लहर की तरह संयोग है। बन भी नहीं पाता ने कि क्या बीमार हैं? तो नसरुद्दीन ने कहा, हां। तो पूछा ससुर ने | और मिट जाता है। कोई पत्थर की लकीर भी नहीं है; पानी पर कि क्या बचने की कोई आशा नहीं? तो नसरुद्दीन ने कहा, हां। खिंची लकीर है। अपने को जो ठीक से सोचना-समझना, अपनी तो घर में कोहराम मच गया। लोग छाती पीटने लगे, रोने लगे। स्थिति को पहचानना शुरू करेगा, जागतिक संदर्भ में जो अपने को और फिर ससुर ने कहा कि जब तुम्हारे भाई आखिरी क्षण में हैं, तो रखेगा और पहचानने की कोशिश करेगा, वह अनुभव करेगा कि अब मेरी लड़की को लिवा ले जाकर क्या करोगे! मैं भेजने से मना | मैं एक पानी की बूंद हूं, सागर होने का भ्रम गलत है। करता हूं। वह तो बेवा हो ही गई। और जो अपनी तरफ सोच-विचार में लगेगा, विमर्श करेगा, तो नसरुद्दीन दुखी और रोता हुआ वापस लौटा। रोता हुआ चिंतन करेगा, उसे यह भी दिखाई पड़ना शुरू हो जाएगा कि जगत लौटा, तो भाई ने पूछा कि क्या हुआ? और भाभी कहां है? तो मुझसे बहुत बड़ा है। मेरे पीछे, मुझसे आगे, मेरे चारों ओर विराट 201]
SR No.002410
Book TitleGita Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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